फजली आम की टहनियों पर कट रही बगडेर में जिंदगी
सबौर प्रखंड का बगडेर बगीचा। वर्ष 2016 में आई विनाशकारी बाढ़ में यहां के लोगों की पहचान बगडेर के पंछियों के रूप में स्थापित हुई थी।
भागलपुर। सबौर प्रखंड का बगडेर बगीचा। वर्ष 2016 में आई विनाशकारी बाढ़ में यहां के लोगों की पहचान बगडेर के पंछियों के रूप में स्थापित हुई थी। यहां रहने वाले पेड़ के दो मोटे तने के बीच बास-बल्लियों को जोड़कर मचान तैयार कर शरण लिए हुए हैं, हालांकि बाढ़ आने के पहले ही इन लोगों ने अपनी तैयारी कर रखी थी।
हर बार की तरह इस बगीचे में करीब एक महीने तक 10-15 फीट पानी रहता है। बगडेर में तकरीबन पांच दर्जन परिवार अभी भी रह रहे हैं। कैली देवी, जाखो देवी, सहोदरी देवी, मनकी देवी, रोहित कुमार सहित कई लोगों ने कहा कि सारी संपति और गाय यहां है। इसे छोड़ कर हम नहीं जा सकते हैं। करीब 40 परिवार अपने बाल-बच्चों के साथ पेड़ों और अपनी झोपड़ियों के झप्पर पर शरण लिए हुए है। अभी भी यहां पहुंच पाना सहज नहीं है। बड़े-बड़े फजली आम के पेड़ों पर झोपड़ियों में जिंदगी घिसट रही है। ये लोग भोजन करने प्रखंड मुख्यालय स्थित सरकारी शिविर में जाते हैं, जो नहीं जा पाते उनका भोजन यहां लाया जाता है। बातचीत के दौरान उन लोगों ने बताया कि हमें कोई दिक्कत नहीं है। यहां हर साल बाढ़ आता है और लोग पेड़ों पर शरण लेते हैं।
सरकारी है बगडेर बगीचा
बगडेर बगीचा सरकारी है और इसमें रहने वाले कटाव से विस्थापित। वहा अभी 116 परिवार रह रहे हैं। जबकि, अंचल को दिए गए विस्थापित भूमिहीनों की सूची में 350 परिवार के नाम हैं। वे लोग रजंदीपुर पंचायत के मूल निवासी है। 15 वर्ष पहले मोहदीनगर को ही गंगा निगल गई तो यहा आकर बस गए। अब सरकार से उम्मीद है कि वह यहीं पर बसा दे। इसी उम्मीद के चलते वे लोग बाढ़ में भी जगह छोड़कर कहीं नहीं जाते, क्योंकि यह जगह छूट जाएगी तो फिर वे लोग कहा जाएंगे?
खतरे को देख सीओ विक्रम भास्कर, थानाध्यक्ष अजय कुमार अजनवी, मुखिया, सरपंच आदि शुक्रवार की देर शाम उन लोगों को सरकारी शिविर में लाने पहुंचे, लेकिन बाढ़ झेल रहे लोगों ने आने से इंकार कर दिया। अपने सामान की सुरक्षा की दुहाई देकर लोगों ने कहा कि हम यहीं प्रत्येक वर्ष रहते हैं हमें कोई दिक्कत नहीं है। बहरहाल, बाढ़ पीड़ितों ने स्थानीय प्रशासन की एक नहीं सुनी और आने के लिए तैयार नहीं हुए। बैरंग वापस लौटना पड़ा।
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कोट .....
- प्रशासनिक स्तर पर बाढ़ पीड़ितों को शिविर लाने का प्रयास किया गया, लेकिन वे नहीं आए। उन तक भोजन आदि की व्यवस्था पहुंचाई जा रही है।
: विक्रम भास्कर सीओ सबौर