छठ महापर्व : 12 वर्ष बाद सुख, समृद्धि और खुशहाली का अद्भुत संयोग, जानिए... आप क्या करें Bhagalpur News
ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। वह प्रतिदिन घंटों कमर भर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। इससे उनपर सूर्य की कृपा हुई।
भागलपुर [जेएनएन]। लोक आस्था का महापर्व छठ 12 वर्ष बाद सुख, समृद्धि व खुशहाली का अद्भुत संयोग लेकर आ रहा है। भगवान भास्कर के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वाले भक्तों को इस बार धन-धान्य की प्राप्ति होगी।
सूर्य आनंद योग में भक्त छठ मैया को अर्घ्य प्रदान करेंगे। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी यानी 31 अक्टूबर से शुरू हो गया है जिसका सप्तमी यानी तीन नवंबर को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत परायण के साथ समापन होगा। पहला अर्घ्य शनिवार को दिया जाएगा। शनिवार को चंद्रमा के गोचर रहने से सूर्य आनंद का संयोग बन रहा है। यह सुखद संयोग परिवार में सुख समृद्धि और खुशहाली लाने वाला साबित होगा।
महालक्ष्मी की बरसेगी कृपा
बूढ़ानाथ के पंडित सुरेंद्र तिवारी के मुताबिक छठ महापर्व पर चंद्रमा और मंगल एक साथ मकर राशि में रहने से महालक्ष्मी की कृपा व्रतियों पर बरसेगी। वहीं, चंद्रमा के केंद्र में रहकर मंगल के उच्च होने यानी स्वराशि में होने से पंच महापुरुष योग में एक रूचक योग भी षष्ठी और सप्तमी को बन रहा है। इसमें तुला राशि में सूर्य और बुध रहेंगे। वहीं, शुक्र व शनि वृश्चिक राशि में, मकर में मंगल और चंद्रमा, केतु कुंभ में, राहु सिंह में और गुरु कन्या राशि में रहेगा। शनिवार को पहला अघ्र्य होने से शनि की साढ़ेसाती का लाभ मिलेगा और शनि दोष से भी मुक्ति मिलेगी।
सूर्योपासना से संबंधित मान्यता
ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। वह प्रतिदिन घंटों कमर भर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। इससे उनपर सूर्य की कृपा हुई। वह महान योद्धा बने। द्रौपदी भी कल्याण के लिए सूर्य पूजन करती थीं।
पूजन का विधि-विधान
नदी या तालाब में कमर भर पानी में खड़े होकर भगवान भास्कर को सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अर्घ्य दिया जाता है। फिर टोकरे में फल और मिठाई रखकर व घी का दीपक जलाकर परिक्रमा की जाती है। इसके बाद ठेकुआ प्रसाद बांटा जाता है। सुहागिनों को सिंदूर लगाया जाता है।
अर्घ्य का समय
प्रथम सायंकालीन अर्घ्यदान 2 नवंबर को संध्या चार बजे से 5:35 तक। द्वितीय उदयीमान सूर्य को अर्घ्य 3 नवंबर सुबह में 6:29 बजे से। व्रत का परायण 3 नवंबर रविवार को प्रात : 8:00 बजे से पहले सप्तमी तिथि में ही कर लेना श्रेष्ठ रहेगा। ऐसा करने से सभी भक्तों व व्रतियों पर भगवान सूर्यदेव की कृपा बनी रहेगी।