शरहद की निगाहवानी के बाद अब ऑनरेरी लेफ्टिनेंट नौनिहालों को दे रहे अक्षर ज्ञान
शिक्षा जीवन का सबसे बड़ा हथियार इससे हर जंग को जीतने में मिलती है सफलता जीवन की दूसरी पारी हर किसी को समाज निर्माण में लगाने की जरूरत
भागलपुर [अमरेंद्र कुमार तिवारी]। देश की रक्षा के लिए 28 वर्षो तक सरहद पर आतंकियों से लोहा लेने वाले ऑनरेरी लेफ्टिनेंट केके पांडेय अब सेवानिवृति के बाद जिंदगी की दूसरी पारी समाज से निरक्षरता का कलंक मिटाने में खेल रहे हैं। इस कार्य में उनका साथ उनकी धर्म पत्नी निभा पांडे बखूबी निभा रही है। वे दोनों मिलकर गरीब बच्चों को बीचे पांच वर्षो से निश्शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। इनकी बेटी मेजर डॉ. गारगी पांडेय भी जम्मू-कश्मीर में मेडिकल कोर में सेवा दे रहीं हैं। ऑनरेरी लेफ्टिनेंट का मानना है कि समाज के हर लोगों को जीवन की दूसरी परी समाज निर्माण में लगानी चाहिए।
शिक्षा जीवन का सबसे बड़ा हथियार
ऑनरेरी लेफ्टिनेंट का मानना है कि शिक्षा जीवन का सबसे बड़ा हथियार है। इसके बल पर जिंदगी की हर जंग जीती जा सकती है। वे हर दिन सुबह-शाम दबे-कुचले व आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाने का काम कर रहे हैं। जिसके पास लेखन सामग्रियों की कमी होती है वैसे बच्चों को कॉपी, किताब आदि भी मुहैया कराते हैं। उनका मानना है कि समाज के हर बच्चों को अच्छी तालिम मिल जाए तो शांति, अमन, चैन और समृद्धि का वातावरण स्वत: ही बन जाएगा। इससे राष्ट्र को भी मजबूती मिलेगी। इसी जज्बे और जुनून के साथ वे समाज को सुशिक्षित बनाने में लगे हैं।
पांच साल से जगा रहे हैं शिक्षा की जोत
पीरपैंती गौरीपुर के मूल निवासी श्री पांडेय बीते कई वर्षो से सबौर के मीराचक गांव में अपना नया आशियाना बनाकर रह रहे हैं। तब से इस गांव के गरीब-गुरबों के बच्चों को निश्शुल्क अक्षर ज्ञान देने में लगे हैं। उनका मानना है कि समाज के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण शिक्षा की कमी है। हर अभिभावक यह समझ जाएं तो समाज का भला हो जाएगा। पर यहां के अभिभावक बच्चों को शिक्षा देने के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। बड़ी मशक्कत के बाद हमें इस कार्य में सफलता मिली है। अब हम भी अपने खाली समय का उपयोग बेहतर उपयोग करीब चार दर्जन बच्चों को नियमित रूप से शिक्षा देकर समाज सेवा का काम कर रहे हैं।
28 वर्षो तक देश की सरहद का किया सुरक्षा
ऑनरेरी लेफ्टिनेंट केके पांडेय ने 1977 में आर्मी में अपना योगदान दिया था। 28 वर्षो तक देश की सेवा की। इस दौरान वे असम, गोवा, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और जम्मू एंड कश्मीर सहित अन्य जगहों पर देश की सीमा पर दुश्मनों के नापाक मनसूबे को विफल बनाते रहे। 2005 में सेवानिवृति के बाद कुछ वर्षों तक वे पूना और चंडीगढ़ में रहे। वहां भी उन्होंने पास पड़ोस के सैंकड़ों बच्चों को निश्शुल्क अक्षर दान दिया।