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बीएयू संरक्षित खेती से किसानों को पढ़ा रहा पर्यावरण संरक्षण का पाठ

इस विधि से खेती करने पर मिट्टी का सूक्ष्म पोषक तत्व नष्ट नहीं होते। उसमें जो मित्र कीट होते हैं वे मिट्टी की खुद जुताई कर उसे भुरभुरा बना देता है, जिससे मिट्टी सांस लेता है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 25 Nov 2018 08:24 PM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2018 08:50 AM (IST)
बीएयू संरक्षित खेती से किसानों को पढ़ा रहा पर्यावरण संरक्षण का पाठ
बीएयू संरक्षित खेती से किसानों को पढ़ा रहा पर्यावरण संरक्षण का पाठ

भागलपुर [जेएनएन]। जलवायु परिवर्तन की चुनौती को कम करने तथा क्लाइमेट को स्मार्ट बनाने की दिशा में बिहार कृषि विश्वविद्यालय एवं कृषि विज्ञान केंद्र सबौर के वैज्ञानिक अपने सामूहिक प्रयास से किसानों को पर्यावरण संरक्षण के लिए संरक्षित खेती का पाठ पढ़ा रहे हैं। उन्हें बताया जा रहा है कि अब परंपरागत खेती से काम नहीं चलेगा। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नवीनतम तकनीक से खेती करनी होगी। तभी हम प्रकृति के अनमोल उपहार मिट्टी, पानी और हवा को आने वाली पीढिय़ों के लिए सुरक्षित रख पाएंगे। कृषि विज्ञान केंद्र सबौर के प्रधान डॉ. विनोद कुमार ने कहा कि इसकी महत्ता को समझने के बाद अब जिले के गोराडीह, कहलगांव, सबौर एवं पीरपैंती के किसान संरक्षित खेती यानि जीरो टिलेज से शून्य जुताई के साथ धान, गेहूं, मक्का एवं मसूर की खेती कर रहे हैं।

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क्या हैं फायदे

उन्होंने कहा कि इस विधि से खेती करने पर मिट्टी में निहित सूक्ष्म पोषक तत्व नष्ट नहीं होते हैं। उसमें जो मित्र कीट होते हैं वे मिट्टी की खुद जुताई कर उसे भुरभुरा बना देता जिससे मिट्टी को सांस लेने में आसानी हो जाती है। मिट्टी में जल धारण क्षमता बढ़ जाती है। जिससे फसलों में सिंचाई के लिए 40 फीसद कम पानी की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा खेतों में जो फसल अवशेष होते हैं उसके सडऩे-गलने से ह्यूमस का निर्माण होता है जो मिट्टी को उपजाऊ बनाने का काम करता है। शून्य जुताई से ग्रीन गैस का उत्सर्जन भी कम होता है। जो पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक है। इतना ही नहीं किसानों को खेती में लागत की कमी होती है और समय का भी बचत होता है।

टिकाऊ खेती व पर्यावरण संरक्षण के लिए क्लाइमेट स्मार्ट विलेज

इसी कड़ी में बिहार राज्य में टिकाऊ खेती एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौती को कम करने की दिशा में चार क्लाइमेट स्मार्ट जोन बनाया जा रहा है। जिसमें पटना-नालंदा, दरभंगा-समस्तीपुर, पूर्णिया-कटिहार एवं भागलपुर-मुंगेर शामिल है।

तीन वर्ष में खर्च होंगे नौ करोड़

बीएयू के निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. आरके सोहाने ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण कि दिशा में ही राज्य के आठ जिलों को चार जोन में बांट कर क्लाइमेट स्मार्ट विलेज बनाया जा रहा है। इसके लिए राज्य सरकार को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग भारत सरकार द्वारा नौ करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। जो तीन वर्ष में खर्च किए जाएंगे।

25 गांव होंगे क्लाइमेट स्मार्ट विलेज

भागलपुर-मुंगेर जोन में 25 गांवों के 2500 परिवारों को जोड़ कर क्लाइमेट स्मार्ट विलेज बनाया जा रहा है। भागलपुर के 15 चयनित गांवों में गनगनिया से खेरैया तक आठ और कहलगांव प्रखंड के जोन मुहम्मदपुर से ढेवरी तक सात गांव शामिल है। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान सह मुख्य वैज्ञानिक ने कहा कि उक्त नवीनतम तकनीक के माध्यम से जिले के 15 गांवों के 945 एकड़ में गेहूं, 225 में मसूर एवं 445 में मक्का की खेती की जाएगी। इसमें कम से कम रसायनिक खाद एवं कीटनाशी दवा का प्रयोग किया जाएगा। जिससे फसलों के साथ-साथ पर्यावरण पर इसका कम प्रभाव पड़े। ये सभी चयनित गांव एनएच 80 के किनारे है ताकि बाहर से आने-जाने वाले किसान भी इस क्लाइमेट स्मार्ट विलेज की खेती को देख कर खुद सीख सकें।


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