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भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम : अंग्रेजों ने तोड़ दी गर्दन फिर भी नहीं झुके लाल बाबाजी, कर दिया यह कमाल

भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम लाल बाबा के नेतृत्व में सुपौल के कर्णपुर गांव से फूंका गया था नमक आंदोलन का बिगुल। गांधी और सुभाष के संदेश को पहुंचाते थे गांव-गांव इस संग्राम के थे विशेष दूत। फिरंगियों की एक न चली उनका बलिदान लोगों की जेहन में कैद है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 02:11 PM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 02:11 PM (IST)
भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम : अंग्रेजों ने तोड़ दी गर्दन फिर भी नहीं झुके लाल बाबाजी, कर दिया यह कमाल
भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम : सुपौल के क्रांति‍कारियों ने अंग्रेजों के छुड़ाए छक्‍के।

भरत कुमार झा, सुपौल। भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम : अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने वालों में जिले के कई लालों के नाम अंकित हैं। कोसी की मिट्टी के ऐसे लाल जिनके मजबूत इरादों के आगे फिरंगियों की एक न चली उनका बलिदान आज भी लोगों की जेहन में कैद है। उनके देश प्रेम के संकल्प ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। जिले के कर्णपुर गांव निवासी शिव नारायण मिश्र उर्फ लाल बाबाजी ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र के नाम न्योछावर कर दिया। कोसी क्षेत्र में नमक आंदोलन का बिगुल उन्हीं के नेतृत्व में उनके ही पैतृक गांव कर्णपुर से फूंका गया। भारत छोड़ो आंदोलन के वे नायक रहे। लाल बाबाजी स्वतंत्रता आंदोलन के विशेष दूत के रूप में जाने जाते थे। गांधी और सुभाष के संदेशों को गांव-गांव पहुंचाया करते थे।

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अंग्रेजी हुकूमत को उन्होंने नाक में दम कर रखा था। कई बार उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी। तरह-तरह की यातनाएं उन्हें झेलनी पड़ी। अंग्रेजों ने पैसे को आग में लाल कर उनके पूरे शरीर को दाग दिया था और उनकी गर्दन तोड़ दी गई जो जीवन पर्यंत सीधी न हो सकी परंतु फिरंगी उन्हें झुका नहीं सके। आजादी मिली लाल बाबाजी को भी सम्मान के साथ राजनीतिक पद के प्रस्ताव मिले लेकिन किसी पद को उन्होंने कभी नहीं कबूला। जीवन पर्यंत वे दूसरों की सेवा में लगे रहे। अफसोस कि आज उनकी स्मृति भी शेष नहीं...।

जब कर्णपुर से उठी राष्ट्रीय चेतना की लहर

कोसी के इलाके में सुपौल जिले के कर्णपुर गांव से शुरू किया था वतन के सिपाहियों ने नमक आंदोलन। 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने नमक सत्याग्रह को लेकर अपने चुने हुए 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम छोड़कर गुजरात के गांवों से होते हुए दो सौ मील दूर समुद्र तट पर स्थित दांडी तक की पैदल यात्रा की। अपने अनुयायियों के साथ वहां खुले ढ़ंग से कानून तोड़ते हुए नमक बनाया। गांधी की दांडी यात्रा के साथ देशवासियों में आमतौर पर राष्ट्रीय चेतना की लहर दौड़ गई।

सरकार द्वारा कर लगाने के कारण रोजमर्रे की जरूरत की कीमत बढ़ गई थी। इसी बीच अप्रैल-मई 1930 की गर्मी में कांग्रेस के छोटे बड़े स्वयंसेवकों ने नमक कानून का उल्लंघन किया। सुपौल जिले के कर्णपुर गांव में सुपौल-सहरसा मार्ग से सटे हनुमान गढ़ी में राजेंद्र मिश्र एवं रामबहादुर स‍िंह के नेतृत्व में सर्वप्रथम नमक बनाया गया। गंगा प्रसाद स‍िंह, शत्रुघ्न प्रसाद स‍िंह, चित्रधर शर्मा, लहटन चौधरी, साजेंद्र मिश्र, चंद्र किशोर पाठक आदि क्रांतिकारियों ने मिलकर नमक बनाया। जब नमक कानून तोड़ा जा रहा था उसी समय गोरी फिरंगी का आक्रमण हुआ और ये क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिए गए।


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