गांधी, लोहिया व जेपी के भक्त थे कर्पूरी ठाकुर, जेल में कैदियों को देते थे प्रेरक गुणों की जानकारी
केंद्रीय कारा में पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की दिनचर्या सादा जीवन उच्च विचार का पर्याय थी। वे जेपी आंदोलन से जुड़े भागलपुर के कार्यकर्ताओं को गांधी लोहिया जेपी की जनसेवा व नेतृत्व के प्रेरक गुणों की जानकारी देने के साथ कैदियों को उचित सुविधाएं दिलाने का भी प्रयास करते थे।
भागलपुर [विकास पांडेय]। आपातकाल में भागलपुर के जुब्बा सहनी केंद्रीय कारा में बंद पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की दिनचर्या सादा जीवन, उच्च विचार का पर्याय थी। वे जेपी आंदोलन से जुड़े भागलपुर के कार्यकर्ताओं को गांधी, लोहिया, जेपी की जनसेवा व नेतृत्व के प्रेरक गुणों की जानकारी देने के साथ आम कैदियों को उचित सुविधाएं दिलाने का भी प्रयास करते थे।
उनके साथ मीसा में बंद भागलपुर के समाजसेवी प्रकाश चंद्र गुप्ता बताते हैं कि कर्पूरीजी को मीसा, डीआइआर, आइपीसी आदि की गहरी जानकारी थी। वहां जब उन्हें पता चला कि उन्हें व उनके साथियों को मीसा के तहत गिरफ्तार किया जाना निराधार है, तो उन्होंने इसकी जानकारी लेकर ऐसी मजबूत याचिका तैयार की थी जो पटना हाईकोर्ट में स्वीकार हो गई थी। उसके आधार पर भागलपुर के सभी कार्यकर्ताओं को जेल से रिहाई मिल गई थी। उनके पास निशुल्क सेवा देने वाले अधिवक्ताओं की बड़ी संख्या थी। राधारमण सरीखे उच्च कोटि के अधिवक्ता भी उसमें शामिल थे। इस कारण हर कार्यकर्ता को कोर्ट फीस के 60 रुपये के अतिरिक्त कोई खर्च नहीं देना पड़ा था।
कैदियों की समस्याओं का लेते थे जायजा
वे गांधी, लोहिया व जेपी के अनन्य भक्त थे। जेल में हर दिन सुबह 1-2 घंटे तक वे हम कार्यकर्ताओं को इन राजनेताओं के प्रेरक गुणों की जानकारी देते थे। वे उन्हें नेतृत्व के गुणों की भी शिक्षा देते थे। वह कहा करते थे कि जैसी भी परिस्थिति हो उसका सदुपयोग करना चाहिए। पूरा जेल परिसर घूमकर वे सभी कैदियों को मिलने वाली सुविधाओं का जायजा लेते थे। कोई कमी मिलने पर जेल प्रशासन से कह कर उसे दूर कराते थे।
सीएम बनने पर 18 घंटे करते थे काम
कर्पूरी जी मधुमेह के मरीज थे। इसके इलाज के लिए वह प्रतिदिन ढाई सौ ग्राम कच्ची करेली का रस लेते थे। उसके बचे हुए अंश की सब्जी तैयार करा लेते थे। मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने भागलपुर सहित सूबे के सभी काराओं में अपेक्षित सुधार कार्य कराए थे। उस दौरान वे 18 घंटे तक कार्य करते थे। दौरे के वक्त उनके काफिले में तीन-चार गाड़ियां ही होती थीं। सभी कार्यकर्ताओं के लिए उनका दरबार खुला था। उन्होंने शिक्षा में बदलाव लाने, बेरोजगारी व महंगाई पर नियंत्रण पाने, गरीबी दूर करने आदि की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए। वे भ्रष्टाचार रहित प्रगतिशील बिहार की स्थापना करना चाहते थे। वह कहते थे सभी को सामाजिक विसंगतियों व अन्याय का प्रतिकार करना चाहिए।
दंगा पीड़ित मोहल्लों का किया था भ्रमण
1989 के भागलपुर दंगे के दौरान भी वे पीड़ितों का जायजा लेने यहां आए थे। उस वक्त वे विरोधी दल के नेता थे। यहां उन्होंने दंगा प्रभावित चंपानगर के तांती बाजार सहित कई मोहल्लों व गांवों के दोनों समुदायों के पीड़ितों से मिलकर उनके जख्मों पर मरहम लगाए थे।