बिहार में पंचायत चुनाव के दौरान 20 साल पहले दहल उठा था जमुई, गोलियों की तड़तड़ाहट से सहम गए थे सभी, अब
बिहार में पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा की आम बात है। 20 साल पहले जमुई दहल उठा था। गोलियों की तड़तड़ाहट से सभी सहम गए थे। गोलियों की तड़तड़ाहट से थर्राया था इलाका। - होमगार्ड के एक जवान की हो गई थी मौत।
जमुई [अरविंद कुमार सिंह]। मतदान भवन की दीवारों से गोलियों की दाग मिट गई लेकिन लोगों के जेहन में उसकी गूंज अब भी बरकरार है। यह दीगर बात है कि उक्त मतदान केंद्र का नंबर भले नहीं बदला लेकिन वक्त बदलने के साथ सब कुछ बदल गया है। यहां तक की भवन का भी रंग बदल गया है। घटना के दिन उजला भवन आज गेरुआ रंग की चमक बिखेर रहा है। बदलाव मतदान केंद्र पर दिखा और चाक चौबंद सुरक्षा के बीच निर्भीक होकर लोग मतदान केंद्रों तक पहुंच रहे हैं।
इसकी बानगी बुधवार को मतदान के दौरान तब दिखी जब परिवर्तन और पांच साल में एक दिन का अवसर बताकर मतदाता मतदान के लिए लाइन में खड़े थे। बात 20 साल पुरानी है। 22 साल बाद पंचायत चुनाव कराए जा रहे थे। छिटपुट घटनाओं को छोड़ अलीगंज प्रखंड में शांतिपूर्ण मतदान चल रहा था। इस बीच दोपहर के 12 बजते ही वायरलेस पर कोदवरिया का तहसील कचहरी मतदान केंद्र संख्या 77 गूंजने लगा। प्रशासन से लेकर मीडिया की तमाम गाड़ियों का रुख उक्त मतदान केंद्र की ओर था। वहां पहुंचने के बाद जो नजारा दिखा वह निश्चित तौर पर दहशत कायम होने का कारण जानने के लिए पर्याप्त था। तहसील कचहरी मतदान केंद्र पर होमगार्ड के एक जवान की लाश पड़ी थी। कचहरी भवन पर उभरे सैकड़ों गोलियों की दाग पूरी घटना की कहानी बयां कर रही थी। दहशत ऐसी की साथ में तैनात अन्य पुलिसकर्मी भी अन्यत्र जा छुपे थे।
यही कारण भी था की जांघ में गोली लगने के बाद भी साथी जवान की जान बचाने में अन्य पुलिसकर्मी नाकाम रहे। बहरहाल बुधवार को कतार में खड़े मतदाताओं ने बताया कि उस समय एक पक्ष मतदान केंद्र पर कब्जा करना चाहता था और दूसरा पक्ष उसे बचाने की कोशिश में जवाबी फायरिंग कर रहा था। इसी गोलीबारी में होमगार्ड के जवान की गोली लगने से मौत हो गई थी। अब वह दौर नहीं है। वे लोग मतदान को उत्साह के साथ पर्व की तरह मनाते हैं। हर काम को छोड़ पहले मतदान उनकी प्राथमिकता है। वहीं मौजूद सबिया देवी कहती है कि पंचायत सरकार में परिवर्तन जरूरी है। पांच साल एक को मौका दिया, अब दूसरे को देंगे। सबिया की यह आवाज निश्चित तौर पर बदले वक्त की आवाज है। 20 साल में बदलाव की स्पष्ट तस्वीरें भी गांव में दिख रही है।
इस्लामनगर अलीगंज प्रखंड मुख्यालय से तकरीबन छह किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित उक्त गांव तक जाने के लिए तब टूटी फूटी सड़कें हुआ करती थी। आज चिकनी सरपट सड़कें और बिजली बदलाव की कहानी बयां करती है। यहां बता दें कि नक्सल प्रभावित इलाका में शुमार होने के कारण अलीगंज के दक्षिणी इलाके में अवस्थित कोदवरिया पंचायत में सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए गए थे। मतदान केंद्रों पर पर्याप्त संख्या में बिहार स्पेशल आर्म्ड पुलिस की तैनाती की गई थी। जबकि सीआरपीएफ के जवान हर आधे घंटे पर गश्त लगा रहे थे। यहां खुद पुलिस अधीक्षक प्रमोद कुमार मंडल भी मतदान का जायजा लेने पहुंचे थे।