कुसहा त्रासदी : 18 अगस्त 2008... कोसी ने धारा बदली तो मच गई तबाही, 14 वर्षों बाद भी नहीं टूटा है वनवास
कुसहा त्रासदी 18 अगस्त 2008 को कोसी नदी अपनी धारा बदल ली तो कोसी प्रमंडल के तीनों जिलों सहरसा सुपौल व मधेपरा में तबाही मच गई। सुपौल के कई कई गांव डूब गए। 14 वर्ष हो गए लेकिन यहां के लोग अभी पर समस्यों से घिरे हैं।
जागरण संवाददाता, सुपौल। कुसहा त्रासदी : 18 अगस्त 2008 को कोसी ने अपनी सीमाएं लांघ दी थीं और जो तस्वीर बदली वह इतिहास के काले पन्ने में समा गई। दिशाहीन भागमभाग, अफरातफरी, सब कुछ अनिश्चित, सब कुछ अनियंत्रित फिर भी जिंदगी को जीत लेने की अथक कोशिश। यही सच था जब कुसहा में कोसी ने लांघ दी थी सारी मर्यादा और उत्तर बिहार के एक बड़े हिस्से में मचा दी थी तबाही। पन्नों को पलटते हैं तो तटबंध के 12.10 व 12.90 पर कोसी ने खतरे की घंटी 2007 में ही बजा दी थी। 27 अक्टूबर 2007 को जब कोसी उच्चस्तरीय समिति ने तटबंध का निरीक्षण किया तो इन बिंदुओं पर जीर्णोद्धार का कार्य, पांच नग स्टड निर्माण आदि की अनुशंसा की गई। कार्य 15 जून से पूर्व ही करा लिए जाने का निर्देश दिया गया।
सरकार द्वारा गंगा बाढ़ नियंत्रण को भेजी गई सूचना के अनुसार 15 जून 2008 को कार्य करा भी लिया गया। 12.90 किमी स्पर पर पांच अगस्त से और 12.10 किमी स्पर पर सात अगस्त से कटाव शुरू हो गया। कोसी उग्र होती गई और सरकारी महकमा बांध को सुरक्षित बताता रहा। 15 अगस्त तक कोसी विकराल हो गई। अपने बचाव में विभाग ने नेपाल के एक थाने में काम में व्यवधान किए जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया। कोसी पर बहस-मुबाहिसे, विधानसभा में आंकड़ों की उठापटक और राजनीतिक बयानबाजियां हमेशा होती रहीं। परंतु सर्वांगीण रूप से तटबंधों की ऐसी सुरक्षा जिससे भविष्य में कोई बड़ी बर्बादी नहीं हो ऐसा कोई कारगर उपाय कभी किया ही नहीं गया।
कोसी के कहर को देखते हैं तो बाकायदा अपनी जमीन पर मर भी नहीं सके लोग। सुपौल जिले के पांच प्रखंडों के 173 गांव जलमग्न हो गए। इसमें 6,96,816 लोग व 1,32,500 पशु प्रभावित हुए। 0.43458 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगी फसल बर्बाद हो गई। 0.07854 गैर कृषि योग्य भूमि प्रभावित हुई। जहां सरपट दौड़ती थी गाडिय़ां वहां नावें चलने लगीं। बाढ़ के बाद भी स्थिति इतनी विकराल थी कि अपने ही घर का पता पूछते थे लोग।
पुनर्निर्माण की उपलब्धि सात वर्षों में 54 फीसद
बाढ़ ने जितना विकराल रूप दिखाया सरकार ने कहीं उससे अधिक राहत के मरहम लगाए। सुरक्षित जगहों पर राहत शिविर लगाए गए और लोगों की घर वापसी तक की सारी जिम्मेवारी उठा ली गई। नीतीश कुमार की सरकार ने राहत अनुदान की बाढ़ सी चला दी। फसल क्षति, गृह क्षति, खेतों से बालू निकासी आदि। बावजूद सरजमीन पर काफी लोग ऐसे अनुदान से वंचित भी रह गए। कोसी के पुनर्निर्माण का सरकार ने संकल्प लिया।
