कृष्ण जन्माष्टमी : काझी ब्राह्मण टोला के कृष्ण मंदिर में प्रतिवर्ष बनायी जाती है 17 प्रतिमाएं, सौ वर्षों चली आ रही अद्भुत परंपरा
कृष्ण जन्माष्टमी बिहार के पूर्णिया बनमनखी काझी ब्राह्मण टोला में कृष्ण मंदिर है। यहां सौ वर्षों से अधिक समय से कृष्ण जन्माष्टमी पर भव्य समारोह होता है। प्रतिवर्ष यहां भगवान कृष्ण के 17 प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता है।
सोहन कुमार, बनमनखी (पूर्णिया)। कृष्ण जन्माष्टमी : आदि-अनादि काल से आस्था व भक्ति का केंद्र बनमनखी रहा है। यहां एक ऐसा भी मंदिर है जो अनुमंडल मुख्यालय से सात किलोमीटर की दूरी पर काझी ब्राह्मण टोला स्थित कृष्ण मंदिर नाम से अपनी विशालता एवं भव्यता को लेकर इस इलाके में प्रसिद्ध है। इस जगह के बारे में बताया जाता है कि काझी गांव के पूर्वजों ने आज से करीब सौ वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण का पूजा बड़े हर्षोल्लास के मनाया था। यह मंदिर बहुत प्रखर एवं शक्तिशाली है। कृष्णाष्टमी के पूजा में यहां कोशी-सीमांचल के अलावा दूर दराज के श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं। श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी करने वाले भगवान कृष्ण मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ-साथ आज नवीनतम इतिहास को गढ़ रहा है।
बताया जाता है कि गांव के मध्य में भगवान श्रीकृष्ण कभी एक झोपड़ी में स्थापित थे, लेकिन आज यहां पर एक विशाल एवं भव्य मंदिर स्थापित किया जा चुका है। इस मंदिर में कृष्णाष्टमी में हर साल 17 मूर्ति बनाई जाती है। कृष्णाष्टमी पर सभी प्रतिमाओं का मैथिल रीति रिवाज से पंडित के वैदिक मंत्रोच्चार से प्राण प्रतिष्ठा किया जाता है। उसके अगले दिन प्रतिमाओं को विसर्जित कर दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण के दरबार में जो भक्त सच्चे मन से मन्नतें मांगने के लिए आते हैं, उसकी सभी मनोकामनाओं को भगवान कृष्ण अवश्य पूरी करते हैं। बताया जाता है मन्नतें पूरी होने पर यहां प्रतिवर्ष भगवान कृष्ण के भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। श्रद्धालुओं द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को बासुरी व प्रसाद चढाय़ा जाता है।
क्या है काझी कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास
कृष्ण मंदिर कमेटी के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार झा उर्फ कन्हैया, बयोवृद्ध पुजारी रामेश्वर मिश्र उर्फ फेकन मिश्र, सचीव संजीव झा, पंडित श्रीदेव झा, अनरूद झा सहित गांव के दर्जनों लोगों ने बताया कि गांव के पूर्वज गोङ्क्षवद झा, बनबारी झा, नैनमेन झा, जलधर झा, मालिक नृतलाल झा, रसिकलाल झा, चुम्मन झा, जानकी मिश्र, छोटकेन झा, मोजीलाल झा, मखरू मिश्र, भागवत झा, बसंतलाल झा आदि लोग गांव से चंपानगर ढोड़ी कृष्ण जन्माष्टमी का मेला देखने के लिए गये थे। जहां उन लोगों के मन में विचार आया कि गांव में एक भी देवी-देवता का मंदिर नहीं हैं। क्यों ना राजा से मिलकर काझी में किसी सार्वजनिक पूजा का विचार लिया जाय। ये सभी लोग राजा के पास जाकर अपना-अपना विचार रखा। जहां राजा, विचारकों का विचार सुनने के बाद काझी में कृष्णाष्टमी पूजा करने का आदेश दिया। राजा ने कहा कृष्णाष्टमी को छोड़कर सभी पूजा कठिन है। ये पूजा खीरा और लताम भी चढ़ाकर सहजता पूर्वक संपन्न किया जा सकता है। राजा से विमर्श के बाद सभी विचारक गांव आए, जहां संपूर्ण गांव की बैठक बुलाकर गांव के पूर्व मध्य में गोविंद झा अपने जमीन पर एक फुस की झोपड़ी का निर्माण करवाकर विधिवत प्रतिमाओं स्थापित कर आकलन 1921 से पूजा आरंभ कर दिया। बाद में जमीन कम पडऩे पर सुदिष्ट नारायण झा भी मेला के लिए जमीन दिया। तब से प्रति वर्ष संपूर्ण ग्रामीण पूजा को हर्षोल्लास के साथ मनाते आ रहे हैं।
मेला में स्थानीय कलाकारों के अभिनय देखने दूरदराज से आते थे लोग
स्थानीय लोगों ने बताया कि काझी गांव स्थित लगाने वाले मेला में वर्षों से नाटक मंच किया जाता था। जिससे स्थानीय कलाकारों के द्वारा एक से बढ़कर एक नाटक का का मंचन किया जाता था। इस अभिनय को देखने के लिए आसपास के इलाके के लोग उमड़ पड़ते थे। बदलते परिवेश में विगत दो तीन वर्षों से अभिनय को बंद कर दिया गया। इसके बाद से ग्रामीणों के द्वारा दो रात मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लेकिन पिछले दो वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से यहां सिर्फ पूजा का आयोजन हुआ था। इस बार 18 को जन्म, 19 पूजा और 20 अगस्त को मेला और दो रात सांस्कृतिक कार्यक्रमों का किया जाएगा।