काचहि बास के बहंगिया, बहंगी लचकत..
लोक महापर्व छठ अब देश ही नहीं समंदर पार भी मनाया जा रहा है। जानें इस पर्व के बारे में विस्तार से..
भागलपुर। छठ का पर्व अब पूरे देश में उल्लास, उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाने लगा है। पूजा के दौरान छठी मइया (संतान षष्ठी मा) को शायद ही ऐसा कोई फल हो, जिसका भोग न लगाया जाता हो। वहीं दो दिनों तक छठ का सबसे प्रसिद्ध गीत 'काचहि बास के बहंगिया बहंगी लचकत जाए..' हर व्रती महिलाओं के होठों पर गूंज रहा है। यही नहीं गावों में खासकर यह गीत दीपावली से शुरू होकर छठ के बाद तक हर ओर गूंजता रहता है।
पंडित राजेश मिश्र ने बताया कि छठ के दौरान धार्मिक गीतों का अभी तक वैदिक महत्व नहीं है। छठ को लौकिक महत्व का ही माना जाता है। पंचमी को भी दिनभर महिलाएं व्रत रहकर शाम को गुड़ का खीर खाती हैं और अगले दिन बिना जल ग्रहण किए शाम को सूर्य को अर्घ्य देती हैं। सप्तमी को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ ग्रहण करती हैं। उन्होंने बताया कि पति की दीर्घायु के अलावा पुत्र प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है। इस दौरान शुद्धता का विशेष महत्व होता है।
पुराणों के आईने में षष्ठी व्रत
ब्रह्मवैवर्त पुराण में षष्ठी देवी के महात्म्य, पूजन विधि एवं पृथ्वी पर इनके पूजा प्रसाद इत्यादि के विषय में चर्चा की गई है किंतु सूर्य के साथ षष्ठी देवी के पूजन का विधान तथा 'सूर्यषष्ठी' नाम के व्रत की चर्चा नहीं की गई है। इस विषय में भविष्य पुराण में प्रतिमास के तिथि व्रतों के साथ षष्ठीव्रत का उल्लेख स्कंद षष्ठी के नाम से किया गया है। परंतु इस व्रत के विधान और सूर्यषष्ठी व्रत के विधान में पर्याप्त अंतर है।
मैथिल ग्रंथ वर्षकृत्यविधि में भी सूर्यषष्ठी की है चर्चा
'प्रतिहार षष्ठी' के नाम से बिहार में प्रसिद्ध सूर्यषष्ठी की चर्चा मैथिल ग्रंथ 'वर्षकृत्यविधि' में की गई है। इस ग्रंथ में व्रत पूजा की पूरी विधि, कथा तथा फलश्रुति के साथ तिथियों के क्षय एवं वृद्धि की दशा में कौन सी तिथि ग्राह्य है, इस विषय पर भी धर्मशास्त्रीय दृष्टि से सागोपाग चर्चा हुई है और अनेक प्रामाणिक स्मृति ग्रंथों से प्रमाण भी दिए गए हैं। आजकल इस व्रत के अवसर पर लोक में जिन परंपरागत नियमों का अनुपालन किया जाता है, उनमें इसी ग्रंथ का सर्वथा अनुसरण दृष्टिगत होता है। कथा के अंत में 'इति श्री स्कंद पुराणोक्त प्रतिहार षष्ठी व्रत कथा समाप्ता' लिखा है। इससे ज्ञात होता है कि 'स्कंद पुराण' के किसी संस्करण में इस व्रत का उल्लेख अवश्य हुआ होगा। अत: इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता भी परिलक्षित होती है। प्रतिहार का अर्थ है- जादू या चमत्कार अर्थात चमत्कारिक रूप से अभीष्ट को प्रदान करने वाला व्रत।
पौराणिक कथाओं की तरह वर्णित है व्रत व कथा
इस ग्रंथ में षष्ठी व्रत की कथा अन्य पौराणिक कथाओं की तरह वर्णित है। यहा भी नैमिषारण्य में शौनकादि मुनियों के पूछने पर श्रीसूत लोक कल्याणार्थ सूर्यषष्ठी व्रत के महात्म्य, विधि तथा कथा का उपदेश करते हैं।
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सोने और चादी के सूप से भी अर्घ्य देंगे व्रती
भागलपुर : छठ पर्व पर सोने और चादी के सूप की भी माग कम नहीं है। सोने और चादी के सूप की बिक्री भी रफ्तार पकड़ रही है। शोरूम में इसे सजा दिया गया है। व्रती मनपसंद सूपों की खरीदारी कर रहे हैं।
सोने की तुलना में चादी के सूप की माग अधिक है। आभूषण विक्रेता अनिल साह ने कहा कि 70 से 80 फीसद लोग चादी सूप की ही माग कर रहे हैं। इस साल सूप की कीमत बढ़ी है, लेकिन इसका मामूली असर ही हुआ है। विक्रेताओं का कहना है कि करीब डेढ़ से दो फीसद का अंतर आ रहा है। यानी 50 हजार की खरीदारी पर करीब एक हजार रुपये अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।
पवित्र माने जाते हैं सोने व चांदी के सूप
परंपरा के अनुसार सोने और चादी के सूप पवित्र समझे जाते हैं। छठ पर्व भी पवित्रता का प्रतीक है, इसलिए व्रती सोने और चादी के सूप से अर्घ्य देते हैं। यह प्रतीकात्मक होता है। अर्थात सोने और चादी के सूप को बास के सूप में रख कर अर्घ्य दिया जाता है। इसे मन्नत का सूप भी कहते हैं। मन्नत के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति के बाद माताएं सोने-चादी के सूप से अर्घ्य देती हैं।
पांच व दस ग्राम में उपलब्ध हैं सोने-चांदी के सूप
सोने के सूप पाच और दस ग्राम में उपलब्ध हैं। पाच ग्राम वजन वाले सोने के सूप की कीमत 15 से 16 हजार रुपये है जबकि दस ग्राम वाले सूप की कीमत 30 से 32 हजार रुपये के बीच बैठ रही है। चादी के सूप 50 ग्राम से 500 ग्राम के बीच उपलब्ध हैं। विशेष आर्डर पर एक किलो का भी सूप बनाया जा रहा है। 50 ग्राम वाले चादी के सूप की कीमत 2500 रुपये, 100 ग्राम वाले सूप की कीमत 5000 रुपये, 500 ग्राम वाले सूप की कीमत 25 हजार रुपये और एक किलो के चादी सूप की कीमत 50 हजार रुपये है।