Corona Effect : शिक्षक भूल गए, हड़ताल टूटी थी लॉकडाउन के नियम नहीं, न मास्क और न शारीरिक दूरी का पालन
ढाई महीने से माध्यमिक प्राथमिक नियोजित और उच्च विद्यालयों शिक्षक हड़ताल पर थे। चार मई को हड़ताल समाप्त हो गई। इसके बाद सभी को योगदान करने का निर्देश दिया गया था।
भागलपुर, जेएनएन। लॉकडाउन-3 में शिक्षकों में शारीरिक दूरी का खूब उल्लंघन किया। जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में योगदान देने पहुंचे सैकड़ों शिक्षकों ने लक्ष्मण रेखा लांघी। शिक्षक कुछ समझने को तैयार नहीं थे। योगदान देने पहुंचे ज्यादातर शिक्षक बिना मास्क के थे।
भीड़ ज्यादा होने के बाद जिला शिक्षा पदाधिकारी को पुलिस बुलानी पड़ी। दरअसल, ढाई महीने से माध्यमिक, प्राथमिक, नियोजित और उच्च विद्यालयों शिक्षक हड़ताल पर थे। चार मई को हड़ताल समाप्त हो गई। इसके बाद सभी को योगदान करने का निर्देश विभाग की ओर से दिया गया था। योगदान के चक्कर में शिक्षकों ने लॉकडाउन का उल्लंघन कर दिया।
बेवजह शिक्षकों ने मचाई अफरातफरी
शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कहा कि शिक्षकों को खुद समझना चाहिए। योगदान देने के लिए किसी तरह की तिथि निर्धारित नहीं की गई थी। ऐसे में अफरातफरी मचाना सरासर गलत है। इधर, माध्यमिक शिक्षक संघ भागलपुर सदर के सचिव डॉ. रविशंकर ने शिक्षकों से लॉकडाउन पालन करने की अपील की है। वहीं, परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रमंडलीय अध्यक्ष राणा कुणाल सिंह ने शिक्षकों को शारीरिक दूरी बनाकर योगदान करने की बात कही। साथ ही मास्क लगाकर आने की अपील की।
आज से बीआरसी सेंटर में योगदान
हड़ताल में आठ हजार के आसपास शिक्षक थे। पहले दिन जिला शिक्षा कार्यालय में उमड़ी भीड़ के बाद शिक्षा विभाग ने संकुल संसाधन केंद्र (बीआरसी) में योगदान करने की व्यवस्था की है। बुधवार से जिले के सभी सेंटरों पर 10 से 15 अतिरिक्त काउंटर खोलने का निर्देश दिया गया है, ताकि भीड़ कम हो। वहीं, माध्यमिक और उच्च हाई स्कूल के शिक्षक डीपीओ-द्वितीय के यहां योगदान करेंगे।
बुधवार से बीआरसी सेंटर और डीपीओ के समक्ष योगदान करने की व्यवस्था की गई है। शिक्षक भी लॉकडाउन की गरिमा समझें, इसका उल्लंघन नहीं करें। -संजय कुमार सिंह, जिला शिक्षा पदाधिकारी।
मुख्य बातें
-शिक्षकों ने लांघी लक्ष्मण रेखा, लॉकडाउन का उल्लंघन
-हड़ताल टूटने के बाद भीड़ की शक्ल में योगदान देने पहुंचे थे शिक्षक
-न मास्क और न शारीरिक दूरी का हुआ पालन, पुलिस भी बनी मूकदर्शक