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गाद से कम हुई कोसी की जल अधिग्रहण क्षमता, हर साल बाढ़ का रहता है खतरा

कोसी अपनी प्रकृति के अनुरूप अपनी धारा बदलती रही है। इसका मूल कारण कोसी की धारा के साथ बालू और गाद का आना है। काफी मात्रा में बालू और गाद के आने के कारण उसकी तलहटी उंची हो जाती है और वह अपनी धारा बदल देती है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2020 04:42 PM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2020 04:42 PM (IST)
गाद से कम हुई कोसी की जल अधिग्रहण क्षमता, हर साल बाढ़ का रहता है खतरा
भारी बारिश के कारण इस साल कोसी में बाढ का हाल

सुपौल [भरत कुमार झा]। अपनी तेज व विध्वंसक धारा के लिए मशहूर कोसी प्रतिवर्ष बाढ़ के दिनों में तटबंध के अंदर मिट्टी काटकर भूगोल बदलती रहती है। अगर बांध टूटा तो बाहर बर्बादी का इतिहास लिख डालती है। तेज धारा के कारण भू-क्षरण में बसना उजडऩा जहां लोगों की नियति बनी है वहीं लहलहाते खेत कब नदी बन जायेंगे कुछ कहना कठिन होता है।

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कोसी अपनी प्रकृति के अनुरूप अपनी धारा बदलती रही है। इसका मूल कारण कोसी की धारा के साथ बालू और गाद का आना है। काफी मात्रा में बालू और गाद के आने के कारण उसकी तलहटी उंची हो जाती है और वह अपनी धारा बदल देती है। तटबंध के अंदर कैद किये जाने के बाद कोसी को दिशा प्रदान करने की नीयत से बरसात से पूर्व चैनल सफाई आदि के कार्य किये जाते रहे हैं लेकिन समस्या बनी बालू का निदान नहीं ढूंढे जाने के कारण कभी सफलता हाथ नहीं लग पाती है। तटबंध की ओर उन्मुख हो चली कोसी की धारा को मोडऩे में विभाग सफल नहीं हो पाता है और खतरे की घंटी लगातार बजती रहती है।

विभाग व प्रशासन हमेशा बचाव की मुद्रा में ही होता है। कोसी की विनाशक धारा के लिए भौगोलिक परिस्थतियां ही अधिक जिम्मेवार हैं। इसका उद्गम स्थल मध्य पूर्व हिमालय क्षेत्र है। उद्गम क्षेत्र समुद्र तल से औसतन 7000 मीटर उंचा है। इसकी सभी छारन धारायें विश्व की सबसे उंची पर्वत शृंखला को पारकर के तिब्बत पठार तक के भू भाग के हिमजल और वर्षा जल को समेटती हुई नेपाल से सुपौल जिले में प्रवेश करती है। इसका कुल जलग्रहण क्षेत्र 74,030 वर्ग किमी है जिसमें से 62620 किमी नेपाल और तिब्बत में तथा 11410 किमी भारत में है। सामान्य दिनों में इसका वेग 3-4 किमी प्रतिघंटा जबकि बरसात के दिनों में यह पूर्ण वेगवती बन 16 किमी प्रतिघंटा तक बहती है।

बांध पर आक्रमण में कई बार सफल हो चुकी है कोसी

कोसी को तटबंध के अंदर कैद किये जाने के उपरान्त कोसी हमेशा आक्रामक रही है और कई दफे इसमें उसे सफलता हासिल हो चुकी है। 1963 में नेपाल के डलवा में कटाव लगा नेपाल के अलावा रमपुरा, मछिया, विशनपुर, कुनौली, कमलपुर, लालापट्टी, डगमारा आदि जलमग्न हो गये। 1968 में मुसहरिया और गंडौल के बीच तटबंध टूटा जिससे दरभंगा, मधुबनी और सहरसा में तबाही मची। 1971 में कोसी ने भटनियां एप्रोच को काट डाला, 1984 में नवहट्टा के समीप बांध को काट कोसी ने काफी उत्पात मचाया। 1987 में समानी और घोंघेपुर के पश्चिमी तटबंध पर कटाव लगा और बांध टूट गया। 2008 में कुसहा में बांध तोड़कर कोसी ने बर्बादी की जो कहानी लिखी उसकी कसक आज भी बरकरार है।

