आज भी डराती है जसबीर कौर को 13 अगस्त की मनहूस रात, बैलगाड़ी से भारत पहुंचा था परिवार
पाकिस्तान में 13 अगस्त 1947 को दंगाइयों ने लूटपाट करने के साथ-साथ घरों में आग लगानी शुरू कर दी थी। इसके बाद सब कुछ छोड़कर हजारों लोग भारत आ गए उसमें जसबीर कौर भी शामिल थीं।
भागलपुर [जितेंद्र कुमार]। 13 अगस्त 1947। अगले दिन भारत से टूटकर नए देश बने पाकिस्तान को आजाद होना था और 15 अगस्त को भारत को। तब पाकिस्तान (तत्कालीन हिन्दुस्तान) में दंगाइयों ने आतंक मचाना शुरू कर दिया। घरों में आग लगा दी, लोगों की हत्या और लूटपाट की जाने लगी। ऐसे में सेना ने दो घंटे के अंदर जगह खाली करने का हुक्म दिया।
यह कहानी जसबीर के बचपन की धुंधली यादों में शामिल है। बाकी कहानी उन्होंने अपने पिता सरदार अमरीक सिंह व मां शांति कौर से सुनी थी। जसबीर बताती हैं कि दंगे के कारण सारी पूंजी, घर, संपत्ति आदि सब कुछ छोड़कर उनके परिवार को भागना पड़ा था। यहां तक कि घर में गोहाल के नीचे गड़ा सोना भी छोडऩा पड़ा था। यदि सोना ले भी लेते, तो रास्ते में कोई लूट लेता। पाकिस्तान के गुजरावाला जिले के कलियांवाला गांव में जसबीर सिंह का परिवार रहता था। 13 अगस्त, 1947 को दंगाइयों ने लूटपाट करने के साथ-साथ घरों में आग लगानी शुरू कर दी। मिलिट्री ने गांव को सुरक्षा घेरे में लेकर दो घंटे में बस्ती खाली करने का आदेश दिया। यह सुनकर जसवीर की मां शांति देवी तंदूर तैयार कर आटा गूंथने लगीं। पड़ोसी आटे से भरे बर्तन के अलावा गूंथा हुआ आटा भी लेकर भाग गए। कपड़े, पहने गए जेवर आदि भी छीने गए। यद्यपि, इस दौरान कई अच्छे लोग भी मिले। कुछ लोगों ने इन्हें मस्जिद में बकरियों के बीच छिपा दिया। दंगाईयों के जाने के बाद रात के अंधेरे में पैदल ही कई लोग अमृतसर के लिए रवाना हुए थे। बैलगाड़ी पर बुजुर्गों और बच्चों को बिठाया गया। रास्ते में भारत जाने वाले और पाकिस्तान आने वालों के बीच ईंट-पत्थर भी चले। नजारा भयावह था। कुएं लाशों से भरे पड़े थे, लोगों को पानी तक नहीं मिल पा रहा था। जान बचाने के लिए लोगों को गुलाम, फातिमा, रेशमा जैसे नाम बदलने पड़े। सात दिन में ये भारत की सीमा में पहुंचे। कुछ दिन भारत सरकार के कैंप और फिर 20 दिन अमृतसर स्वर्ण मंदिर में रहे। ठिकाने की तलाश में कुछ दिन बीकानेर, अलीगढ़ और देवबंद में स्वजनों के यहां बिताए। इसके बाद रिश्तेदारों के आग्रह पर 1954 में जसवीर के पति सरदार अवतार सिंह ने भागलपुर में शरण ली। यहां साइकल की दुकान खोल जीविका साधन बनाया। जसबीर के दो पुत्र सुरजीत सिंह और विक्रमजीत सिंह हैं।
अभी भी याद आता है कलियांवाला : जसवीर कौर में मन में अभी भी पाकिस्तान के कलियांवाला गांव की यादें ताजा हैं। गांव में सभी समुदायों के लोग आपस में मिलजुल कर रहा करते थे। एक ही भट्ठी में तंदूरी रोटी बनती थी। बच्चे आपस में मिलकर खेला करते थे। जसबीर बताती हैं कि गांव की किराना दुकान से घर का रास्ता अभी भी उन्हें याद है। अब भारत से प्रेम है, पाकिस्तान लौटकर जाने की इच्छा नहीं है। विक्रमजीत सिंह ने बताया कि पाकिस्तान के गुजरावाला के कुछ लोग उनसे फेसबुक के माध्यम से जुड़े हैं।
मुख्य बातें
- पाकिस्तान में दंगाइयों के भय से खाली हाथ भागना पड़ा था जसबीर के परिवार को
- तब चार साल की थी जसबीर कौर, बैलगाड़ी से भारत पहुंचा था परिवार