भागलपुर में पढ़कर कादम्बिनी बनीं एशिया की पहली महिला डाक्टर, नेपाल की राजमाता का भी किया था इलाज
भागलपुर के मोक्षदा बालिका उच्च विद्यालय में पढ़ाई कर कादम्बिनी गांगुली एशिया की पहली महिला डाक्टर बनीं थीं। मानिक सरकार स्थित गांगुली बाड़ी में कादम्बिनी रहती थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के छठे वार्षिक अधिवेषण में उन्होंने धन्यवाद ज्ञापन किया था।
जागरण संवाददाता, भागलपुर। मोक्षदा बालिका उच्च विद्यालय में पढ़ाई कर कादम्बिनी गांगुली भारत ही नहीं एशिया की पहली महिला डाक्टर बनीं थीं। मानिक सरकार स्थित गांगुली बाड़ी की रहने वाली कादम्बिनी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के छठे वार्षिक अधिवेषण में धन्यवाद ज्ञापित करने का गौरव प्राप्त है। नेपाल की राजमाता को निरोग कर गांगुली ने चिकित्सा के क्षेत्र में ख्याति अर्जित की थी। कादम्बिनी के जन्मदिन पर गूगल ने डूडल के माध्यम से उन्हेंं होमपेज पर सम्मान दिया है। इसे ओड्रिजा नामक कलाकार ने बनाया है।
एसएम कालेज के प्राचार्य प्रो. रमन सिन्हा ने बताया कि कादम्बिनी बसु जन्म 18 जुलाई 1861 को हुआ था। उनकी शादी 12 जून 1883 को द्वारिका नाथ गांगुली से हुई थी। इसके बाद कादम्बिनी वसु से वह कादम्बिनी गांगुली हो गईं। तीन अक्टूबर 1923 को उनकी मृत्यु कलकत्ता (अब कोलकाता) में हो गई थी। उनके परिवार का संबंध चंदसी (बारीसाल, अब बांग्लादेश में) से था। उदार विचारों के धनी पिता बृजकिशोर ने पुत्री कादम्बिनी की शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया था।
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान
भागलपुर में 19वीं सदी से ही बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान चला आ रहा है। प्रो. रमन सिन्हा ने प्रो. भीए नारायण के आलेख 'फीमेल एजुकेशन इन बिहार' के जरिए बताया कि 1868 में छात्राओं की शिक्षा के लिए भागलपुर गल्र्स इंस्टीच्यूट की स्थापना ब्रह्मसमाजियों ने की थी।
इस स्कूल की स्थापना में पांडिचेरी आश्रम के योगी अरविन्द घोष के भागलपुर में पदस्थापित चिकित्सक पिता डा. कृष्ण धन घोष सहित अन्य ब्रह्मसमाजी लोगों ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। प्रो. नारायण ने स्कूल के 1968 में प्रकाशित स्मारिका के हवाले से अपने शोध आलेख में बताया है कि स्थापना के प्रथम वर्ष आठ छात्राओं ने स्कूल में नामांकन लिया था, जिसमें एक कादम्बिनी भी थी। बाद में तत्कालीन ब्रिटिश भारत की प्रथम भारतीय महिला चिकित्सक बनीं।
शिवचंद्र बनर्जी को नवाजा गया था राजा की पदवी से
लेखक के अनुसार मिरजानहाट निवासी तत्कालीन स्कूल डिप्टी इंस्पेक्टर शिवशरण लाल की दो पुत्री भी कादम्बिनी की सहपाठी थी। पहली जनवरी 1896 को प्रकाशित 'दी बिहार टाइम्स' में बताया गया है कि समाजसेवा के लिए पटना के नवाब विलायत अली, भागलपुर के शिव चन्द्र बनर्जी एवं मुंगेर के कामेश्वरी प्रसाद को 'राजा' की पदवी से नवाजा गया था। राजा शिवचन्द्र बनर्जी ने ही बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के उद्देश्य से लगभग 1884-85 में भागलपुर गल्र्स इंस्टीच्यूट को जमीन एवं भवन के लिए एक बड़ी राशि दान में दी थी। उनकी दानशीलता एवं कन्या शिक्षा प्रेम के कारण ही स्कूल प्रबंधन ने बनर्जी की माता के नाम पर स्कूल का नामकरण मोक्षदा गल्र्स स्कूल में परिवर्तित कर दिया।
प्रथम स्नातक थीं कादम्बिनी
कादम्बिनी ने इंटरेन्स परीक्षा (आइए) में विज्ञान एवं बंगाली भाषा में डिशटिक्शन के पास किया, तब कलकत्ता विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति एलेक्जेंडर जे. आरबूनाथ ने 15 मार्च 1879 को हुए कन्वोकेशन में कादम्बिनी बसु की जमकर तारीफ करते हुए प्रतिमाह 15 रुपये छात्रवृत्ति की स्वीकृति दी थी। बेथन स्कूल (कालेज) से 1882 में कादम्बिनी ने बीए की परीक्षा पास कर तत्कालीन बंगाल की प्रथम स्नातक महिला बनने का श्रेय लिया। दूसरी सहपाठी थी चन्द्रमुखी बसु। बंगाल के पब्लिक इंस्ट्रक्शन विभाग (शिक्षा विभाग) के निदेशक जी. बैलेट ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कादम्बिनी एवं चन्द्रमुखी ने स्नातक कर बंगाल महिला शिक्षा में इतिहास रचा है। 10 मार्च 1883 के कन्वोकेशन में तत्कालीन कुलपति जे. रनोल्ड ने दोनों की प्रशंसा करने हुए महिलाओं के शिक्षा का पथ प्रदर्शक बताया था।
