हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव : हिंदुत्व और भारत माता के लिए समर्पित थे शिवाजी
ज्येष्ठ शुल्क त्रयोदशी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव मनाया। इस दौरान शारीरिक दूरी आरएसएस के क्षेत्रीय प्रचारक ने वीडियो कॉफ्रेंसिंग करके संबोधित किया।
भागलपुर [दिलीप कुमार शुक्ला]। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बुधवार को हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव मनाया। सन 1674 में ज्येष्ठ शुल्क त्रयोदशी के दिन रायगढ़ के किले पर छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ था। उनके राज्याभिषेक को आरएसएस अपने छह उत्सवों में शामिल किया है। इस अवसर पर वीडियो कॉफ्रेंसिंग के जरिए उत्तर-पूर्व (बिहार व झारखंड) क्षेत्र प्रचारक रामदत्त चक्रधर ने स्वयंसेवकों को संबोधित किया। क्षेत्र प्रचारक ने कहा कि संपूर्ण विश्व इस समय कोरोना नामक वैश्विक महामारी से जूझ रहा है। कोरोना से बचने और इसके प्रसार को रोकने के लिए स्वयंसेवकों की भूमिका सराहनीय है। यहां बता दें कि कोरोना वायरस से संक्रमण से बचने और इसके प्रचार को रोकने के लिए आरएसएस की सभी गतिविधियों का स्वरूप इन दिनों बदल गया है।
रामदत्त चक्रधर ने कहा कि शिवाजी महाराज का जन्म उस काल में हुआ था जिस समय यहां के कुछ सरदार विदेशी सत्ता की चाकरी करते थे। अपने अहंकार का पोषण करने के लिए आपस में लड़ते थे। यहां तक कि अपने विरोधियों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए विदेश सत्ता से सहयोग लेते थे। उस समय शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था। जीजाबाई ने गर्भ में पल रहे शिवाजी का उसी समय से ऐसा पालन पोषण किया कि देश के दुश्मन उन्हें देखकर दांतों तले अंगुली दवा लेते थे। शिवाजी एक ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए हर प्रकार से खुद को योग्य बनाया। उनकी नीति थी जैसे को तैसा 'शठे शाठ्यम समाचरेत'।
वे सामाजिक समरसता के प्रतीक थे। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए छोटे-छोटे रोजगार के आयाम खोले। उन्होंने सती प्रथा का विरोध किया। यहां तक कि उनके पिता के निधन के बाद उनकी चिता में अपनी मां को जलने नहीं दिया। इस कारण उनका समाज में विरोध किया, लेकिन वे विरोध सहते रहे और इस कुरीतियों को नष्ट कर दिया। उन्होंने गौ हत्या को बंद कराया। छुआछूत और जातिप्रथा को समाप्त कराया। ध्वस्त हुए मंदिरों का निर्माण कराया। उन्होंने मुगल आक्रांताओं से मुक्त कराकर भारत में हिन्दवी स्वराज की स्थापना की।
रामदत्त ने कहा कि शिवाजी धार्मिक थे, लेकिन धर्मभूरी नहीं थे। वे कठोर थे परंतु क्रूर नहीं थे। वे साहसी थे, लेकिन ठगी नहीं थे। वे व्यवहारिक थे, कितु ध्येयरहित नहीं थे, वे ऊंचे सपने पालते थे और इसे पूरा करते थे। वे कुशल रणनीतिकार थे। चरित्रवान ऐसा कि दुश्मन की स्त्रियों में भी माता का स्वरूप देखते थे। उनका संपूर्ण जीवन हिंदू समाज और भारत माता को समर्पित था।
क्षेत्र प्रचारक रामदत्त चक्रधर का बौद्धिक सुनने की सूचना पिछले कई दिनों से लगातार सोशल नेटवर्क से दी जा रही थी। आरएसएस और इसके अनुशांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं के अलावा आम लोगों ने भी इस कार्यक्रम में अपने-अपने घरों भाग लिया। कार्यक्रम के बाद सभी ने खड़े होकर प्रार्थना की।