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घर सजे मंजूषा से : बिहुला विषहरी लोककथा को मंजूषा पर उतारा, चक्रवर्ती देवी के इस संघर्ष को मरणोपरांत मिला सम्मान Bhagalpur News

चक्रवर्ती देवी का जन्म पश्चिम बंगाल के अंडाल स्थित अहमदाबाद में हुआ था। उनकी शादी नाथनगर चौक के समीप रामलाल मालाकार से हुई थी। उन्‍होंने मंजूषा कला को जिंदा किया।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 17 Feb 2020 12:41 PM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 12:41 PM (IST)
घर सजे मंजूषा से : बिहुला विषहरी लोककथा को मंजूषा पर उतारा, चक्रवर्ती देवी के इस संघर्ष को मरणोपरांत मिला सम्मान Bhagalpur News
घर सजे मंजूषा से : बिहुला विषहरी लोककथा को मंजूषा पर उतारा, चक्रवर्ती देवी के इस संघर्ष को मरणोपरांत मिला सम्मान Bhagalpur News

भागलपुर, जेएनएन। 'मंजूषा' की जननी चक्रवर्ती देवी ने अंग क्षेत्र की एक अनाम लोक चित्रकला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। किसी पुरस्कार या प्रोत्साहन की अपेक्षा किए बिना वह पूरी जिंदगी मंजूषा के लिए समर्पित रहीं। बिहुला विषहरी लोककथा को मंजूषा पर उतारा।

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कहते हैं चक्रवर्ती देवी जब एक बार रूई से बनी कूची पकड़ लेती थीं तो उनका हाथ आकार बनाकर ही रुकता था। मंजूषा में वह फूलों और पत्तियों के रंगों का इस्तेमाल करती थीं। इस कला के लिए उन्होंने कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था।

बंगाल में जन्म लिया, नाथनगर को दिलाई पहचान

चक्रवर्ती देवी का जन्म पश्चिम बंगाल के अंडाल स्थित अहमदाबाद में हुआ था। उनकी शादी नाथनगर चौक के समीप रामलाल मालाकार से हुई थी। असमय पति के गुजरने से कई तरह की मुसीबतें आईं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एक बार मंजूषा कला की कूची उठाई तो आखिरी सांस तक थामी रहीं।

इस तरह शुरू हुई बिहुला-विषहरी की पेंटिंग

इनकी कला को डिजाइनर सह साहित्यकार ज्योतिष चंद्र शर्मा ने सन 1978 में पहचाना। उनको सात शीट ड्राईंग पेपर उपलब्ध कराया। सलाह दी कि आप कागज पर भी मंजूषा बनाएं और बिहुला विषहरी लोककथा का चित्रण करें। फिर क्या था। जो पेंटिंग बनी उसे ललित कला अकादमी और ईस्टर्न जोनल कार्यालय को भी भेजा गया।

आखिरी बार बौद्ध महोत्सव में हुईं थी शामिल

2008 में चक्रवर्ती देवी ने वैशाली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव में चक्रवर्ती देवी ने मंजूषा कला का प्रदर्शन किया। यहां उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई। उन्हें वापस लौटना पड़ा। इसके बाद लगातार बीमार रहने लगीं।

मरने के बाद मिला सम्मान

बिहार कला सम्मान से सम्मानित चक्रवर्ती देवी ने 12 दिसंबर 2009 को जब उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके अंतिम संस्कार के दौरान न तो सरकारी और न गैर सरकारी संगठन के लोग घाट पर दिखे। बाद में सरकार को लगा कला की ऐसी विभूति को सम्मान देना चाहिए। 2013-14 में कला संस्कृति एवं युवा विभाग के माध्यम से ललित कला अकादमी ने उन्हें मरणोपरांत बिहार कला सम्मान दिया। इस अवार्ड को भतीजा राजेंद्र मालाकार ने ग्रहण किया।


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