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'जीरो एफआइआर' दर्ज करना भूल गई जिला पुलिस

मायागंज के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज और अस्पताल टीओपी को छोड़ किसी भी थाने में आज तक 'जीरो एफआइआर' दर्ज नहीं की गई।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Mar 2018 12:34 PM (IST)Updated: Thu, 15 Mar 2018 12:34 PM (IST)
'जीरो एफआइआर' दर्ज करना भूल गई जिला पुलिस
'जीरो एफआइआर' दर्ज करना भूल गई जिला पुलिस

भागलपुर। (बलराम मिश्र) जिला पुलिस पीड़ितों की शिकायत पर 'जीरो एफआइआर' करना भूल गई है। मायागंज के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज और अस्पताल टीओपी को छोड़ किसी भी थाने में आज तक 'जीरो एफआइआर' दर्ज नहीं की गई। ये हैरानी की बात तो है पर आकड़े यही कहते हैं। इसे सुन कर ऐसा लगता है कि जिले में ऐसी कोई शिकायत आज तक आई ही नहीं, मगर सच्चाई कुछ और है। अपने थानों की सीमा मापने के लिए फीता लिए घूमने वाली पुलिस दूसरे थाना क्षेत्रों के केस में हाथ डालने से पीछे हटती है। ऐसे में शिकायतकर्ताओं को मामूली शिकायत के लिए वरीय अधिकारियों का चक्कर लगाना पड़ता है।

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क्या होती है 'जीरो एफआइआर'

'जीरो एफआइआर' किसी भी थाने में दर्ज की जा सकती है। भले ही वो घटना का अधिकार क्षेत्र हो या न हो। उचित धाराओं एफआइआर दर्ज कर उसे अलग रजिस्टर में इंट्री कर मामले की जांच के लिए संबंधित थाने को सुपुर्द कर दिया जाता है। जिस थाने में वो एफआइआर दर्ज होती है, वहा चल रहे एफआइआर के सीरियल नंबर में उसे शामिल नहीं किया जाता, इस लिए उसे जीरो नंबर दिया जाता है। जब वो एफआइआर संबंधित थाने में जाती है, तो वहा चल रहे सीरियल में से उसे नंबर दे दिया जाता है। उसके बाद संबंधित पुलिस उस एफआइआर की इन्वेस्टिगेशन शुरू करती है।

अनसुना करने वाले पुलिस कर्मी पर हो सकता केस दर्ज

दिसंबर 2012 को गुड़गाव में 23 वर्षीय लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के बाद 2013 को जस्टिस वर्मा समिति की रिपोर्ट को लागू करके आपराधिक कानून को संशोधित कर 'जीरो एफआइआर' को प्रावधान के रूप में लाया गया। हालाकि पुलिस कर्मी तथा अधिकारी जीरो एफआइआर के प्रावधान को जानते हुए भी उससे इंकार कर देते हैं। मगर रिपोर्ट के अनुसार अपराध किसी भी पुलिस स्टेशन के कार्य क्षेत्र में हुआ हो, शिकायत मिलते ही पुलिस को 'जीरो एफआइआर' दर्ज करनी ही होगी। ऐसा नहीं करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ धारा 166 ए के तहत केस दर्ज करने का प्रावधान है। इसमें उसे छह महीने की सजा के साथ विभागीय जाच का भी सामना करना पड़ सकता है।

महिलाओं और युवतियों को होती है सबसे ज्यादा परेशानी

जीरो एफआइआर नहीं होने से सबसे मुश्किल में महिलाएं और युवतियां आती है। जो थाने या पुलिस चौकी के सीमा विवाद में उलझकर वहां के चौखट नापती रहती हैं। अंत में उन्हें वरीय अधिकारियों के पास अपनी शिकायत लेकर जाती हैं। तब जाकर उनकी शिकायत थाने या पुलिस चौकी में रजिस्टर्ड होती है। ऐसे में 'जीरो एफआइआर' महिलाओं के अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है। 'जीरो एफआइआर' के प्रावधान के मुताबिक पीड़ित व्यक्ति चोरी के मामले की शिकायत उस थाने में दर्ज करा सकता है जो यात्रा के दौरान उनके दृष्टिकोण से निकटतम है।

इस संबंध में डीआइजी विकास वैभव ने बताया कि रेंज पीड़ित पक्ष को सीमा विवाद बताकर एक थाने से दूसरे थाने दौड़ाने का मामला गंभीर है। ऐसे मामलों में अविलंब 'जीरो एफआइआर' दर्ज कर संबंधित थाने या पुलिस चौकी को जानकारी देनी है। ऐसा नहीं करने वालों पुलिस पदाधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी

केस स्टडी : 1

सितंबर 2017 में बांका की युवती प्रिया परीक्षा देने के लिए एसएम कॉलेज रोड आई थी। तभी घुरनपीर बाबा चौक के नजदीकी उसके मोबाइल की छिनतई हो गई। वह जब जोगसर पुलिस चौकी शिकायत लेकर गई तो उसे वहां से तिलकामांझी उसके बाद वहां से बरारी भेज दिया गया। अंत में उन्होंने मामले की जानकारी एसएसपी को दी। तब उनकी पहल पर तिलकामांझी पुलिस चौकी में मामले की प्राथमिकी दर्ज हो पाई।

केस स्टडी : 2

हबीबपुर इलाके के गनौरा बादरपुर में 16 जुलाई 2017 को असामाजिक तत्वों ने आपत्तिजनक वस्तु एक धार्मिक स्थल पर फेंक दिया था। इस मामले में पूरी कार्रवाई के बाद जब केस दर्ज करने की बारी आई तो तत्कालीन थानेदार ने प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार करते हुए पहले घटनास्थल देखने की बात कही। इतने संवेदनशील मामले में भी उन्होंने लापरवाही की। मगर एसएसपी के निर्देश पर फिर मामला हबीबपुर में ही दर्ज हुआ।


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