फैक्ट्रियों में लगता रहा ताला, रोजगार का निकला दिवाला
भागलपुर। जिले में छोटे से लेकर बड़े उद्योगों की कमी के कारण बेरोजगारी की समस्या बढ़ ग
भागलपुर। जिले में छोटे से लेकर बड़े उद्योगों की कमी के कारण बेरोजगारी की समस्या बढ़ गई है। सरकार की योजनाओं के बाद भी नए उद्योग स्थापित नहीं हुए। जो बचे हैं, उनमें भी ताले लगने लगे हैं। बहरहाल, उद्योग स्थापित करने की दिशा में जहां सरकारी तंत्र विफल रहा है, वहीं नेताओं ने भी कभी इसके लिए आवाज बुलंद नहीं की। जनप्रतिनिधि व अफसर रोजगार का ढिंढोरा पिट रहे हैं, जबकि उद्योग स्थापित होता तो पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात आदि शहरों में दो लाख लोगों का पलायन थम जाता है।
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औद्योगिक परिसर था गुलजार :
बरारी स्थित बियाडा के औद्योगिक परिसर की स्थापना वर्ष 1974 में हुई थी। यहां उद्योग लगाने और फिर बंद होने का सिलसिला जारी है। फैक्ट्री बंद होने से रोजगार भी छीन गया। 66 उद्योग वर्तमान दौर में चल रहा है। इससे पूर्व फुटवेयर, वाटर सप्लाई, पीवीसी पाइप, ग्रीस, फुड प्रोसेसिंग, फर्नीचर आदि उद्योग बंद हो चुके हैं। वर्तमान में नए उद्योग स्थापित करने की दिशा में कार्य जारी है। ताड़ का गुड़ और नीरा तैयार करने की फैक्टरी चालू नहीं हुई।
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उद्योग की योजनाओं पर नहीं मिला बैंकों का साथ
जिले में कुटीर और लघु उद्योग से लोगों को जोड़ने की जिम्मेदारी जिला उद्योग महाप्रबंधक कार्यालय की है। 93 तरह के उद्योग लगाने की योजना है, लेकिन बैंकों का सहयोग नहीं मिल रहा। इसके लिए आरक्षण व जाति वर्ग के आधार पर सब्सिडी भी दी जा रही है। बावजूद, छोटे उद्योग में आटा चक्की, सैलून, ऑटो गैराज प्लास्टिक सामग्री, गेट ग्रिल व फर्नीचर उद्योग का विकास नहीं हुआ। सबौर की महिला समूह सेनेटरी पैड बनाने का कार्य कर रही है, लेकिन उन्हें भी सेनेटरी पैड तैयार करने के लिए उपकरण नहीं मिला। मकंदपुर में कागज की फैक्ट्री स्थापित नहीं हो सकी। रेडीमेड गारमेंट के लिए क्लस्टर बनाने की योजना धरातल पर नहीं उतरी। नाथनगर थाना के समीप दो दशक से कपड़ा रंगाई की फैक्ट्री बंद है। जिसे शुरू कराने की दिशा में पहल नहीं की गई।
स्पन मिल भी दे दी लीज पर
रेशम और सूती धागा उत्पादन में विदेशों तक अपनी पहचान बनाने वाली बिहार स्पन सिल्क मिल 1994 से बंद पड़ी है। इसकी स्थापना 1970 में हुई। यहां तसर, मलवरी और कोकुन से प्रतिदिन 150 किलोग्राम धागा तैयार होता था। इससे स्थानीय बुनकर को कभी धागे की कमी नहीं हुई। उद्योग विभाग ने 1993 में घाटे का सौदा मानकर फैक्ट्री बंद कर दिया। नतीजतन 372 कर्मियों की जीविका का साधन भी समाप्त हो गया। अब उद्योग विभाग ने जीरोमाइल के स्पन सिल्क मिल को स्मार्ट सिल्क सिटी के लिए लीज पर दे दिया। वहीं अलीगंज मिल को सीपेट कॉलेज को लीज पर दे दिया गया।
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जिले में उद्योग की स्थिति :
- कुटीर उद्योगों की संख्या : 1200
- सेनेटरी पैड बनाने वाली संस्थाएं : 50
- चावल मील : एक
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बरारी बियाडा में उद्योग की स्थिति :
- वर्तमान में संचालित उद्योग : 66
- निर्माणाधीन उद्योग : 10
- नए उद्योग की स्वीकृति : तीन
- बंद पड़ी ईकाइयां : 10
- विवाद की वजह से बंद ईकाइयां :13
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