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'देखलैं नि सत्तो के जीत होय छै.. ' हत्या के जुर्म में 20 साल तक घुटते रहे निर्दोष

20 साल पहले सुल्तानगंज के गंगा दियारा में खगड़िया जिला के परबत्ता स्थित खीराडीह (अगुआनी) निवासी मुहम्मद शमशेर की हत्या कर दी गई थी। हत्या का आरोप कोर्ट ने गलत करार दिया।

By Edited By: Published: Thu, 30 May 2019 02:02 AM (IST)Updated: Fri, 31 May 2019 10:00 AM (IST)
'देखलैं नि सत्तो के जीत होय छै.. ' हत्या के जुर्म में 20 साल तक घुटते रहे निर्दोष
'देखलैं नि सत्तो के जीत होय छै.. ' हत्या के जुर्म में 20 साल तक घुटते रहे निर्दोष

भागलपुर [कौशल किशोर मिश्र]। हत्या के जुर्म में खगड़िया जिले के छह निर्दोष 20 साल तक कानून की फांस में घुटते रहे। बेटे की हत्या के मामले में पड़ोसी मो. इंसान ने इनके खिलाफ भागलपुर के सुल्तानगंज थाने में केस दर्ज कराया था। सात लोगों को आरोपित बनाया गया था जिनमें से एक की मौत दस साल पहले ही हो गई थी। मो. इसान में आखिरकार इंसानियत जागी और उसने न्यायालय के समक्ष कबूल किया कि जमीन विवाद के चलते पड़ोसियों फंसाया था। इस बयान के आधार पर बुधवार को अष्टम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश एमपी सिंह की अदालत ने सभी छह आरोपितों को रिहा कर दिया।

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आरोपित हत्याकांड में बरी होने के बाद कोर्ट के बाहर आए तो उनके आंखों में आंसू छलक आए। 20 साल पहले सुल्तानगंज के गंगा दियारा में खगड़िया जिला के परबत्ता स्थित खीराडीह (अगुआनी) निवासी मुहम्मद शमशेर की हत्या कर दी गई थी। 22 फरवरी 1999 में सुल्तानगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज कराते हुए पिता ने पड़ोस के सात लोगों कपिलदेव मिस्त्री, शशि मंडल, कैलाश मिस्त्री, गणपति मिस्त्री, दिलीप मिस्त्री, पंकज मिस्त्री और रंजीत मिस्त्री को नामजद किया था। इंसान की गवाही में सत्य स्वीकारने के बाद न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि आरोपितों के विरुद्ध साक्ष्य नहीं है। अभियोजन केस को प्रूफ नहीं सका। इसलिए उन्हें हत्या के आरोप से मुक्त किया जाता है। कोर्ट में इंसान ने कहा कि आरोपित हमारे पड़ोसी हैं। सभी आरोपितों का उनसे भूमि विवाद चल रहा था। इसलिए संदेह पर हत्या के मुकदमे में नाम दे दिया था। हत्या करते किसी को नहीं देखा था। बता दें कि आरोपितों में से एक कैलाश मिस्त्री की दस साल पूर्व ही मृत्यु हो चुकी है।

देखलैं नि सत्तो के जीत होय छै.. फैसला सुनकर बाहर निकले आरोपितों में एक ने तो घर फोन लगा कर यह बोला 'देखलैं नि सत्तो के जीत होय छै.. आय होए गेलै। हाकिमे न आइऐ फैसला सुनाय देलकै। देखैं केसो करै वाला अंतिम-अंतिम म सच्चे बोली देलकै कोटहौ म।' कुछ इस तरह अपनी खुशी का इजहार फोन पर एक आरोपित ने किया। आरोपितों ने कहा कि वे और उनका परिवार हत्या के मुकदमे को लेकर रोज घुंट-घुंट कर जी रहे थे। रिहा हुए आरोपितों ने कहा उनके बच्चे यही सोचते थे कि कहीं बाबू जी को सजा तो नहीं हो जाएगी। शादी-विवाह सबकी चिंता। खैर भगवान ने उनलोगों की सुन ली।

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