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Katihar News : कुरसेला प्रखंड के महेशपुर गांव में न मंदिर है न प्रतिमा मगर वर्षों से हो रही मां काली की पूजा

Katihar News कटिहार जिले के कुरसेला प्रखंड अंतर्गत महेशपुर गांव में एक पीपल वृक्ष के नीचे न मंदिर है और प्रतिमा भी वर्षो से लोग वहां निरंकारी काली विराजमान होने को लेकर वर्षो से पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।यहां हर मांगी मुरादें पूरी होती है।

By Amrendra TiwariEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2020 02:50 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2020 02:50 PM (IST)
Katihar News : कुरसेला प्रखंड के महेशपुर गांव में न मंदिर है न प्रतिमा मगर वर्षों से हो रही मां काली की पूजा
ग्रामीणों के अनुसार स्वप्न में खुद मां ने मंदिर के निर्माण से किया था मना

कटिहार, जेएनएन । Katihar News : यहां न मंदिर है और न ही प्रतिमा मगर मां काली की पूजा सौ वर्षों से भी ज्यादा समय से हो रही है। आस्था ऐसी कि दूर-दूर से लोग यहां पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं। लोगों को यह विश्वास है कि यहां मांगी गई हर मन्नत माता पूरी करती है। कुरसेला प्रखंड के महेशपुर गांव में एक पीपल के पेड़ के नीचे ही इस मंदिर का पूरा अस्तित्व सिमटा हुआ है। मां के नाम पर लोग चुनरी भी यहीं चढ़ाते हैं और यही चुनरी को प्रतीक मान लोग पूजा-अर्चना करते हैं।

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ग्रामीणों ने बताया कि सैकड़ों वर्ष से यहां इस तरह ही पूजा अर्चना हो रही है। लोगों के अनुसार यह निरंकारी काली है और इस लिए यहां कुछ भी स्थाई तौर पर निर्माण नहीं कराया जाता है। ग्रामीणों के बीच यह किदवदंती है कि यहां दशकों पूर्व भव्य मंदिर बनाने के लिए मां काली की पूजा-अर्चना कर उनके पूर्वजों ने अपनी मंशा मां के समक्ष रखी थी। इस पर मां ने पंडित को स्वप्न में लोगों को ऐसा करने से मना किया था। साथ ही वर्तमान रुप में पूजा अर्चना करने की बात कही थी।

स्‍वप्‍न के बाद नहीं हुई मंदिर व प्रतिमा निर्माण की पहल 

तब से आर्थिक रुप से संपन्न होने के बावजूद ग्रामीणों ने मंदिर निर्माण या फिर प्रतिमा के स्थापन को लेकर कोई पहल नहीं की। तब से इसी रुप में मां की पूजा लोग करते आ रहे हैं। यह भी परंपरा है कि काली पूजा के अवसर पर यहां सर्वप्रथम मार्कंडेय मुनि जाति के लोग ही पूजा करेंगे। बाद में सभी लोग पूजा करेंगे। ग्रामीणों द्वारा इस परंपरा को भी अब तक निभाया जा रहा है। ग्रामीणों का इस निराकार काली स्थान से असीम श्रद्धा एवं आस्था जुड़ी हुई है। बताया जाता है कि विशाल वृक्ष के नीचे मार्कण्डेय मुनि समाज के पूर्वज ने पूजा-अर्चना शुरू की थी। तभी से आज तक इसी मुनि द्वारा काली पूजा के अवसर पर प्रथम पूजा की जाती है। पूर्व में यहां धना जंगल था और अब मंदिर के आसपास आबादी बस चुकी है।

मंदिर में पूजा-अर्चना से शुरु करते हैं शुभ कार्य

ग्रामीणों के अनुसार गांव के किसी व्यक्ति के घर शुभ कार्य इस मंदिर में पूजा-अर्चना से ही शुरु होती है। लोग शादी-विवाह से लेकर अन्य शुभ कार्य पर अपने यहां पूजा-अर्चना करते हैं और फिर अपने घर की देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं। छात्र-छात्राओं की असीम आस्था भी इससे जुड़ी हुई है। गांव के छात्र-छात्राएं परीक्षा देने जाने से पूर्व मां का आर्शीवाद जरुर लेते हैं।


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