संघर्ष कर कराया था नामांकन
स्नातक करने के बाद कादम्बिनी ने कलकत्ता मेडिकल कालेज में 1883 में नामांकन के लिए आवेदन दिया तो महिलाओं के नामांकन का प्रावधान नहीं है, कहते हुए आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया। तब तत्कालीन बंगाल प्रेसिडेंसी के ब्रह्म समाजियों, पत्र-पत्रिकाओं ने महिला शिक्षा की आवाज बुलंद की। तब बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नन रिभर थामसन 29 जून 1883 को नामांकन की अनुमति दी। 'वामा बोधिनी' पत्रिका के अनुसार कादम्बिनी, कलकत्ता मेडिकल कालेज में नामांकन लेने वाली प्रथम बंगाली महिला छात्रा थी। 1888 में कादम्बिनी गांगुली को मेडिसीन में चिकित्सीय सेवा के लिए जीबीएमसी (ग्रेजुएड आफ बंगाल मेडिकल कालेज) की डिग्री मिली।
एक साथ ली तीन डिग्री
फरवरी 1893 में कादम्बिनी उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड के इडनबर्ग स्थित रायल कालेज आफ सर्जन में नामांकन लेने गई और अप्रैल में नामांकन कराया। मात्र तीन माह पांच दिन में एक साथ तीन डिग्री एलआरसीपी (लाइसेनट्रियेट आफ रायल कालेज ऑफ फिजिशियन), एलआरसीएस (लाइसेनट्रियेट आफ रायल कालेज आफ सर्जन), एलएफपीएस (लाइसेनट्रियेट आफ दी फैकेल्टी आफ फिजिशियन एंड सर्जन) ली।
नेपाल राज परिवार की चिकित्सक बनीं
पढ़ाई पूरी करने के बाद 16 नवंबर 1893 को कादम्बिनी वापस कलकत्ता आ गईं। 1896 में वह नेपाल राज परिवार की चिकित्सक बनीं और काठमांडू स्थित राज निवास में मृत्यु शैय्या पर लेटी राजमाता को निरोग कर ख्याति अर्जित की। 1899 में इडन महिला अस्पताल में चिकित्सक नियुक्त हुईं। कादम्बिनी पहली भारतीय महिला डाक्टर थीं। उन्हें मेडिकल स्कूल कालेज के महिला मेडिकल छात्राओं के बीच स्त्री रोग संबंधी विशेष व्याख्यान देने का कार्य सौंपा गया। इंग्लैंड जाने से पूर्व 1885 में दी नेशनल एशोसिएसन फार सप्लाईंग फीमेल मेडिकल एड टू दी वूमन ऑफ इंडिया से सम्मानित की गई थीं। जो लेडी डमरिन फंड के नाम से विख्यात था। इसके तहत अस्पताल के महिला वार्ड में जच्चा-बच्चा देखभाल करने वाली दाई के समान था। तीन सौ रुपये प्रतिमाह पर कादम्बिनी 1886 में लेडी डमरीन अस्पताल में नियुक्त हुईं। उसके साथ विध गुमुखी बोस भी उसी सेवा में कार्यरत थीं।
- जन्म - 18 जुलाई 1861 को भागलपुर में।
- विवाह - 12 जून 1883 को द्वारिका नाथ गांगुली से।
- निधन - 03 अक्टूबर 1923 को कलकत्ता में।
दायित्वों का किया निर्वहन
महिलाओं के विकास के लिए तत्पर रहने वाली कादम्बिनी बंगाल महिला संघ की सक्रिय सदस्य थीं। संघ की एक विदेशी सदस्य जेबी नाइट 1881 में जब इंग्लैंड वापस जाने लगी तो संघ की सचिव की हैसियत से कादम्बिनी ने बंगाली भाषा में उन्हें सम्मानित किया। 1889 में बम्बई में सर विलियम बेडरबन की अध्यक्षता वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पांचवें वार्षिक अधिवेशन में दस महिला सदस्यों में एक थीं। उस अधिवेशन में उनका सीरियल नंबर 1881 था। फिरोज शाह मेहता की अध्यक्षता वाले 1890 में कलकत्ता में हुए कांग्रेस के छठे अधिवेशन में भारतीय महिलाओं की ओर से सभा में धन्यवाद ज्ञापित किया था। ट्रांसवाल में महात्मा गांधी के कार्यों से प्रेरित होकर मिएचएसएल पोलक ने कलकत्ता में 'ट्रांसवाल इंडियन एशोसियोशन' बनाकर वहां रह रहे भारतीयों की सेवा कार्य शुरू किया तो कादम्बिनी कलकत्ता ब्रांच के एशोसियेशन की अध्यक्षा बनकर उत्साहपूर्वक काम करने लगी। 1907 में महिला डाक्टरों के एशोसियेशान आफ मेडिकल वूमेन नामक संस्था की भी सक्रिय सदस्य बनीं। 1915 में हुए मेडिकल कांफ्रेंस में भी उपस्थिति दर्ज कराई। 1922 में बिहार, उड़ीसा के कोयला खादानों के महिला श्रमिकों की स्थिति की जांच कमिटि की सदस्या की हैसियत से कवि कामिनी राय के साथ भ्रमण की थी। अपनी मित्र स्वर्णकुमारी देवी के सामाजिक कार्यों में भी सहयोग करती थीं।