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इस समाज में होली के मौके पर रंगों का प्रयोग है प्रतिबंधित, फूल बांटते हैं पुरोहित

यहां होली पर लाल-वसंती सखुआ के फूल बांटकर और पानी की बौछारों से आदिवासी होली मनाते हैं। खास बात यह है कि वे होलिकादहन की बजाय चुड़ैल रूपी होलाष्टक का वध करते हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 01 Mar 2018 10:45 AM (IST)Updated: Fri, 02 Mar 2018 10:24 PM (IST)
इस समाज में होली के मौके पर रंगों का प्रयोग है प्रतिबंधित, फूल बांटते हैं पुरोहित
इस समाज में होली के मौके पर रंगों का प्रयोग है प्रतिबंधित, फूल बांटते हैं पुरोहित

बांका [शंकर मित्रा]। बिहार के बांका जिले के बौंसी की होली अनोखी है। यहां होली पर लाल-वसंती सखुआ के फूल बांटकर और पानी की बौछारों से आदिवासी होली मनाते हैं। खास बात यह है कि वे होलिकादहन की बजाय चुड़ैल रूपी होलाष्टक का वध करते हैं।

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बुधवार को आदिवासी बहुल सरुआ पंचायत के साहूपोखर, श्यामबाजार, मैरचुन, सांगा पंचायत के विभिन्न आदिवासी टोलों में बहा सोहराय मनाकर प्रतीकात्मक चुड़ैल का वध किया गया । होली के अवसर पर आदिवासियों के पुरोहित हड़ाम मांझी गांव के लोगों का जीवन मंगलमय करने के लिए लाल-वसंती सखुआ के फूल बांटते हैं।

पुरुषों को अंजुली में तथा महिलाओं को आंचल में ये फूल दिए जाते हैं। अविवाहित लड़कियां हड़ाम मांझी के चरण आदरपूर्वक थाली में धोती हैं। पुरोहित के चरणामृत को घर-आंगन में छींटकर मंगलकामना की जाती है। आदिवासी समाज में रंगों का प्रयोग वर्जित है। सो आपस में पानी की बौछार कर होली का आनंद लेते हैं। पद्मश्री चित्तू टुडू के आदिवासी भाषा में लिखे साहित्य में भी पानी की होली का उल्लेख है।

ताहे-ना ताहे गीत गाकर आदिवासी होली पर बहा सोहराय पर्व मनाते हैं। आदिवासी समुदाय के लोग होलिका दहन के बजाय तीर-धनुष से चुड़ैल रूपी होलाष्टक का वध करते हैं। शोभापाथर निवासी सह प्रखंड प्रमुख बाबूराम बास्के ने बताया की आदिवासी संस्कृति को बचाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है। अब आदिवासी अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं।


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