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बापू के चरखों में उलझे समस्याओं के धागे

पूर्णिया। भारत छोड़ो आंदोलन (1942) की अगुवाई करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चरखों को बढ़वा दिया था। इससे लोगों का रोजगार भी मिला।

By JagranEdited By: Published: Thu, 10 May 2018 01:11 PM (IST)Updated: Thu, 10 May 2018 01:11 PM (IST)
बापू के चरखों में उलझे समस्याओं के धागे
बापू के चरखों में उलझे समस्याओं के धागे

पूर्णिया (आदित्य नंद)। भारत छोड़ो आंदोलन (1942) की अगुवाई करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चरण रानीपतरा में पड़े थे। जिस स्थान पर उन्होंने लोगों को संबोधित किया था उसी जगह बिहार के गांधी कहे जाने वाले सर्वोदयी नेता स्व. वैद्यनाथ चौधरी ने 12 जून 1952 को सर्वोदय आश्रम की स्थापना की। स्वरोजगार और स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए यहां चरखा और करघा उद्योग भी लगाए गए। यहां तैयार खादी के कपड़े दूर-दूर तक भेजे जाते थे लेकिन गुटबंदी के कारण 2005 में खादी कमीशन ने अनुदान देना बंद कर दिया। अभाव और समस्याओं के ताने-बाने में उलझ यहां के चरखे खामोश हो गए।

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सर्वोदय आश्रम आज बदहाली का दंश झेल रहा है। पूर्णिया प्रमंडल में संचालित 28 खादी बिक्री केंद्रों में से अब पांच ही संचालित हैं। कटिहार जाने के क्रम में बापू जिस जगह रुके आश्रम के अंदर आज भी उस जगह पर बापू की प्रतिमा सहित गांधी चबूतरा मौजूद है। संस्थापक बैद्यनाथ प्रसाद चौधरी एवं उनके प्रमुख सहयोगी कमलदेव नारायण ¨सह, नर¨सह नारायण ¨सह, अनिरुद्ध प्रसाद ¨सह, ¨बदेश्वरी प्रसाद ¨सह, गुलाब चंद साह, रामाचरण ¨सह, रामेश्वर ठाकुर, भृगुनाथ ¨सह जैसे नेताओं ने इस आश्रम को राष्ट्रीय स्तर पर ला खड़ा किया। स्थापना से जुड़े लोग दिवंगत हो चुके हैं लेकिन लगभग 15 एकड़ जमीन में फैले इस आश्रम की दरों-दीवार आज भी इसकी भव्यता के गवाह हैं। इस आश्रम में भूदान के प्रवर्तक आचार्य विनोबा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसी विभूतियों ने महीनों रह कर सर्वोदय और भूदान का अलख जगाया। आश्रम की ओर से भी कई रचनात्मक कार्य किए जाते रहे। इनमें भूदान, ग्रामदान, प्रौढ़-शिक्षा, बालबाड़ी, शिक्षण-प्रशिक्षण, पुस्तकालय-वाचनालय, खादी-ग्रामोद्योग, नशाबंदी-कार्यक्रम, कृषि-गोपालन आदि प्रमुख थे। इस माध्यम से सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी चलती थी। इस आश्रम के अंदर ही सैकड़ों-परिवार निवास करते थे जिन्हें सर्वोदय विचारधारा के अंतर्गत रहना और जीना सिखाया जाता था। इस आश्रम के लोग गांधीवादी-विचारों ओत-प्रोत थे। मगर बैद्यनाथ चौधरी एवं उनके प्रमुख सहभागियों के स्वर्ग सिधारने के पश्चात यह संस्था मूल भावनाओं से भटकने लगा। आज स्थिति यह है कि इसका सारा काम बंद पड़ा है। सिर्फ खादी ग्रामोद्योग चल रहा है लेकिन उसकी भी स्थिति ठीक नहीं है। कभी यह पूर्णिया प्रमंडल के 28 खादी बिक्री केंद्रों का प्रमुख आश्रम था। आज यह केंद्र सिर्फ पूर्णिया, भवानीपुर, कटिहार, किशनगंज और ठाकुरगंज में सांसें ले रहा है। प्रबंध-परिषद में व्याप्त गुटबाजी के कारण पिछले दिनों इसमें दो कमेटियां बन गई और आपसी खींचतान के कारण आश्रम को काफी नुकसान पहुंचा है। जानकारी हो कि इसके तमाम मकान और ऐतिहासिक श्रीकृष्ण-सदन का उद्घाटन आचार्य विनोबा भावे ने किया था।


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