Coronas impact: इस बार मुंबई नहीं जाएगी अमरपुर की डांडिया स्टिक
इस बार कोरोना के कारण अमरपुर की डांडिया स्टिक मुंबई नहीं जा सकेगी। इसको लेकर चोरवैय और भरको के दो दर्जन कारीगर परिवारों में निराशा। दो दशक से इस गांव का बना डांडिया स्टिक नवरात्रा में मचाता रहा है धूम।
बांका, जेएनएन। कोरोना काल वाले इस दशहरा में अमरपुर के गांवों में बनने वाला डांडिया स्टिक इस बार मुंबई और गुजरात के नवरात्र की शोभा नहीं बढ़ाएगा। कोरोना से फीका पड़े त्योहारी उत्सव ने इस बार डांडिया कारीगरों को भी निराश किया है। चोरवैय खरादी टोला और भरको गांव में दो दर्जन से अधिक परिवार वर्षों से इसका निर्माण करता रहा है। खासकर दुर्गापूजा से पहले व्यापारी इसका खूब ऑर्डर करते थे। पूजा से पहले ही हर साल बड़ी मात्रा में तैयार कलरफुल डांडिया स्टिक मुंबई से गुजरात तक पहुंच जाता था। लेकिन दोनों टोले में इसबार एक भी डांडिया स्टिक का ऑर्डर नहीं आया है। ऐसे में कारीगर लकड़ी का दूसरा खिलौना बनाकर अपनी जीविका चला रहे हैं।
कोलकाता के व्यापारी से नहीं मिला ऑर्डर
इसका सारा कारोबार कोलकाता के बाजार पर निर्भर करता है। कोलकाता के ही व्यापारी गांव के कारीगरों को दूधकोरैया की जंगली लकड़ी उपलब्ध कराते हैं। यह लकड़ी झारखंड और बंगाल के जंगलों में खूब होता है। इसी लकड़ी से डांडिया स्टिक के साथ कई खिलौना का निर्माण कारीगर करते हैं। कारीगर मु.रज्जाक, मु.रिजवान अंसारी, मुन्नी बीबी आदि ने बताया कि उनके परिवारों में लकड़ी का खिलौना और डांडिया स्टिक बनाने का काम वर्षों से हो रहा है। साल भर व्यापारी से मिले ऑर्डर पर वे लकड़ी का खिलौना बनाकर इसे कलर करते हैं। हर साल दशहरा से दो महीने पूर्व ही गांव में कोलकाता के व्यापारी लकड़ी पहुंचा कर डांडिया का ऑर्डर देकर जाते थे। महीने दो महीने तक सभी कारीगर के पास केवल डांडिया स्टिक निर्माण का ही काम रहता था। मगर इस बार एक भी डांडिया स्टिक का ऑर्डर नहीं आया है। व्यापारी के मुताबिक इस बार डांडिया स्टिक की डिमांड ही नहीं है।
कारीगरों को मिलती मजदूरी
खरादी टोला के कारीगरों ने बताया कि उनका काम व्यापारी के ऑर्डर पर निर्भर करता है। घर में बड़ों के साथ महिलाएं भी इस काम में जुड़ी हैं। उन्हें इसमें मुनाफा से मतलब नहीं है। डांडिया बनाएं या कोई और खिलौना लकड़ी व्यापारी ही उपलब्ध कराता है। उन्हें खिलौना बनाने पर संख्या के हिसाब से मजदूरी मिलती है। दक्ष कारीगर के काम पर उनके सदस्य दिन भर काम कर दो से तीन सौ रूपया ही कमा पाते हैं। तब अपने घर में काम करना परदेस जाने से अच्छा है। इसलिए वे लोग काम से जुड़े हैं।