Durga Puja 2020: भारत के साथ नेपाल के श्रालुओं के लिए भी आस्था का केंद्र है संसारी माई का दरबार
रंगेली नगर पालिका के वार्ड नंबर सात में संसारी माई नाम की माता दुर्गा मंदिर है जो लोगों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में प्रतिदिन भारत व नेपाल के सैकड़ों श्रद्धालु नतमस्तक होते है।
अररिया, जेएनएन। भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र के उत्तर दिशा में लगभग 15 किमी दूर नेपाल मोरंग जिला का रंगेली बाजार है। रंगेली नगर पालिका के वार्ड नंबर सात में संसारी माई नाम की माता दुर्गा मंदिर है जो लोगों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में प्रतिदिन भारत व नेपाल के सैकड़ों श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं। इस ²ष्टि से भी यह मंदिर भारत व नेपाल की संस्कृति एकता ही नहीं बल्कि दोनों देशों के दो दिलों को भी जोड़ता है। पुजारी राजू अधिकारी बताते हैं कि यह मंदिर आपरूपी है। यह शक्तिपीठ का एक स्वरूप है। मां दुर्गा पाखड़ पेड़ के रूप में प्रकट हुई है। मंदिर के पश्चिम दिशा में बह रही चिसान नदी मंदिर की शोभा बढ़ा रही है और मंदिर परिसर में स्थापित महाकालेश्वर नाम का शिवलिग अदभुत छटा बिखेर रहा है। मंदिर के पुजारी केदार नाथ ठाकुर ने बताया कि मंदिर का स्थान लगभग 1500 वर्ष पुरानी है। पाखड पेड़ के जड़ में अठारह हाथों वाली मां चंडी का चित्र बना है। जो अब भूमि के नीचे चली गई है। उसी स्थान पर अब अष्टधातु की मूर्ति स्थापित की गई है। नेपाल राजा के शासन में वैशाख की पूर्णिमा में राजघराने के लोग साल में एकबार विशेष पूजा करते थे। नेपाल नरेश राजा वीरेंद्र वीर विक्रम शाहदेव द्वारा अंतिम पूजा की गई थी।
फिलहाल दस वर्षों से श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी है। इस मंदिर की ख्याति दूर -दूर तक फैल रही है। पिछले साल मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए रंगेली नगर पालिका की तरफ से 25 लाख रुपये की सहायता राशि प्रदान की गई थी। वहीं निजी व गुप्त दान देने वालों का तांता लगा हुआ है। मंदिर के सौंदर्यीकरण का कार्य तेजी से हो रहा है।
मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मंदिर के भीड़ में 60 फीसद नेपाली तथा 40 फीसद भारतीयों को देखा जा सकता है। लोगों का मानना है इस मंदिर में मांगी गई हर मुरादें पूरी होती है। लोग मन्नत मांगते है और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है, ऐसा लोग कह रहे हैं। जिस कारण श्रद्धालुओं की आस्था बढ़ती जा रही है। शनिवार और मंगलवार की विशेष पूजा में लगभग पांच हजार से ऊपर लोग शामिल होते हैं। शादी -विवाह, मुंडन, हवन सहित कई अन्य अनुष्ठान मंदिर के प्रांगण में आयोजित किए जाते हैं। वहीं नवरात्रि के समय दस दिनों तक 51 पंडितों के द्वारा पूजा आयोजित होती है ।
यहां प्रतिदिन बलि दी जाती है। बलि में छागर, कबूतर, हंस की प्रधानता है। शनिवार के दिन दर्जनों की संख्या में बलि दी जाती है। पुजारी ने बताया कि एकादशी के दिन बलि निषेध है। बलि प्रदान की गई प्रसाद को मंदिर प्रांगण के अंदर ही ग्रहण किया जाता है। अपनी मन्नत को लेकर विराटनगर, काठमांडू, धरान, अररिया, पूर्णिया, कटिहार, सुपौल,किशनगंज , मधेपुरा, सहरसा आदि जिले के श्रद्धालु यहां पहुंचते है।