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kathir : केले की फसल को लील रहा पनामा बिल्ट, बांस की खेती ही सहारा

kathir news कटिहार के किसान अब केले की खेती से विमुख हो रहे हैं। उसकी जगह वह अब बांस की खेती को तेजी से अपना रहे हैं। यहां बांस की खेती का रकवा लगातार बढ़ रहा है और यह आमदनी का बढिय़ा जरिया भी बन रहा है।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 09:05 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 09:05 AM (IST)
kathir : केले की फसल को लील रहा पनामा बिल्ट, बांस की खेती ही सहारा
कटिहार के फलका प्रखंड में की जा रही बांस की खेती।

कटिहार [तौफीक आलम]। फलका प्रखंड में केले की फसल को लगातार पनामा बिल्ट नामक रोग लील रहा है। कभी मुख्य फसल रही केले की खेती का रकवा सिमटता जा रहा है। इस स्थिति में किसान मक्के के साथ बांस की खेती के सहारे इसकी भरपाई में जुटे हुए हैं। प्रखंड में बांस की खेती का रकवा लगातार बढ़ रहा है और यह किसानों के लिए आमदनी का बढिय़ा जरिया भी बन रहा है।

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यह पंजाब ,हरियाणा और दिल्ली जैसे बड़े शहरों से लॉक डाउन में घर लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए भी वरदान साबित भी हो रहा है। इनदिनों बांस से तैयार होने वाले मनरेगा योजना में इस्तेमाल बांस टाटी बनाने का कार्य उद्योग का रूप लेता जा रहा है। मनरेगा योजना के निर्मित बांस का जाफरी(टाटी) बिहार सहित झारखंड राज्य के कई जिलों में भेजा जा रहा है। इस कारण छोटे -बड़े सभी किसान बांस की खेती को अपना जीविकोपार्जन साधन बना रहे हैं।

कभी एक हजार हेक्टेयर में होती थी केले की खेती

केलांचल के नाम से मशहूर फलका प्रखंड में पांच वर्ष पूर्व तक करीब एक हजार हेक्टेयर से अधिक रकवा में केले की खेती होती थी। पनामा बिल्ट नामक रोग के कहर के कारण वर्तमान में मात्र 70 से 80 हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है। किसान मो. अलीमुद्दीन, इफ्तखार, अर्जुन सोरेन, इरसाद ,मनोज भगत, मो. जफर हसन ,साजिद आलम, राजेन्द्र पटेल आदि बताते हैं कि बांस किसानों के लिए एटीएम का कार्य करता है। ऐसे में लोग अब बांस की खेती करना पसंद कर रहे हैं।

बांस का है विविध उपयोग, रहती है डिमांड

शादी -विवाह से लेकर दाह संस्कार सहित फूस के घर और भवन निर्माण तक में बांस का उपयोग होता है। शादी विवाह में खूबसूरत रंग बिरंगे टोकरी, सूप, पंखा, का स्थानीय स्तर पर डिमांड रहता है। इसके निर्माण से भी काफी लोग जुड़े हुए हैं।

विभिन्न मंडियों में जाती है यहां की बांस

फलका का बांस बिहार,उत्तर प्रदेश,दिल्ली,व् मध्य प्रदेश तक भेजा जाता है। यही नहीं जिस तरह केला की खरीददारी के लिए दूसरे राज्यों के व्यापारी यहां आते थे ठीक उसी तरह बांसों की भी खरीदारी के लिए व्यापारी आते हैं। कई किसानों ने तो उद्यान विभाग से बांस का कोंपल ले कर लगाया है और खेती कर रहे हैं ।

क्या कहते हैं अधिकारी

प्रखंड के प्रभारी कृषि पदाधिकारी रामपुकार महतो ने कहा कि फलका व समेली प्रखंड में कई किसानों को उद्यान विभाग द्वारा बांस खेती के लिए अनुदान दिया गया है। जो किसान बांस खेती से जुड़कर लाभ लेना चाहते है तो वैसे किसान अपना आवेदन दे सकते हैं। व्यवसायिक खेती के रुप में यह बेहतर विकल्प है।


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