बिहपुर और खरीक में अस्सी के दशक से गंगा-कोसी मचा रही तबाही, कटाव से उजड़ गया तीस हजार परिवार Bhagalpur News
हर साल कटाव से विस्थापितों की संख्या बढ़ती जाती है। अबकी लोकमानपुर भवनपुरा सिंहकुंड मैरचा कहारपुर गोविंदपुर में कोसी का तांडव जारी है। गंगा में कटाव से लोग परेशान हो रहे हैं।
भागलपुर [धीरज कुमार]। नवगछिया अनुमंडल के खरीक और बिहपुर प्रखंड में बीते चार दशक में तीस हजार आबादी गंगा और कोसी के कटाव से विस्थापित हो चुकी है। इनमें सैंकड़ों लोग पुनर्वास की आस में स्वर्ग सिधार गए। हजारों लोग परदेश चले गए। यहां बाकी बचे लोगों की जिंदगी खाली पेट सडकों और बांध किनारे खुले आसमसन के नीचे गुजर रही है। लेकिन प्रशासन ने आजतक इनकी सुध नहीं ली। बाढ़-कटाव में इनका सबकुछ छीन गया है। बड़े किसान मजदूर बन गए हैं। यहां हर साल कटाव से विस्थापितों की संख्या बढ़ती जाती है। अबकी लोकमानपुर, भवनपुरा, सिंहकुंड, मैरचा, कहारपुर, गोविंदपुर में कोसी का तांडव जारी है। अबतक दर्जनों घर और सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन कोसी में विलीन हो चुकी है। यहां से विस्थापित होकर सैकड़ों लोग चोरहर बांध और सड़क किनारे शरण ले रखे हैं।
सरकारी आंकड़ों में विस्थापितों की संख्या महज पांच हजार
सरकारी आंकड़ों में विस्थापित परिवारों की संख्या महज पांच हजार बताई गई है। इनमें से भी महज 405 महादलित परिवारों को तीन-तीन डिसमिल जमीन दी गई है। 87 महादलित परिवार को जमीन मुहैया कराने की प्रक्रिया जारी है। विस्थापितों के पुनर्वास के लिए जिला प्रशासन द्वारा तीन एकड़ जमीन भूअर्जन विभाग के तहत खरीद की गई थी। खरीक की जिला पार्षद कुमकुम देवी ने कहा कि कटाव से तीस हजार लोग बेघर हुए हैं, जो आज भी पुनर्वास की आस लगाए बैठे हैं। जिला पार्षद गौरव राय ने कहा कि कुछ ही कटाव पीडि़तों को जमीन मिली है। बाकी भगवान भरोसे जिंदगी गुजार रहे हैं।
80 के दशक से जारी है कटाव
80 के दशक से खैरपुर, काजीकौरैया, नरकटिया, झांव, अठगामा, राघोपुर, भवनपुरा, लोकमानपुर, सिंहकुंड, चोरहर, ढोढिया आदि गांवों में कटाव हो रहा है। इस दौरान काजीकौरैया में 3100, भवनपुरा में 5000, लोकमानुपर में 3500, सिंहकुंड में 1500, चोरहर में 5500, ढोढिया में 3500, पीपरपांती में 1875, कालूचक में 2800, विश्वपुरिया में 1500, मैरचा में 3101, राघोपुर में 1400 परिवार विस्थापित हो चुके हैं।
बीडीओ सुधीर कुमार ने कहा कि कटाव पीडितों से जिला प्रशासन को पूरी हमदर्दी है। पुनर्वास के लिए कई विस्थापितों को जमीन का पर्चा दिया गया है। बाकी लोगों के लिए भी विचार-विमर्श चल रहा है।