कोसी में बाढ़ : चारे के संकट से जूझ रहे हैं पशुपालक, आपदा प्रबंधन विभाग नहीं कर रहा व्यवस्था
कोसी क्षेत्र में बाढ़ से घिरे पशुपालक अब चारे के लिए परेशान हैं। उन्हें चारे के लिए दर- दर भटकना पड़ रहा है। बनमा इटहरी सलखुआ के लगभग एक सौ से अधिक पशुपालक जिला मुख्यालय में बसेरा लिए हुए हैं परंतु इनलोगों को भी चारा की व्यवस्था नहीं की गई।
सरहसा, जेएनएन। कोराना संक्रमण के कारण इस वर्ष बाढ़ प्रभावित इलाके के लिए प्रशासन द्वारा पशुचारा का मुकम्मल प्रबंध नहीं किया जा सका। जिससे पशुपालक बेहद ही परेशान हैं। खासकर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के लोग अपने पशु के चारे के लिए दर- दर भटक रहे हैं।
आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा पशु शेड में कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जहां बाढ़ पीडि़तों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, वहीं पशुचारा की घोर समस्या हो गई। प्रशासन द्वारा शुरूआती दौर एक दिन थोड़ा- बहुत पशुचारा का वितरण किया गया। उसके बाद न तो चारा की व्यवस्था की गई और न ही पशुओं को कहीं शिफ्ट किया गया। बनमा इटहरी, सलखुआ के लगभग एक सौ से अधिक पशुपालक जिला मुख्यालय में बसेरा लिए हुए हैं, परंतु इनलोगों को भी चारा की व्यवस्था नहीं की गई। पशुपालकों की इस मजबूरी का फायदा उठाते चारा विक्रेता मालामाल हो रहे हैं। जहां किसानों का मक्का 11 सौ रुपये बिक रहा है, वहीं जिला मुख्यालय से 17 सौ रुपये प्रति ङ्क्षक्वटल भूसा खरीदने के लिए पशुपालक परेशान हैं। भूसा की कीमत पर भी प्रशासन द्वारा कोई नियंत्रण नहीं किया गया। महिषी प्रखंड के झाड़ा निवासी गोनर सादा कहते हैं कि हमलोगों तो खुद खाने- पीने का प्रबंध नहीं है, वही पशु के चारे के लिए कर्ज लेकर जिला मुख्यालय में भटक रहे हैं। बघवा से रामसुंदर महतो,सिसवा से मोहन यादव आदि का कहना है कि हर वर्ष बाढ़ के समय पशुचारा का प्रबंध होता था,परंतु इस वर्ष कोई व्यवस्था नहीं रहने से उनलोगों की परेशानी बढ़ गई है।
घटा बाढ़ का पानी, दिखने लगा बर्बादी का मंजर
सुपौल। पिछले कई दिनों से प्रखंड क्षेत्र में जमा बाढ़ का पानी गुरुवार से कम हो रहा है। पानी घटने के साथ ही क्षेत्र में हुई बर्बादी का मंजर सामने आ रहा है। जैसे-जैसे बाढ़ का पानी कम हो रहा है वैसे-वैसे बाढ़ से हुई तबाही नजर आने लगी है। एक तरफ बाढ़ ने जहां गांव-मोहल्ले व मुख्य सड़क को जोडऩे वाली सड़क को तोड़कर रख दिया है तो दूसरी तरफ प्रखंड क्षेत्र में सैकड़ों एकड़ में लगी धान की फसल बर्बाद हो चुकी है। कुछ क्षेत्र में पके धान अधिक दिनों तक डूबे रहने के कारण अब अंकुरण आ गया है जो किसी काम का नहीं रहा। तीन-तीन बार बीज खरीदकर रोपे गए धान की बर्बादी देख किसान निराश हैं। किसान प्रमोद यादव, नारायण यादव, हरखित यादव, बिनोद कुमार यादव, जगरनाथ महतो, बीरेंद्र कुमार यादव, राजेश आदि ने बताया कि महंगा बीज खरीदकर धान की रोपनी की थी। एक सप्ताह के अंदर धान की कटाई भी हो जाती लेकिन लगातार बारिश के कारण दूसरी बार आई बाढ़ में सैकड़ों एकड़ में लगी धान की फसल डूब गई।