Corona virus : हम बेवतनों को याद, वतन की मिट्टी आई है
लॉकडाउन! कोरोना! चारों तरफ हाहाकार मचा है। पुलिस लाठीचार्ज कर रही है वाहन चालक बेवजह सड़कों पर घूमने के कारण जेल भेजे जा रहे हैं।
भागलपुर [आनंद कुमार सिंह]। लॉकडाउन! कोरोना! चारों तरफ हाहाकार मचा है। पुलिस लाठीचार्ज कर रही है, वाहन चालक बेवजह सड़कों पर घूमने के कारण जेल भेजे जा रहे हैं। इसी हाहाकार में कोई 1200, कोई 1000 तो कोई 500 किलोमीटर पैदल चलकर बिहार के अलग-अलग हिस्सों में अपने घर लौट रहा है। इनमें कोई नौकरीपेशा, कोई मजदूर तो कोई छात्र है। सबकी अपनी अलग-अलग मजबूरी है और परिवार की चिंता भी इन्हें लौटने को मजबूर कर रही है। इन बेवतनों को मुसीबत की घड़ी में वतन की याद आई है।
लोग जाएं भी तो जाएं कहां और रहें तो कहां! काम-धंधा बंद हो गया है। मकान मालिक का भाड़ा, बीबी-बच्चों की रोटी का जुगाड़ कहां से करें। ये लोग रोज कमाने-खाने वाले लोग हैं। काफी कम आमदनी में किसी तरह परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। होटल बंद होने के कारण छात्रों को भी खाना नहीं मिल रहा है। यातायात के सभी साधन बंद हैं। इन परदेसियों को दुकानदार भी उधार देने से कतराते हैं। इस कारण ये अपने घर लौट रहे हैं। लगातार कई दिनों तक भूखे रहकर भी कई लोग बस चलते जा रहे हैं, साथ में बीबी-बच्चे भी हैं। इतना भरोसा है कि घर में किसी तरह इनकी रोटी का जुगाड़ हो जाएगा, अपनों के बीच पहुंच जाएंगे। मधेपुरा में 50 मजदूरों का जत्था लुधियाना से रविवार को पहुंचा। ये लोग दरभंगा तक मालगाड़ी से आए और इसके बाद वहां से पैदल। सुपौल में भी नेपाल से 54 मजदूरों का दल कोसी नदी के रास्ते पहुंच गया। अररिया में 42 मजदूर एक कंटेनर में बैठे मिले। ये लोग गुवाहाटी से हरियाणा जा रहे थे।
बताया कि काम-धंधा बंद हो चुका है। कई दिनों से ये भूखे हैं। घर-परिवार साथ में हो तो भूख भी बर्दाश्त हो जाती है, लेकिन बाहर नहीं। स्क्रीनिंग के बाद पुलिस ने इन्हें जाने दिया। कोयंबटूर के त्रिपुर में जमुई जिला के 350 लोग फंसे हुए हैं। उन्होंने बताया कि उस इलाके में हिंदीभाषियों की मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। इस कारण इन्होंने अपने परिजनों को वीडियो बनाकर भेजी। अमरजीत अपने छह साथियों के साथ पुलिस से बचते-बचाते बाइक से लखीसराय पहुंच गए। पेशे से राजमिस्त्री अजय भी पटना से पैदल पहुंच गए। पटना से कई छात्र पैदल ही जमुई-लखीसराय आ रहे हैं। जमुई के सुधांशु ने बताया कि पटना में खाने की काफी समस्या थी। अपनत्व नहीं मिल पा रहा था। पटना में होटल बंद होने के कारण इन छात्रों का वहां रहना मुश्किल हो गया था। तीन दिन पूर्व पांच लोग जुगाड़ गाड़ी खरीदकर दिल्ली से सहरसा पहुंचे। ऐसी कई मजबूरियां रोज सड़कों पर दिख रही है, इन्हें समझने और समझाने की जरूरत है।
घर को छोड़कर बाहर जाने की मजबूरी होती है। मुसीबत के समय अपने ही प्रिय होते हैं। लोगों को इस समय खुद से अधिक परिवार के बड़े-बुजुर्गों, बच्चों, पत्नी आदि की चिंता सताने लगती है। यही कारण है कि ऐसे समय लोग घर लौटना चाह रहे हैं। - मंजू गुप्ता, विवि प्राध्यापक सह अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग, आरडी एंड डीजे कॉलेज, मुंगेर