इस फसल की खेती से मालामाल हो रहे किसान, लाखों का मुनाफा
किसानों को खस की खेती ने खास बना दिया है। इस खेती से किसानों को प्रति हेक्टेयर तीन लाख तक की हर वर्ष आमदनी हो रही है। 15 दिनों तक पानी के रहने के बाद भी फसल खराब नहीं होती है।
सहरसा [राजेश राय पप्पू]। बाढ़ और अतिवृष्टि से परेशान कोसी के किसानों के लिए खस की खेती वरदान साबित हो रही है। यही वजह है कि इलाके के किसानों को खस की खेती ने खास बना दिया है। इस खेती से किसानों को प्रति हेक्टेयर तीन लाख तक की हर वर्ष आमदनी हो रही है। बाढ़ के समय में फसलों में 15 दिनों तक पानी के रहने के बाद भी फसल खराब नहीं होती है।
बकुनियां के देवेंद्र यादव उर्फ देवी बाबू ने पारंपरिक खेती से तौबा कर खस घासों की खेती शुरू की। वे बताते हैं कि इससे निकलने वाले रस से मुनाफा कई गुना बढ़ गया। इससे प्रेरणा लेकर अन्य किसान भी इसकी खेती कर रहे हैं।
बहुपयोगी है खस का तेल
खस के पौधे की जड़ से सुगंधित तेल निकाला जाता है जो बहुपयोगी है। खासकर इत्र निर्माण में इसका इस्तेमाल किया जाता है। साबुन, सुगंधित प्रसाधन सामग्री निर्माण में इसका इस्तेमाल होता है। हरी घास पशुचारे में भी काम आता है। यह फसल विषम माहौल में भी फल-फूल रही है। शून्य से चार डिग्री से लेकर 56 डिग्री तापमान तक में इस पौधे को नुकसान नहीं है।
कम करता है प्रदूषण
पर्यावरण के अनुकूल खस के पौधे मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाती है। खस का एक पौधा एक साल में 80 ग्राम कार्बन का अवशोषण करता है। इससे प्रदूषण कम करने में भी मदद मिलती है। एक बार इस पौधे को लगा देने के बाद पांच साल तक दुबारा लगाने की जरूरत नहीं है।
एक या दो बारिश ही काफी
सिंचाई की सुविधा नहीं रहने व किसानों को इंद्र देवता के भरोसे रहने की जरूरत नहीं है। खस, लेमनग्रास, पामारोजा तथा सिट्रोनेला घासों की खेती काफी उपयोगी साबित हो रही है। मोटी कमाई होने से यहां के किसानों की तकदीर बदल रही है। किसान देवी बाबू कहते हैं अन्य फसलों के साथ खस की खेती कर डेढ़ साल में तीन लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक मुनाफा कमा रहे हैं। इनके लिए एक या दो बारिश भी काफी है।
खस 10-15 दिन तक पानी में डूबे रहने के बाद भी गलता नहीं है। इसलिए कोसी के बाढ़ प्रभावित इलाकों में किसान इसकी खेती में खासी रुचि दिखा रहे हैं। इसे अन्य फसलों के साथ भी लगाया जा सकता है। इसे लगाने में अलग से कोई विशेष खर्च नहीं होता। अलग से कोई रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं है।
शिव कुमार मिश्र, कृषि समन्वयक।