28 साल तक सरहद पर पहरेदारी के बाद अब नौनिहालों को दे रहे अक्षर ज्ञान Bhagalpur News
ऑनरेरी लेफ्टिनेंट केके पांडेय हर दिन सुबह-शाम दबे-कुचले व आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाते हैं। इसके अलावे वे बच्चों को कॉपी किताब आदि भी मुहैया कराते हैं।
भागलपुर [अमरेन्द्र कुमार तिवारी]। देश की रक्षा के लिए सरहद पर आतंकियों से लडऩे वाले ऑनरेरी लेफ्टिनेंट केके पांडेय सेवानिवृति के बाद भी देश व समाज की सेवा में जुटे हैं। उन्होंने अब समाज से निरक्षरता के कलंक को मिटाने का बीड़ा उठाया है। इस काम में उनका साथ उनकी पत्नी निभा पांडे बखूबी निभा रही है। वे दोनों मिलकर गरीब बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। केके पांडे व निभा पांडेय की बेटी मेजर डॉ. गारगी पांडेय जम्मू-कश्मीर में मेडिकल कोर में पोस्टेड है।
जिंदगी का जंग जीतने के लिए शिक्षा जरूरी
ऑनरेरी लेफ्टिनेंट केके पांडेय हर दिन सुबह-शाम दबे-कुचले व आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाते हैं। इसके अलावे वे बच्चों को कॉपी, किताब आदि भी मुहैया कराते हैं। उनका मानना है कि शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है जो हर क्षेत्र में जिंदगी की जंग जीतने में सहायक सिद्ध होता है। समाज के हर बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल जाए तो शांति, अमन, चैन और समृद्धि का वातावरण स्वत: ही बन जाएगा। इससे राज्य और राष्ट्र को भी मजबूती मिलेगी। इसी जज्बे और जुनून के साथ वे समाज को सुशिक्षित बनाने में लगे हैं।
पिछले तीन साल से जगा रहे हैं शिक्षा की अलख
पीरपैंती गौरीपुर के मूल निवासी श्री पांडेय 2017 से सबौर के मीराचक गांव में अपना नया आशियाना बनाकर रह रहे हैं। तब से इस गांव केगरीब-गुरबों के बच्चों को निश्शुल्क अक्षर ज्ञान देने में लगे हैं। जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस समाज के पिछड़ेपन का कारण शिक्षा की कमी है। यहां के अभिभावक बच्चों को शिक्षा देने के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। जिस कारण बच्चे बड़े होते ही मजदूरी करने लगते हैं। बीते तीन वर्षों से अभिभावकों को समझा बुझाकर उनके बच्चों को अक्षर ज्ञान देने में सफलता मिली हैं। बहरहाल वे करीब चार दर्जन बच्चों को नियमित रूप से शिक्षा दे रहे हैं। ज्यादा वक्त मिल जाने पर वे पास के निजी स्कूल में भी जाकर बच्चों को स्वेच्छा से पढ़ाते हैं।
28 वर्षो तक देश की सीमा का किया सुरक्षा
ऑनरेरी लेफ्टिनेंट केके पांडेय ने 1977 में आर्मी में अपना योगदान दिया था। 28 वर्षो तक देश की सेवा की। इस दौरान वे असम, गोवा, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश एवं जम्मू एंड कश्मीर सहित अन्य जगहों पर देश की सरहदों पर दुश्मनों के नापाक मनसूबे को विफल बनाते रहे। 2005 में सेवानिवृति के बाद कुछ वर्षों तक वे पूना और चंडीगढ़ में रहे। वहां भी उन्होंने पास पड़ोस के सैंकड़ों बच्चों को निश्शुल्क अक्षर दान दिया।
स्वच्छता के प्रति भी कर रहे जागरूक
ऑनरेरी लेफ्टिनेंट जब बुजुर्गों की मंडली में बैठते हैं तो उन्हें भी जिंदगी में बचे शेष समय का उपयोग समाज सेवा में लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। लिहाजा स्वच्छता के स्वच्छता के प्रति जागरूक भी करते हैं। उनका मानना है कि हम समाज के लिए बेहतर काम करेंगे तो बच्चों में भी सेवा और सहयोग का भाव जगेगा।