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आफत की बारिश : सड़कों पर थोड़ी हलचल, गांव अभी भी सन्नाटे में Bhagalpur News

पांच दिनों से लगातार झमाझम बारिश के कारण घरों में कैद लोग बाहर निकल रहे थे। अधिकतर लोग नाथनगर और सबौर के इलाके में आई बाढ़ के बारे में जानने को उत्सुक थे।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 09:57 AM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 09:57 AM (IST)
आफत की बारिश : सड़कों पर थोड़ी हलचल, गांव अभी भी सन्नाटे में Bhagalpur News
आफत की बारिश : सड़कों पर थोड़ी हलचल, गांव अभी भी सन्नाटे में Bhagalpur News

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्र]। सोमवार दोपहर के वक्त बहुत हल्की बारिश हो रही थी। गुलाब जल के फुहार सी। उम्मीद बन रही थी अब बारिश थमेगी। यह उम्मीद सड़कों पर चहल-पहल बढ़ा चुकी थी। पांच दिनों से लगातार झमाझम बारिश के कारण घरों में कैद लोग बाहर निकल रहे थे। अधिकतर लोग नाथनगर और सबौर के इलाके में आई बाढ़ के बारे में जानने को उत्सुक थे। हर राह बाढ़ प्रभावित इलाके की ओर मुड़ गई थी। पीड़ितों की सहायता के लिए भी शहर से बड़ी संख्या में लोग निकले थे और बहुत उन्हें देखने के लिए। रास्ते में मिले धर्मेद्र कुमार, सूरज आदि कहते हैं कि हम देख-समझ रहे हैं, कमोबेश 2016 में आई बाढ़ जैसी स्थिति बन चुकी है।

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बारिश का कफ्यू समाप्त होते ही बाढ़ प्रभावित नाथनगर के इलाके में सड़कों पर बढ़ी गहमागहमी देहाती मेले जैसा नजारा बना रही थी। खासकर चंपापुल के उस पार। सड़क के नीचे पानी ही पानी और पानी में डूबे घर-पेड़ नजर आ रहे थे। सड़कों पर खानाबदोश सी जिंदगी जी रहे बाढ़ पीड़ित अपने-अपने पॉलीथिन के तंबुओं से निकलकर देह-हाथ सीधा करते नजर आए। पीड़ित सुरेश मंडल, गायत्री देवी आदि कहती हैं कि नीचे पानी और ऊपर से भी पानी से बचने की जद्दोजहद करते हुए हम थक से गए थे। वे आसमान की ओर निहारते हुए इंद्रदेव से रहम की गुहार लगाते हैं और गांव-घर में आई बाढ़ को लेकर चिंतित हो उठते हैं। सरकारी तौर पर कोई राहत उन्हें उपलब्ध भी नहीं हुई है।

यहीं चंपानगर पुल के पश्चिमी ओर गौतम से मुलाकात होती है। यहां से तकरीबन 10 किमी दूर वह भवनाथपुर के रहने वाले हैं। बरसाती में लिपटे गौतम मोटसाइकिल पर दूध का कंटेनर लेकर शहर जा रहे थे। वे कहते हैं- जिन्हें दूध देता हूं उनके घर में भी बच्चे हैं। बाढ़ में आना-जाना मुश्किल हो गया है। पर भैया! जिंदगी ठहरती है क्या भला? साथ ही जोड़ते हैं, एनएच और मुख्य सड़कों से इतर भी देखिए। गांवों की दशा काफी खराब हो गई है।

वाकई जो गांव एनएच के किनारे नहीं हैं वहां की दशा बेहद खराब है। रन्नूचक, रसलपुर, मकंदपुर, भवनाथपुर, भुवालपुर जैसे कई गांव डूबे हुए हैं। पक्का मकान वाले लोग तो अपने छतों पर रह रहे हैं, पर झोपड़ी वालों की शामत है। एनएच पर शरण लेने वाले पीड़ितों के लिए कम से कम समाजसेवियों की ओर से भोजनादि की व्यवस्था की जा रही है, पर गांवों के अंदर की दुर्गति को कोई देखने भी नहीं जा रहा है।

भवनाथपुर से रन्नूचक, छोटी भवनाथपुर की तरफ पानी में मुड़ते ही एक ऊंचे दरवाजे पर सात-आठ लोग बैठे थे। चुपचाप। मातम जैसा माहौल। उनकी ओर मुखातिब होते ही एक बुजुर्ग फट पड़ते हैं- आज सुध मिली है आपलोगों को! जाकर देखिए छोटी भवनाथपुर और डोमासी। रोज पानी बढ़ रहा है। खाने को भोजन नहीं, पीने को पानी नहीं। सांसद और विधायक और कोई नेता अभी तक हाल-चाल लेने नहीं आया है।

एनएच पर राहत कार्य में जुटी समाजसेवियों की कई टोली नजर आती है। यहां शरण लिए लोगों खासकर बच्चों के लिए यह बाढ़ कौतूहल से कम नहीं। यहां पीड़ितों को किसी से कोई शिकायत भी नहीं। ये दियारा के रहने वाले पीड़ित थे, जिनकी जिंदगी हमेशा गंगा के बीच ही बीती है। काले प्लास्टिक के ही एक तंबू में खाट पर लेटे बुजुर्ग उमेश मंडल कहते हैं कि अभी तो गंगा बढ़ रही है। 2016 की बाढ़ देख चुका हूं। यह जीवन का पहला मौका है कि दुर्गापूजा में बाढ़ आ गई। एक-दो दिन में पानी उतरने भी लगे तो तो भी एक पखवारा लग जाएगा और दुर्गापूजा ऐसे ही बीत जाएगी।


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