कोसी में इस बार भी विस्थापितों का पुनर्वास नहीं बन पाया चुनावी मुद्दा, एपीएल, बीपीएल और लीज नीति का भी फंस रहा पेंच
कोसी क्षेत्र में कटाव पीडि़तों को अब तक केवल आश्वासन मिलता रहा है। उनके लिए पुर्नवास की नीति तो बनी है लेकिन उसका लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है। यहां कटाव से अब तक 20 हजार से अधिक परिवार विस्थापित हो चुके हैं।
कटिहार [नीरज कुमार]। गंगा व महानंदा नदी के कटाव से हर साल दर्जनों परिवार विस्थापित होते हैं। विस्थापित परिवार सड़क किनारे एवं बांध पर अपना आशियाना बना यायावर की ङ्क्षजदगी जीने को विवश होते हैं। पिछले तीन दशक में गंगा व महानंदा नदी के कटाव से अब तक 20 हजार से अधिक परिवार विस्थापित हो चुके हैं। हलांकि सरकारी आंकड़ों में विस्थापित परिवारों की संख्या चार हजार से भी कम है। विस्थापन का कहर सबसे अधिक अमदाबाद, मनिहारी एवंं प्राणपुर प्रखंड में तटवर्ती गांवों पर टूटता है। विस्थापित परिवारों को पुनर्वासित करने के लिए न तो अब तक स्पष्ट पुनर्वास नीति बन पाई है और न ही किसी राजनीतिक दल ने पुनर्वास के मुद्दे को अपने चुनावी घोषणापत्र में ही शामिल किया है।
भू-अभिलेख प्रमंडलीय आयुक्त को भेजने की बस पूरी हुई है औपचारिकता
विस्थापित परिवारों को पुनर्वासित करने के नाम पर जमीन चिन्हित कर भू अभिलेख प्रमंडलीय आयुक्त को भेजने भर की औपचारिकता भर पूरी की जाती है। भू अभिलेख भी पुनर्वास को लकेर डेढ़ दशक पूर्व जारी दिशा निर्देश के मानक के अनुरूप नहीं होने के कारण तकनीकी त्रुटि के आधार पर वापस कर दी जाती है। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत बासगीत पर्चा एवं अभियान बसेरा के तहत कुछ विस्थापित परिवारों को पुनर्वासित करने की दिशा में पहल जरूर की गई है लेकिन हर साल बढ़ती विस्थापितों की संख्या के अनुपात में यह झुनझुना ही साबित होता है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के समय जनसभा में प्रत्याशी भी पुनर्वास को लेकर महज आश्वासन ही दे पाते हैं। केंद्रीय या राज्य स्तर से इसको लेकर किसी तरही की ठोस नीति का निर्धारण अब तक नहीं हो पाने के कारण विस्थापित परिवारों का पुनर्वास जिला प्रशासन के लिए यक्ष प्रश्न बनता जा रहा है।
लीज नीति की पेंच के कारण भी विस्थापितों के लिए ढूंढने से भी जमीन नहीं मिल पा रही है। तीन वर्ष पूर्व कुछ स्थानों पर जमीन चिन्हित किया गया था। लेकिन बसोबास के अनुकुल जमीन नहीं हो पाने के कारण यह कवायद आगे नहीं बढ़ पाई।
फाइलों में ही अटका है हर प्रयास, विस्थापितों को नहीं मिला लाभ
अगस्त 2003 में सहाय एवं पुनर्वास विभाग ने नदियों के कटाव से विस्थापित परिवारों को पुनर्वासित किए जाने को लेकर दिशा निर्देश जारी किया था। विभाग द्वारा जारी निर्देश पहली जनवरी 2003 से कटाव प्रभावित परिवारों को विस्थापित माना गया था। लेकिन एक एकड़ या इससे अधिक कृषि योग्य भूमि रहने पर ऐसे परिवारों को विस्थापित श्रेणी में नहीं माने जाने का निर्देश था। वास्तविकता यह है कि कटाव से नदी के गर्भ में घर विलीन होने से ही लोग विस्थापित हो रहे हैं। जबकि 2003 के बाद भी कई परिवार विस्थापित हो चुके हैं। 2003 में जारी निर्देश में बीपीएल श्रेणी के परिवारों को सरकार द्वारा भूमि क्रय करने एवं एपीएल परिवार को उनके खर्च पर बसोबास की जमीन दिए जाने की बात कही गई थी। लेकिन कई एपीएल श्रेणी के विस्थापित परिवारों का घर एवं कृषि योग्य जमीन भी कटाव से पदी में समा गई। इस दौरान एपीएल व बीपीएल श्रेणी की व्याख्या में संशोधन भी किया गया। लेकिन पुनर्वास के लिए एपीएल, बीपीएल श्रेणी में किसी तरह का संशोधन नहीं किया गया। सहाय एवं पुनर्वास विभाग का नाम बाद में बदलकर आपदा प्रबंधन विभाग किया गया। लेकिन किसी तरह की पुनर्वास नीति नहीं बन पाई। तत्कालीन जिलाधिकारी मिथिलेश मिश्रा ने पुनर्वास को लेकर आपदा प्रबंधन विभाग से पत्राचार कर स्पष्ट दिशा निर्देश की मांग की थी। विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के लिए वर्ष 1988 में जमीन अधिग्रहण किया गया था। लेकिन अर्जित जमीन पर वर्तमान में विस्थापित परिवार आवासित हैं या नहीं इसका कोई लेखा जोखा अंचल कार्यालय में संधारित नहीं है। बताया जाता है कि अधिकांश अधिग्रहित जमीन संबंधित इलाके के दबंगों का कब्जा है।