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निजी क्लीनिक में स्थिति गंभीर हुई तो भेज दिया अस्पताल, JLNMCH में भी नाम दर्ज कर किया रेफर, तड़प कर बच्‍चे की मौत

सिस्टम से जूझता मौत के आगोश में समा गया आदर्श। निजी क्लीनिक में बच्चे की स्थिति गंभीर हुई तो भेज दिया अस्पताल जेएलएनएमसीएच में भी केवल रजिस्टर में नाम दर्ज कर किया गया रेफर। पेट दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल आया था।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 09:54 AM (IST)Updated: Wed, 22 Sep 2021 09:54 AM (IST)
निजी क्लीनिक में स्थिति गंभीर हुई तो भेज दिया अस्पताल, JLNMCH में भी नाम दर्ज कर किया रेफर, तड़प कर बच्‍चे की मौत
मामला तारापुर अनुमंडल मकवा के आठ वर्षीय आदर्श की मौत का

जागरण संवाददाता, भागलपुर। तारापुर अनुमंडल के आठ वर्षीय आदर्श की मौत डाक्टरों की संवेदनहीनता की वजह से ही हुई थी। निजी क्लीनिक से लेकर अस्पताल तक हर किसी ने उसकी जिंदगी से खिलवाड़ किया। पेट दर्द की शिकायत पर बच्चे के पिता ने एक सर्जन के क्लीनिक में उसे भर्ती कराया था, जहां उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में हालत और बिगडऩे पर क्लीनिक से उसे जेएलएनएमसीएच रेफर कर दिया गया। वहां मौजूद चिकित्सक ने भी उसे अन्यत्र रेफर कर अपनी जवाबदेही से मुक्ति पा ली। ...अंतत: आदर्श इस सिस्टम से जूझता हुआ मौत के आगोश में समा गया।

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अस्पताल अधीक्षक डा. असीम कुमार दास ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने रविवार की रात बच्चे के मौत के मामले की जानकारी इमरजेंसी में जाकर ली। उन्होंने कहा कि बच्चे को भर्ती नहीं कर सिर्फ रजिस्टर में नाम अंकित कर उसे रेफर कर दिया गया, जो गलत है। एसओडी और पीओडी भी ड्यूटी रूम में नहीं थे। डाक्टरों को बच्चे के बीमारी के बारे में आपस में सलाह भी करनी चाहिए थी। एसओडी और पीओडी बच्चे को देखते तो शायद यह घटना नहीं घटती। डा. दास ने कहा कि भले ही मामला सर्जरी विभाग का हो लेकिन इस बाबत सभी डाक्टरों से स्पष्टीकरण पूछा गया है।

क्लीनिक में कराए गए जांच रिपोर्ट और एक्सरे को देख लिया रेफर का निर्णय 

आठ वर्षीय आदर्श को पिता विनय कुमार स‍िंंह रविवार को मायागंज अस्पताल लेकर आए। इमरजेंसी में डा. दिनेश कुमार (शिशु रोग विभाग पीजी) ने देखा। बच्चे का इलाज भागलपुर के एक सर्जन के यहां भी हुआ था। गंभीर हालत होने पर अस्पताल भेज दिया। क्लीनिक में पहले कराए गए जांच रिपोर्ट और एक्सरे देखकर उसे रेफर कर दिया। सर्जरी के डा. विक्रांत भी सहित अन्य डाक्टरों ने बच्चे की तरफ देखा भी नहीं। वहीं एसओडी डा. काशीनाथ और पीओडी डा. शांतनु ड्यूटी (सीनियर रेजीडेंट) रूम में नहीं थे।

अस्पताल में इमरजेंसी से लेकर इंडोर विभागों में इलाज इंटर्न और पीजी के डाक्टरों के भरोसे 

मायागंज अस्पताल में लापरवाही कोई नई नहीं है। आए दिन इमरजेंसी से लेकर इंडोर विभागों में डाक्टरों या कर्मचारियों की लापरवाही सामने आती रहती है। सच्चाई तो यह है अस्पताल में इमरजेंसी से लेकर इंडोर विभागों में इलाज इंटर्न और पीजी के डाक्टरों के भरोसे होता है। कि सरकार और अस्पताल अधीक्षक के लाख प्रयास करने के बाद भी वरीय डाक्टरों अपनी ड्यूटी के प्रति सचेत नहीं रहते हैं। उन्हें कार्रवाई का भय भी नहीं रहता। स्थिति यह है कि सुबह की पाली में वरीय डाक्टर बैठा भी करते थे, अब जूनियर डाक्टर या पीजी के छात्र रहते हैं। यही वजह है कि मरीज की जब मौत हो जाती है तो स्वजन डाक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं। मामला स्वास्थ्य मंत्री और प्रधान सचिव तक भी जाता रहा है। आए दिन हंगामा भी होता रहता है। आउटडोर विभाग में कुछ विभागों को छोड़कर वरीय डाक्टर कुछ देर ही मरीजों का इलाज करते हैं, उनके जाते ही पीजी छात्र, इंटर्न इलाज करते हैं।

आर्थिक दोहन के बाद जब मामला बिगड़ता है तो निजी अस्पताल कर देते हैं रेफर 

भागलपुर में निजी चिकित्सालयों की स्थिति भी काफी बदतर है। वे किसी तरह की जवाबदेही नहीं लेते हैं। भरपूर आर्थिक दोहन के बाद अगर मामला बिगड़ जाता है तो वे सीधे सरकारी अस्पताल में रोगियों को रेफर कर देते हैं। यह भी सच्चाई है कि मामला ज्यादा बिगड़ जाने के बाद अस्पताल के डाक्टरों के हाथ बदनामी के सिवाय कुछ और नहीं आता। यहां निजी चिकित्सालयों पर नकेल कसने की मांग लगातार उठती रही है। पीडि़तों का कहना है कि कम से कम उन डाक्टरों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। मामला बिगडऩे के बाद कई बार हल्ला-हंगामे की खबर आती है लेकिन उसका कोई फलाफल नहीं निकलता है।

'एसओडी और पीओडी की लापरवाही सामने आई है। अगर स्पष्टीकरण का जबाव संतोषजनक नहीं आया तो कार्रवाई की जाएगी। इस मामले में बुधवार को विभाग के अध्यक्षों एवं अन्य डाक्टरों के साथ बैठक भी की जाएगी।' - डा. असीम कुमार दास, अस्पताल अधीक्षक


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