कहां गुम हो गई चंपा : चंपा नदी के उद्गम स्थल का मुआयना कर सकते हैं सीएम नीतीश कुमार
चंपा नदी शताब्दियों से अंग क्षेत्र की जीवनधारा चंपा को पिछले कुछ दशकों से तारणहार का इंतजार है। चंपा के जल से लाखों हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होती है।
[अरविन्द शर्मा]। पौराणिक पहचान वाली चंपा नदी के दर्द को अब शीर्ष स्तर पर महसूस कर लिया गया है। इसे दुर्भाग्य से उबारने के लिए चौतरफा प्रयास शुरू कर दिया गया है। जल-जीवन-हरियाली यात्र के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनवरी के दूसरे सप्ताह में चंपा के किनारे स्थित शाहकुंड के भुलनी पंचायत का दौरा कर सकते हैं। यात्र के पहले की तैयारियां की जा रही हैं। जल संसाधन विभाग के सचिव संजीव हंस ने भागलपुर एवं बांका के डीएम को चंपा के प्रवाह मार्ग की पूरी जमीन की पैमाइश का आदेश दिया है, ताकि अतिक्रमणकारियों की नजर से ‘बेचारी’ चंपा को बचाया जा सके। कूड़ा-कचरा गिराने पर भी तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का निर्देश दिया गया है।
करीब पांच-छह दशकों से धीरे-धीरे नाले में तब्दील होने वाली चंपा नदी की व्यथा दुनिया के सामने तब आई, जब दैनिक जागरण ने इसकी हिफाजत का बीड़ा उठाया। अभियान चलाकर लोगों को बताया कि चंपा नाला नहीं, बल्कि संपूर्ण नदी है। सदियों से बहती आ रही पौराणिक नदी। अभियान के क्रम में जल-पुरुष राजेंद्र सिंह ने भी भागलपुर आकर चंपा के दर्द को महसूस किया। अभी एक दिन पहले जल पुरुष के सहयोगी एवं जल-जन जोड़ो अभियान के संयोजक पंकज मालवीय ने जल संसाधन सचिव संजीव हंस से मिलकर दैनिक जागरण की अबतक की पहल की जानकारी दी।
उन्होंने चंपा नदी के उद्गम स्थल बांका जिले के बेरमा गांव से लेकर भागलपुर जिले के सबौर स्थित गंगा में संगम तक की समस्याओं से अवगत कराया और कहा कि प्रशासन की छोटी सी पहल इस नदी को जीवित करने के लिए काफी होगी। संजीव हंस ने जागरण की पहल और जन-अपेक्षाओं से सहमति जताई और भागलपुर एवं बांका जिले के डीएम से बात करके चंपा को पुनर्जीवित करने के रास्ते में आने वाली बाधाओं की जानकारी मांगी। साथ ही सुझाव भी कि नदी को जिंदा करने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं।
निर्दोश चंपा का क्या गुनाह?
शताब्दियों से अंग क्षेत्र की जीवनधारा चंपा को पिछले कुछ दशकों से तारणहार का इंतजार है। चंपा के जल से लाखों हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होती है। बिहार अपने जिस विश्व प्रसिद्ध कतरनी चावल के लिए इतराता है, उसे यही चंपा अपने जल से सींचकर सुगंधित बनाती है। फिर भी इसके दर्द को किसी ने महसूस करने की कोशिश नहीं की। धड़ल्ले से बालू खनन किया जा रहा है। किनारे की जमीन पर अतिक्रमण जारी है। क्या चंपा का गुनाह सिर्फ इतना है कि इसके आंचल में उत्तम क्वालिटी का बालू है। बिल्कुल सोन नदी की तरह लाल। माफिया की नजर उसी बालू पर है। उन्हें इससे मतलब नहीं कि जब चंपा नहीं रहेगी तो उन्हें पनाह कौन देगा? बालू कहां से आएगा? कतरनी चावल सुगंधित कैसे होगा? बहरहाल, चंपा बाट जोह रही है किसी रहनुमा की, जो आए और उसकी सारी पीड़ा हर ले। उसे फिर से जिंदा कर दे, ताकि उसकी गोद के लाखों बच्चों पर कोई संकट न आए। उसके किनारे के खेत कभी बंजर न हो सके। जागरण के सतत अभियान के बाद सरकार के स्तर से दिखाई गई सक्रियता से चंपा की चिंताओं के निवारण की उम्मीदें बढ़ गई हैं।