यहां वन देवी की पूजा के बाद शुरू होती हैं फसलों की कटाई, दशकों से है परंपरा
जिले के चार सौ गांवों में पल रही अनूठी परंपररा। बहियारों में पीपल बरगद या फिर किसी झोपड़ी में वन देवी का स्थान मान किसान फसल की कटाई या फिर बोआई से पूर्व इसकी पूजा अर्चना करते हैं।
कटिहार [राजीव कुमार चौधरी]। उन्नत किसानी की पहचान वाले कटिहार जिले के गांवों में एक अनूठी परंपरा फल-फूल रही है। यहां के तकरीबन चार सौ से अधिक गांवों में वन देवी की पूजा होती है। बहियारों में पीपल, बरगद या फिर किसी झोपड़ी में वन देवी का स्थान मान किसान फसल की कटाई या फिर बोआई से पूर्व इसकी पूजा अर्चना करते हैं। किसानों में यह आस्था है कि वन देवी न केवल फसलों को प्राकृतिक प्रकोप से बचाती हैं, बल्कि वन देवी के प्रसन्न रहने से पैदावार भी अच्छी होती है।
परंपरा के पीछे दफन है सुंदर इतिहास
इस परंपरा के पीछे एक सुंदर इतिहास भी दफन है। बुजुर्गों के अनुसार दरअसल पूर्व में बहियारों में साधु-संतों का डेरा हुआ करता था। बड़े-बड़े मठ थे। उस दौरान स्वभाविक रूप से देवी-देवताओं का स्थान निर्धारित कर पूजा-अर्चना की जाती थी। बाद में बहियार का वह स्वरूप तो सिमटता गया, लेकिन देवी-देवताओं का वास बरकरार रह गया। संकट के समय इन स्थलों पर ग्रामीणों की चौपाल भी जमती थी और समस्या के समाधान पर विशद चर्चा होती थी।
फसल बोआई व कटाई के समय होता है उत्सव सा माहौल
जिले के मनसाही प्रखंड के चितौरिया पंचायत में भी यह परंपरा वर्षों से फल-फल रही है। इस समय गांव में गुटराज प्रभेद की लगी अगता धान की कटाई शुरु हो गई है। किसान सहदेव ङ्क्षसह, रामू ङ्क्षसह, सुरेश ङ्क्षसह, चंदन ङ्क्षसह, श्रीकांत मास्टर आदि किसान कहते हैं कि पूर्वज से ही यह परंपरा चली आ रही है। युवा पीढ़ी भी इसे भूल नहीं पाए हैं। उन्होंने कहा कि फसल रोपनी व कटनी के समय विशेष पूजा होती है। ऐसे में आम दिनों में भी अपनी मन्नत के अनुसार पूजा अर्चना करते हैं। यह किसानी से जुड़े लोगों में एक नया उत्साह का संचार भी होता है। इसी तरह जिले के मनिहारी, बरारी, अमदाबाद, आजमनगर, कदवा सहित कई अन्य प्रखंडों में वर्षों से यह परंपरा फलफूल रही है। इसके तहत भजन-कीर्तन का दौर भी चलता है।