Move to Jagran APP

बाढ़ बना वरदान देसी मछलियां और डोका पकड़कर बेरोजगारी दूर कर रहे खगडिय़ा के लोग

कोरोना काल में बेरोजगारी का स्तर काफी बढ़ गया है। ऐसे में खगडिय़ा के कुछ युवा नदी-तालाब में मछली पकड़कर गुजर-बसर कर रहे हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sat, 12 Sep 2020 06:45 PM (IST)Updated: Sat, 12 Sep 2020 06:45 PM (IST)
बाढ़ बना वरदान देसी मछलियां और डोका पकड़कर बेरोजगारी दूर कर रहे खगडिय़ा के लोग
बाढ़ बना वरदान देसी मछलियां और डोका पकड़कर बेरोजगारी दूर कर रहे खगडिय़ा के लोग

खगडिय़ा, जेएनएन। बाढ़ वैसे तो बड़ी आबादी के लिए तबाही लेकर आती है, लेकिन कुछ ऐसे भी तबके हैं जिनके लिए बाढ़ खुशहाली लाती है। ऐसे लोगों को बाढ़ का इंतजार रहता है। इन्हें बाढ़ के समय मछली, केंकड़े आदि पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। इससे इनका पेट तो भरता है, इन्हें बेचकर ये कुछ आमदनी भी प्राप्त कर लेते हैं। लॉकडाउन में दिल्ली-पंजाब से घर लौटे कई मजदूरों के लिए बाढ़ इस बार वरदान से कम नहीं है। जिला मत्स्य पदाधिकारी भी कहते हैं- बाढ़ से मछली उत्पादन में वृद्धि तय है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में 27 हजार मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य है।

loksabha election banner

केस स्टडी: एक

महिनाथ नगर के सोनेलाल सदा पंजाब में मजदूरी करते थे। लॉकडाउन के आसपास गांव लौटे। गांव लौटने पर रोजी-रोटी की समस्या थी।जून में कोसी का पानी बढऩा शुरू हुआ और जुलाई में बाढ़ आ गई। मृत धार-चौर-चांप में पानी भर गया। जिसमें भरपूर देसी मछलियां हैं। आज सोनेलाल सदा सुबह-सुबह उठकर काली कोसी की उपधारा में जाकर मछली पकड़ते हैं। औसतन वे पांच किलो मछली पकड़ लेते है। प्रतिदिन उन्हें तीन से पांच सौ रुपये की आमदनी हो जाती है। जिससे छह सदस्यों का परिवार आसानी से चल रहा है।

केस स्टडी: दो

नंदू सदा दिल्ली में रिक्शा चलाते थे। लॉकडाउन में गांव लौटे। आज मछली और डोका पकड़ कर आसानी से गुजर-बसर कर रहे हैं। नंदू सदा कहते हैं- डोका दो सौ रुपये किलो बिक जाता है। दो-तीन घंटे की मेहनत में पांच-छह सौ रुपये रोज कमा लेते हैं। इसके साथ ही बाढ़ के कारण करमी और सरौंची साग भी पर्याप्त मात्रा में मिल रहा है। साग-रोटी, नहीं तो माछ-रोटी खाने में कोई दिक्कत नहीं है।

खगडिय़ा कैप्चर फिसरिज का इलाका है। बाढ़ में देसी मछलियां बहुतायत से आती है।इससे एक तबका को रोजी-रोटी मिलती है। वे मछली पकड़ कर जीवन-यापन कर लेते हैं।

-लाल बहादुर साफी, जिला मत्स्य पदाधिकारी, खगडिय़ा।

बाढ़ के साथ सहजीवन की अवधारणा रही है। जिससे हम भूलते जा रहे हैं। बाढ़ हर अर्थ में विनाशकारी नहीं है। यह खुशहाली भी लाती है। जल आधारित खेती को बढ़ावा देकर हम बाढ़ को वरदान में भी बदल सकते हैं। -कृष्णमोहन, जलयोद्धा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.