महाशिवरात्रि : बाबा बैद्यनाथ के स्नान के लिए सुल्तानगंज से भेजा गंगाजल Bhagalpur News
इसी गंगा जल से महाशिवरात्रि के दिन बाबा बैद्यनाथ के विवाह के पूर्व चार प्रहर में चार बार इसी जल से स्नान कराए जाने की यह परंपरा अति प्राचीन है।
भागलपुर, जेएनएन। प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते हुए प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी सुल्तानगंज की पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा तट पर अवस्थित बाबा अजगवीनाथ के महंत प्रेमानंद गिरि ने गंगाजल भरकर अजगवीनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित युगल किशोर मिश्रा के हाथों बाबा बैद्यनाथ के स्नानार्थ जल भेजा गया। ज्ञातव्य है कि इसी जल से महाशिवरात्रि के दिन बाबा बैद्यनाथ के विवाह के पूर्व चार प्रहर में चार बार इसी जल से स्नान कराए जाने की यह परंपरा अति प्राचीन है।
चूंकि परंपरानुसार बाबा अजगवीनाथ के महंत को बाबा बैद्यनाथ मंदिर में प्रवेश वर्जित है। इसीलिए इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हुए पुरोहित के पूर्वजों के समय से ही उन्हीं के वंश परिवार के लोग इस जल को लेकर पूरी पवित्रता और निष्ठा के साथ बाबा बैद्यनाथ के दरबार में लेकर जाते हैं।
लगभग तीन दशक पूर्व ब्रह्मलीन हो चुके महंथ पुरुषोत्तम भारती ने इस परंपरा को स्पष्ट किया था। उन्होंने तब बताया था कि जब लगभग सात सौ वर्ष पूर्व गुरुभाई हरनाथ भारती और केदार भारती को दैनिक देवघर पदयात्रा के दौरान परीक्षा लेने के लिए बाबा बैद्यनाथ ने रास्ते के जंगल में सारा गंगाजल पी लिया था। तभी असमंजस में किंकर्त्तव्यविमूढ़ खड़े दोनों गुरु भाइयों को स्वयं बाबा बैद्यनाथ ने समाधान बताते कहा था कि अब प्रतिदिन पदयात्रा कर गंगाजल लेकर देवघर आने की आवश्यकता नहीं है। जाओ तुम्हारी तपस्थली पर मृगचर्म के नीचे मेरा विग्रह लिंग है। ब्रह्ममुहुर्त के दौरान सवा घंटे मैं उसी में समाहित रहूंगा। तुम्हें मेरी दैनिक पूजा और जलाभिषेक का पुण्य उसी विग्रह लिंग की पूजा से प्राप्त होगा। साथ ही बाबा बैद्यनाथ ने निर्देशित किया था कि महाशिवरात्रि पर मेरे चतुष्प्रहर स्नान के लिए गंगाजल तुम ही वहां से भिजवाओगे। लेकिन किसी भी स्थिति में तुम दोनों या तुम्हारे उत्तराधिकारियों को मेरे गर्भगृह में प्रविष्ट नहीं होना है। तभी ये परंपरा आज तक चली आ रही है। आज भी यहां के स्थानापति महंथ देवघर मंदिर में नहीं जाते हैं और प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर बाबा बैद्यनाथ के चतुष्प्रहर स्नान के लिए गंगाजल मंदिर के तीर्थपुरोहित के वंशजों से विजया एकादशी तिथि को भिजवाया जाता है।