दिशा बदलती रही है कोसी

धारा परिवर्तन के लिये मशहूर रही कोसी 1700 से 1735 ई. तक यह सउरा नदी की धारा के संग मिलकर बहा करती थी। यह फारबिसगंज, रजोखर, गढ़ बनैली, पूर्णियां और कटिहार होकर बहते हुए मनिहारी के निकट कोसी प्रसाद नामक धारा से मिलकर गंगा में मिला करती थी। 1737 में सउरा धारा से पश्चिम हटकर काली कोसी की धारा से मिलकर पूर्णियां होकर बहने लगी और मनिहारी से पश्चिम कोसी प्रसाद के संग गंगा से संगम करने लगी। 1770 में इसकी धारा और भी पश्चिम चली गई। लिबरी, चंपावती, रंगपुर, मोहम्मदनगर होते हुए काढ़ा गोला आकर गंगा से मिल गई। 1807 से 1838 के बीच कोसी लच्छा धारा के साथ बहती रही। इसके पश्चात 1840 से 1873 तक कोसी ने अपना मुख्य मार्ग हहिया नामक धारा को बनाया। जो डोनबाना, नरपतगंज, सिरसिया कलां, मानपुर, चौपुर, रघुवंशनगर, चंदेली, करमचंद रेपुरा आदि स्थानों को छूते हुए गंगा से मिला करती थी। पुन: 1875 से 1892 तक कोसी सुरसर,वरगांव, अर्रा,मुरलीगंज होते हुए कुर्सेला में गंगा में मिलती रही। कालांतर में भारदह और भीमनगर के मध्य भाग में भारत सरकार द्वारा कोसी नदी में बराज और बांध बनाने की स्वीकृति 1953 में दी गई। नेपाल सरकार ने अप्रैल 1954 में इसपर स्वीकृति की मुहर लगाई। फलस्वरूप बराज का कार्य जनवरी 1955 में शुरू हुआ और 30 अप्रैल 1959 को नेपाल तत्कालीन राजा महेन्द्र के हाथों बराज की नींव रखी गई। लगभग चार वर्ष बाद 31 मार्च 1963 को कोसी की धारा को मोड़कर बराज के विवर द्वार से प्रवाहित करा दिया गया।

उंची हो रही नदी की तलहटी बढ़ रहा खतरा

भूवैज्ञानिकों की राय के मुताबिक हिमालय पर्वतमाला पर जब वर्षा होती है तब पानी के बहाव के साथ-साथ मिट्टी का क्षरण शुरु होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में तेज ढलान के कारण यह मिट्टी आसानी से तराई इलाके में आ जाती है। तराई इलाकों में धारा का वेग कम हो जाता है और मिट्टी को बैठने का मौका मिल जाता है। निचले इलाके में मिट्टी के बहाव के कारण नदियों के प्रवाह में बाधा पड़ती है। नतीजा होता है कि अक्सर नदी की धारा बदल जाती है। ङ्क्षसचाई आयोग बिहार द्वारा पूर्व में दिए गए रिपोर्ट को सही मान लें तो नदी के प्रवाह में 924.8 लाख घनमीटर सिल्ट हर साल गुजरती है। यही गाद कोसी की सबसे बड़ी समस्या है। कोसी हर साल कहीं न कहीं तबाही मचाती रही। बाढ़ रोकने के लिए तटबंधों का नुस्खा अपनाया गया। लेकिन यहां नदी द्वारा गाद लाने और भूमि निर्माण किए जाने की प्रकृति बाधक बनने लगी। बांध जहां पानी का फैलाव रोकने लगा वहीं मिट्टी और गाद का भी फैलाव रुका।


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