कुलपति प्रो. एनके झा के निधन से मर्माहत हैं गांव के लोग, तिलडीहा में नहीं मनेगी दिवाली
कुलपति नलिनी कांत झा के आकस्मिक निधन से दुखी ग्रामीणों ने इस साल दिवाली नहीं मनाने का निर्णय लिया है। उनके शोक में उन्होंने गांव-घर में एक दीया तक नहीं जलाने का फैसला किया है।
बांका (अमरकांत मिश्रा)। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति नलिनीकांत झा का हृदय गति रुक जाने से सोमवार को आकस्मिक निधन हो जाने की खबर मिलते ही उनके पैतृक गांव तिलडीहा में मातमी सन्नाटा पसर गया है। शिक्षाविद् के रूप में बिहार, पुडूचेरी सहित कई राज्यों में गांव का नाम रोशन करने वाले इस लाल के असमय निधन से शोक संतप्त लोगों ने गांव में इस बार दीपावली नहीं मनाने का संकल्प लिया है।गांव के गमजदा लोगों के मुंह से बस एक ही बात निकल रही है कि ऐन दीपावली के वक्त उनके गांव का चिराग बुझ गया। यहां के लोगों को उनसे काफी उम्मीदें थीं।
तिलडीहा में हुई थी प्रारंभिक शिक्षा
कुलपति नलिनी कांत झा अपने परिवार में छह बहनों के साथ इकलौते भाई थे। चार बहनें कल्याणी, अरूणा , सुमन एवं करूणा देवी उनसे बड़ी थीं। डेजी व लक्ष्मी उनकी छोटी बहनें थीं। नलिनी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव तिलडीहा के विद्यालय में हुई थी। उसके बाद उन्होंने तारापुर स्थित आदर्श उच्च विद्यालय से मैट्रिक करने के बाद वहां के आरएस महाविद्यालय से इंटर की थी। उन्होंने भागलपुर के टीएनबी कॉलेज से स्नातक उत्तीर्ण किया था। स्कातकोत्तर की परीक्षा मिथिला विश्वविद्यालय से पास करने के बाद वे एमफिल करने जेएनयू चले गए थे। उसके बाद उन्होंने समस्तीपुर महाविद्यालय में प्राध्यापक पद पर योगदान दिया था। वहां से वे केन्द्रीय विश्वविद्यालय पुडूचेरी चले गए थे। वहीं से आकर इन्होंने तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति का पदभार संभाला था। उन्हें दो पुत्र सौरव एवं गौरव व एक पुत्री निभा हैं। बड़ा पुत्र गौरव अमेरिका में इंजीनियर हैं। छोटा पुत्र सौरभ दिल्ली में पढ़ाई कर रहे हैं। इनकी सुपुत्री दिल्ली एम्स में डॉक्टर हैं। उनके पिता पंडित श्यामाकांत झा तारापुर उच्च विद्यालय में संस्कृत के शिक्षक थे। वे कर्मकांडों के विद्वान थे। आज भी इस क्षेत्र में उनके दर्जनों शिष्य हैं।
दशहरा में आए थे गांव, दीपावली में भी आने का दिया था भरोसा
कुलपति नलिनी कांत झा के निधन की खबर गांव में देखते ही देखते जंगल की आग की तरह फैल गई। यह दुखद समाचार सुनकर सभी लोग गम में डूब गए थे। उनके घर के सभी लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए भागलपुर स्थित उनके आवास पर जा चुके थे। घर पर ताले लटके हुए थे। फिर भी उनके घर के बाहर शोकाकुल लोगों की भीड़ जमा थी। उनके संबंधियों से लोग पूरी जानकारी प्राप्त कर रहे थे।
ग्रामीण इंदूकांत झा, विनोदानंद झा, दिवाकर झा आदि ने बताया कि नलिनी नेक, ईमानदार व हंसमुख स्वाभाव के थे। दशहरा की अष्टमी पूजा को वे सपरिवार गांव आए थे। उनके गांव तिलडीहा की दुर्गापूजा काफी प्रसिद्ध है। दसवीं तक उन्होंने सभी लोगों के साथ यहां दशहरे की खुशियां मनाई थीं। दो दिनों तक एक साथ रहकर उनसे बातें कर हमलोग काफी आनंदित हुए थे। उनके साथियों ने रूंआसा होकर बताया कि उन्होंने दीवाली में गांव आने का वादा किया था। लेकिन अपनी प्रतिभा से सूबे का नाम रोशन करने वाला गांव का वह होनहार दीपक इससे पहले ही अकस्मात बुझ गया।
गोद में खेलने वाला बच्चा हो गया विदा: शशिकला
भतीजे के अकस्मात साथ छोड़ जाने से शोकाकुल उनकी चाची शिवकला देवी ने ईश्वर को कोसते हुए कहा कि कभी उनके गोद में खेलने वाले बच्चे को हमसे छीन कर भगवान ने ठीक नहीं किया। अभी उसे विश्वविद्यालय के विकास के लिए कई काम करने थे। उनके घर की रखवाली करने वाले शालीग्राम मंडल रूंधे गले से कहते हैं कि उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का कुल खर्च मालिक ही वहन करते थे। उनके असमय चले जाने से उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है।
कुलपति नलिनी कांत झा के आकस्मिक निधन से दुखी ग्रामीणों ने इस साल दिवाली नहीं मनाने का निर्णय लिया है। उनके शोक में उन्होंने गांव-घर में एक दीया तक नहीं जलाने का फैसला किया है। पंचायत की मुखिया अनिता मिश्र, पूर्व मुखिया मनोज कुमार मिश्र, समाजसेवी धीरेन्द्र प्रसाद यादव, जन जागरण अभियान समिति के संयोजक रामजी यादव, भानू प्रताप सिंह आदि ने भी तिलकामांझी भगलपुर विवि के कुलपति के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक जताया है। उन्होंने भरे मन से कहा कि बांका ने कई राज्यों के जाने-माने शिक्षाविद् के रूप में अपना सबसे बड़ा लाल खो दिया है। निकट भविष्य में यहां उसकी भरपाई संभव नहीं दिखती है।