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भगवान वासुपूज्य का 1008 स्वर्ण व रजत कलश हुआ अभिषेक

भागलपुर के नाथनगर स्थित चंपापुर दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र में आयोजित दशलक्षण महापर्व का आयोजन हुआ।

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 08:25 PM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 01:32 AM (IST)
भगवान वासुपूज्य का 1008 स्वर्ण व रजत कलश हुआ अभिषेक
भगवान वासुपूज्य का 1008 स्वर्ण व रजत कलश हुआ अभिषेक

भागलपुर : नाथनगर स्थित चंपापुर दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र में आयोजित दशलक्षण महापर्व भक्ति भाव वातावरण में संपन्न हो गया। महापर्व के अंतिम दिन रविवार को सिद्धक्षेत्र के जल मंदिर में भगवान वासुपूज्य का निर्वाण महोत्सव सह उत्तम ब्रहमचर्य धर्म पूरी आस्था निष्ठा एवं परंपरागत उल्लास से मनाया गया। जाप अनुष्ठान के साथ भगवान महावीर की विशाल प्रतिमा पर 1008 स्वर्ण और रजत कलशों के जल से अभिषेक किया गया। भगवान को शांतिधारा के साथ निर्वाण लडडू अर्पित किया गया। श्रद्धालुओं ने विश्वशांति के लिए मंगलआरती और प्रार्थना की। इस अवसर पर भगवान वासुपूज्य के जयकारे से सिद्धक्षेत्र गूंजायमान हो रहा था। इस अवसर पर भगवान वासुपूज्य की खड़गासन प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक किया। समारोह में राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडू, बंगाल, बिहार और बंगाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे थे। केसरिया परिधानों में श्रद्धालुओं ने नमोकार मंत्र का जाप कर भगवान वासुपूज्य के मानस्तंभ की परिक्रमा की। इसके उपरांत तत्वार्थसूत्र ग्रंथ विवेचना पूर्ण की गई। भगवान के समक्ष निर्वाण लाडू अर्पित किया। समारोह में श्रद्धालुओं ने 'भव आताप, निवार, दशलक्षण पूजौ सदा' का सस्वर पाठ किया। कोतवाली चौक स्थित जैन मंदिर में सुबह पूजन किया गया।

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इस अवसर पर आर्यिका गंभीरमति और गरिमामति ने प्रवचन में कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण अनमोल है। अपने एक-एक पल का सदुपयोग कर समाज और राष्ट्र की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। दूसरों के साथ हमेशा नम्रता का व्यवहार करना चाहिए। सकारात्मक दृष्टिकोण से ही व्यक्ति और समाज का विकास होता है। सबके प्रति समता और बंधुत्व का भाव रखना चाहिए। चरित्र का वह आचरण, जो आत्मकल्याण के लिए किया जाता है, ब्रह्माचार्य है। आत्म स्वरुप में लीन रहने वाले ब्रह्माचारी है। उन्होंने कहा कि एक लंबे काल खंड के उपरांत जब श्रद्धालुओं को उपदेश देते भगवान वासुपूज्य के कर्म की पूर्णता छह माह शेष रह गए तो उन्होंने योग धारण किया और चार आघाती कर्म निर्जरा को प्राप्त हुए। तंदोपरांत भाद्र पक्ष शुल्क चतुर्दशी को आज ही के पावन दिवस पर 94 मुनीवरों समेत निर्वाण को प्राप्त हुए। देवों, मनुष्यों ने मिलकर पृथ्वी और आकाश तक को महोत्सव में रंगों रंग दिए। जो दिक-दिगंत तक अमरता का बोध करा गया। उन्होंने कहा कि दशलक्षण महापर्व आत्मिक उत्थान का महापर्व है।

महापर्व के समापन समारोह का संचालन सिद्धक्षेत्र मंत्री सुनील जैन ने किया। इस मौके पर श्रीगोपाल जैन, विजय रारा, पद्म पाटनी, मनीष जैन, सरोज जैजानी, जय कुमार काला, निर्मल कुरमावाला, अशोक पाटनी, डॉ. निर्मल जैन, शंकर लाल जैन, मुकेश जैन, अजय जैन, सुमित जैन आदि मौजूद थे।


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