सीमांचल : दो हजार की जगह 11 सौ रुपये क्विंटल बिक रहा मक्का, किसान परेशान
सीमांचल में गत वर्ष किसानों के घर- घर जाकर मुुंहमांगी कीमत व्यापारी मक्का खरीदते थे। इस वर्ष दो हजार 22 सौ की जगह मक्का ग्यारह सौ रूपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। उसके लिए भी किसान गल्ला से लेकर रैक प्वाइंट तक मक्का पहुंचाकर व्यापारियों की चिरौरी कर रहे हैं।
सहरसा, जेएनएन। इस वर्ष बड़े पैमाने पर मक्का की खेती कर किसान उचित दाम ले पाने में सफल नहीं हो सके। कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन का इसपर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। गत वर्ष किसानों के घर- घर जाकर मुुंहमांगी कीमत व्यापारी मक्का खरीदते थे। इस वर्ष दो हजार 22 सौ की जगह मक्का ग्यारह सौ रूपये प्रति क्विंटल बिक रहा हैै। उसके लिए भी किसान गल्ला से लेकर रैक प्वाइंट तक मक्का पहुंचाकर व्यापारियों की चिरौरी कर रहे हैं।
पहले तो किसानों ने लॉकडाउन समाप्त होने के बाद कीमत बढऩे की उम्मीद से अपने घरों व अन्य जगहों में इसे रखे रहे, परंतु अब उसे भंडारण की व्यवस्था नहीं रहने के कारण बचाना कठिन हो रहा है। और जरूरत के मारे किसान व्यपारियों व जमाखोरो के हाथ लूटने के लिए विवश हो रहे हैं। किसानों को मक्का का लागत खर्च भी नहीं निकल पा रहा है। अब तक कोसी प्रमंडल मुख्यालय से 30 रैक से अधिक मक्का विभिन्न प्रांतों में भेजा जा चुका है, परंतु इतने बड़े उत्पादन के बाद किसानों के चेहरे से मुस्कान छीनी चली गई है।
कोसी के मक्का से मालामाल हुए दूसरे प्रदेश के व्यापारी
मक्का कोसी क्षेत्र का नकदी फसल माना जाता है। इसकी बदौलत किसानों का हर सपना पूरा होता रहा है, परंतु इसबार स्थिति पूरी तरह विपरीत है।
मक्का उत्पादन के समय हर दूसरे दिन सहरसा जंक्शन से पंजाब, आसाम, बंगाल आदि के लिए रैक विदा होता रहा। इसके अलावा विभिन्न बंदरगाहों से बंगलादेश और पाकिस्तान तक मक्का भेजा जाता है। इसके लिए व्यापारी गांव- गांव घूमकर किसानों से मक्का खरीदते हैं। किसानों को इसके लिए लाभकारी मूल्य भी प्राप्त होता था। इस वर्ष कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के कारण माल भेजे जाने की समस्या को लेकर किसानों का मक्का समय पर नहीं बिक सका। जिस उम्मीद से किसानों ने मक्का की खेती की, उसपर पानी फिर रहा है। किसान का मक्का आधे कीमत पर बिक रहा है। ऐसे में खर्च भी निकालना मुश्किल हो गया है। सहरसा रेलवे के रैक पर किसान अपना मक्का लाकर उसे बाहर के व्यापारियों के हाथ बेचने के लिए परेशान है। सहुरिया के महेन्द्र यादव कहते हैं कि गत वर्ष तक व्यापारी ट्रेकटर तराजू लेकर हमलोगों के घर पर आते थे, इसबार हमलोग आधी कीमत में उसे खुशामद कर बेचने के लिए मजबूर हैं। कोपा के सुकुमार ङ्क्षसह कहते हैं कि कीमत बडऩे के इंतजार में वे लोग कई महीने से मक्का अपने घरों में रखे रहे, परंतु अब इसे बेचना मजबूरी हो गया है। व्यापारी इसका नाजायज फायदा उठा रहे हैं।