Move to Jagran APP

खगडिय़ा में दुलर्भ बड़े गरूड़ ने बनाया बसेरा, पक्षी प्रेमियों में खुशी

ठंडक बढ़ते ही दूर देश से विदेशी मेहमान पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। मेहमान पक्षियों को यहां की आबोहवा पसंद आ रही है। भोजन भी आसानी से मिल जाता है। जिससे क्षेत्र के पक्षी प्रेमियों में खुशी की लहर है।

By Amrendra TiwariEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2020 05:05 PM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2020 05:05 PM (IST)
खगडिय़ा में दुलर्भ बड़े गरूड़ ने बनाया बसेरा, पक्षी प्रेमियों में खुशी
विश्व के 20 और भारत में पाए जाने वाले गरूड़ की नौ प्रजातियों में दुर्लभ है बड़ा गरूड़

खगडिय़ा,[अमित झा]। ठंड का मौसम आरंभ होते ही फरकिया में रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो गया है। इनमें से कुछ लाल रंग के हैं तो कुछ सतरंगे हैं। कुछ पक्षियों की चोंच नुकीली है तो कुछ की चम्मच सरीखी। यहां पहुंचने वाले सैलानी पक्षियों में गरूड़, सारस, साइबेरियन बत्तख व अन्य पक्षियों के झुंड शामिल हैं। ये नदियों और धार के किनारे शरण ले रहे हैं। मानसी के आसपास के क्षेत्र में कसरैया धार किनारे बड़े और छोटे गरूड़ दिखाई देने लगे हैं। खास बात यह है कि ठंड के मौसम में इस क्षेत्र में गरूड़ हर वर्ष पड़ाव डालने लगे हैं। जबकि कोसी किनारे पसराहा व गोगरी सर्किल नंबर- एक में सारस व साइबेरियन पक्षियों के झुंड का शान से चलना देखते ही बनता है।

loksabha election banner

कसरैया धार किनारे बड़े गरूड़ का बसेरा

कसरैया धार का किनारा मनोरम है। धार किनारे जंगली पौधों की बहुतायत है। इसके किनारे और आसपास सेमल वृक्षों की बहुतायत है। जहां गरूड़ घोषला बनाते हैं।ठंड के मौसम में यहां गरूड़ स्थाई पड़ाव बनाते हैं। प्रजनन के बाद अंडे से बच्चे निकलने तक पक्षीराज गरूड़ यहां टिके रहते हैं। इस वर्ष खास बात यह है कि गरूड़ों की प्रजाति में सबसे दुर्लभ बड़ा गरूड़ जिसे अंग्रेजी में ग्रेटर एजुकेट कहा जाता है, ने यहां बसेरा बनाया है। जबकि इसके पूर्व यहां छोटे गरूड़ और स्टोर्स समूह के गरूड़ की तरह ही दिखने वाले जाघिन पक्षी देखे जाते रहे हैं। इस बार बाड़े गरूड़ को देखकर स्थानीय लोग भी अचंभित हैं।

दुर्लभ है बड़ा गरूड़

जानकारी के अनुसार पूरे विश्व में स्टोर्स समूह वाले गरूड़ की 20 प्रजाति है। भारत में नौ प्रजाति पाए जाते हैं। जिसमें बड़ा गरूड़ दुर्लभ है। जो बहुत कम ही देखे जाते हैं। फिलहाल ये कसरैया धार के किनारे ठाठा गांव के आसपास सेमल के पेड़ पर घोषला बनाकर रह रहे हैं।

क्‍या कहते हैं इंडियन बर्ड कन्जर्वेशन नेटवर्क के स्टेट कॉडिनेटर

स्टेट कॉडिनेटर अरविंद मिश्रा ने कहा कि भारत में पाए जाने वाले गरूड़ की नौ प्रजातियों में बड़ा गरूड़ अति दुर्लभ माना जाता है। अगर यह खगडिय़ा क्षेत्र में दिख रहा है, तो यह जांच व शोध का विषय है। गरूड़ समय- समय पर स्थान परिवर्तन करते रहता है। दिसंबर माह इनके प्रजनन का माह होता है। छोटे गरूड़ के बच्चे उडऩे लायक मार्च तक हो जाता है। जबकि बड़े गरूड़ के बच्चे एक माह बाद अप्रैल तक उडऩे लायक होते हैं। खगडिय़ा जिले में छोटे गरूड़ और जाघिन पक्षी ठंड में पहले भी पाए जाते रहे हैं। पहली बार है कि बड़ा गरूड़ वहां दिख रहा है।

बनों के क्षेञ पदाधिकारी बोले होगा संरक्षण का उपाय

खगड़िया बनों के क्षेञ पदाधिकारी अजय कुमार सिंह ने कहा कि अगर बड़े गरूड़ यहां पाए जा रहे हैं, तो उसके संरक्षण को लेकर प्रयास किया जाएगा। उन्‍होंने कहा कि विभागीय स्‍तर से पहले इसकी गहन जानकारी प्राप्‍त की जाएगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.