मुख्य बातें
- - तटबंध के 12.10 व 12.90 किमी पर कोसी ने 2007 में ही बजा दी थी खतरे की घंटी
- - 27 अक्टूबर 2007 को जब कोसी उच्चस्तरीय समिति ने तटबंध का निरीक्षण किया तो इन बिन्दुओं पर जीर्णोद्धार का कार्य, पांच नग स्टड निर्माण आदि की अनुशंसा की गई
- - कार्य 15 जून से पूर्व ही करा लिए जाने का निर्देश दिया गया
- - सरकार द्वारा गंगा बाढ़ नियंत्रण को भेजी गई सूचना के अनुसार 15 जून 2008 को कार्य करा भी लिया गया
- - 12.90 किमी स्पर पर पांच अगस्त से और 12.10 किमी स्पर पर सात अगस्त से ही कटाव शुरू हो गया
- - बाढ़ के बाद भी स्थिति इतनी विकराल थी कि अपने ही घर का पता पूछते थे लोग।
बर्बादी के सरकारी आंकड़े (सुपौल में)
- - पूर्ण प्रभावित पंचायत-62
- - आंशिक प्रभावित पंचायत-24
- - पूर्ण प्रभावित गांव-215
- - आंशिक प्रभावित गांव-32
- - प्रभावित आबादी-7,50,156
- - प्रभावित पशु- 2,63,375
- - प्रभावित क्षेत्र- 0.83785 लाख हेक्टेयर
- - फसल क्षति-50769 लाख हेक्टेयर
- - फसल क्षति का आकलन-2691.19 लाख हेक्टेयर
- - पक्का मकान पूर्ण क्षति- 188
- - पक्का मकान आंशिक क्षति-1478
- - कच्चा घर पूर्ण क्षति- 30,397
- - आंशिक क्षति- 41,171
- - झोपड़ी- 69
- - मानव क्षति-217
- - पशु क्षति- 5445
- - 115 मृतकों के परिजन को अब तक मिला मुआवजा
- पुनर्निर्माण 2015 तक
- - लक्ष्य 25,958
- - उपलब्धि 13,264
कुसहा त्रासदी से उजड़े और बेघर हुए लोगों को बसाने के ख्याल बहुत लोगों के मन में आया। टाटा स्टील एवं फिल्मकार प्रकाश झा ने इस कड़ी में पहले अपना नाम जोड़ा। फिल्मकार ने 104 महादलितों के लिए आवास बनवाए। स्कूल, अस्पताल व सामुदायिक भवन की भी सुविधाएं दिलवाईं।
टाटा स्टील की ओर से भी महादलितों को 105 आवास उपलब्ध करवाए गए। राज्य सरकार ने भी पहले से बेहतर कोसी बनाने का संकल्प लिया। पुनर्वास की योजना बनाई गई।
19 मई 2010 को मुख्यमंत्री ने कोसी पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण योजना का उद्घाटन किया। पुनर्निर्माण के नाम पर 25,958 आवास का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसमें वर्ष 2015 तक 13,264 घरों को पूर्ण बताया गया था।
कुशहा त्रासदी का दंश झेल चुके प्रतापगंज निवासी अशोक स्वर्णकार बताते हैं कि त्रासदी को धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। सरकार से मिली सहायता नाकाफी साबित हुआ। फिर भी त्रासदी पश्चात उन्हें मिली इंदिरा आवास योजना का लाभ काफी लाभदायक हुआ। वे अपनी मिहनत व सरकार की छोटी सी योजना की लाभ के बदौलत आज वे खुशहाल हो सके हैं। अब बाढ़ ना आए। बाढ़ का नाम सुनते ही आज भी वे परेशान हो उठते हैं।
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