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महिलाओं में बढ़ रहा बच्चेदानी के मुंह का कैंसर

शहर के विभिन्न अस्पतालों में प्रत्येक माह ऐसे दो से तीन मरीजों की पहचान हो रही है। पीड़ा होने के बाद भी लापरवाही बरतने के कारण यह रोग तेजी से फैल रहा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 29 Mar 2018 11:28 AM (IST)Updated: Fri, 30 Mar 2018 05:05 AM (IST)
महिलाओं में बढ़ रहा बच्चेदानी के मुंह का कैंसर
महिलाओं में बढ़ रहा बच्चेदानी के मुंह का कैंसर

भागलपुर। भागलपुर और इसके आस-पास के क्षेत्रों की महिलाओं में बच्चेदानी के मुंह का कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। शहर के विभिन्न अस्पतालों में प्रत्येक माह ऐसे दो से तीन मरीजों की पहचान हो रही है। डॉक्टरों का कहना है कि पीड़ा होने के बाद भी लापरवाही बरतने के कारण यह रोग तेजी से फैल रहा है।

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आकड़े बताते हैं कि 15 से 44 वर्ष की आयु वर्ग में यह कैंसर ज्यादा होती है। हालाकि समय पर इलाज शुरू हो जाए, तो इससे मुक्ति पाई जा सकती है।

बच्चेदानी के मुंह के कैंसर : यह सर्विक्स का कैंसर है। सर्विक्स गर्भाशय का निचला भाग होता है, जो गर्भाशय को प्रजनन अंग से जोड़ता है।

कैसे होता है संक्रमण : शारीरिक संपर्क में आने पर 'एचपीवी' किसी महिला को संक्रमित कर सकता है। जनन अंगों के त्वचा के संपर्क में आने पर भी यह वाइरस संक्रमित कर सकता है। आशीर्वाद हॉस्पीटल की डॉ. माधवी सिंह के अनुसार अगर शारीरिक संपर्क न भी किया जाए तो भी प्रजनन अंगों के बाहरी स्पर्श से भी महिलाओं में इस वाइरस का संक्रमण संभव है। हालांकि शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र इस रोग के वाइरस के संक्रमण को बेअसर करने के लिए 6 से 18 महीने तक संघर्ष करता है। बावजूद इसके अगर संक्रमण बरकरार रहता है तो यह कैंसर में तब्दील हो सकता है।

एचपीवी संक्रमण के होने और इसके कैंसर में तब्दील होने में सामान्यत: 20 साल या इससे अधिक का वक्त लग जाता है। इसलिए 35 से 50 साल की उम्र वाली महिलाओं में इस कैंसर के होने का जोखिम ज्यादा होता है।

रोग से बचाव : बच्चेदानी के मुंह के कैंसर से बचाव में 92 फीसदी तक कारगर है, बशर्ते, महिलाएं वैक्सीन लगवाने से पहले शारीरिक संपर्क में संलग्न न रही हों। आशीर्वाद हॉस्पीटल की डॉ. माधवी सिंह का कहना है, नौ से 25 साल की उम्र लड़किया यह वैक्सीन लगवा सकती हैं।

कितने प्रकार की वैक्सीन्स : बच्चेदानी के मुंह के कैंसर की रोकथाम के लिए फिलहाल दो वैक्सीन्स उपलब्ध हैं। दोनों से ही इस रोग की रोकथाम संभव है।

वैक्सीन का साइड इफेफ्ट : कुछ महिलाओं में इंजेक्शन लगाए जाने वाले भाग पर सूजन व दर्द संभव है। कुछ महिलाओं को बुखार भी आ सकता है। इसके अलावा इस वैक्सीन के कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं।

तीन बार लगाना पड़ता है वैक्सीन : डॉक्टर की निगरानी में सामान्यत: एक निश्चित अंतराल पर तीन बार लगवाना पड़ता है। अगर कोई महिला गर्भवती है तो इन वैक्सीनों को नहीं लगवाना चाहिए। अगर कोई महिला वैक्सीन की पहली डोज लगवा चुकी है और इसके बाद वह गर्भवती हो चुकी है तो फिर उसे दो अन्य डोज छोड़ देना चाहिए।

कैसे प्रभावित करता है : बच्चेदानी के मुंह के कैंसर सर्विक्स की लाइनिंग, यानी यूटरस के निचले हिस्से को प्रभावित करता है। सर्विक्स की लाइनिंग में दो तरह की कोशिकाएं होती हैं- स्क्वैमस या फ्लैट कोशिकाएं और स्तंभ कोशिकाएं।

गर्भाशय ग्रीवा के क्षेत्र में जहा एक सेल दूसरे प्रकार की सेल में परिवर्तित होती है, उसे स्क्वेमो-कॉलमर जंक्शन कहा जाता है। यह ऐसा क्षेत्र है, जहा कैंसर के विकास की सबसे अधिक संभावना रहती है। गर्भाशय-ग्रीवा का कैंसर धीरे-धीरे विकसित होता है और समय के साथ पूर्ण विकसित हो जाता है।

आशीर्वाद हॉस्पीटल की स्त्री, प्रसूति व इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ डॉ. माधवी सिंह ने बताया कि बच्चेदानी के मुंह के कैंसर ज्यादातर मानव पैपीलोमा वायरस या एचपीवी के कारण होता है। लगभग सभी ग्रीवा कैंसर एचपीवी में से एक के साथ दीर्घकालिक संक्रमण के कारण होता है।

बच्चेदानी के मुंह के कैंसर फैलता है : एचपीवी संक्रमण यौन संपर्क या त्वचा संपर्क के माध्यम से फैलता है। कुछ महिलाओं में गर्भाशय-ग्रीवा की कोशिकाओं में एचपीवी संक्रमण लगातार बना रहता है और इस रोग का कारण बनता है। इन परिवर्तनों को नियमित ग्रीवा कैंसर स्क्रीनिंग (पैप परीक्षण) द्वारा पता लगाया जा सकता है।

पैप परीक्षण के साथ, गर्भाशय ग्रीवा से कोशिकाओं का एक सतही नमूना नियमित पेल्विक टैस्ट के दौरान एक ब्रश से लिया जाता है और कोशिकाओं के विश्लेषण के लिए एक प्रयोगशाला में भेजा जाता है।

बच्चेदानी के मुंह के कैंसर के लक्षण : योनि से असामान्य रूप से खून बहना, रजोनिवृत्ति या यौन संपर्क के बाद योनि से रक्तस्त्राव, सामान्य से अधिक लंबे समय मासिक धर्म, अन्य असामान्य योनि स्त्राव और यौन संसर्ग के दौरान दर्द के बीच रक्तस्त्राव।

बचाव के उपाय : बच्चेदानी के मुंह के कैंसर को अक्सर टीकाकरण और आधुनिक स्क्रीनिंग तकनीकों से रोका जा सकता है, जो गर्भाशय ग्रीवा में पूर्वकाल परिवर्तन का पता लगाता है। गर्भाशय-ग्रीवा के कैंसर का उपचार कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि कैंसर की अवस्था, अन्य स्वास्थ्य समस्याएं। सर्जरी, विकिरण, कीमोथेरेपी या तीनों को मिलाकर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कंडोम के बिना कई व्यक्तियों के साथ यौन संपर्क से बचें। हर तीन वर्ष में एक पेप टेस्ट करवाएं, क्योंकि समय पर पता लगने से इलाज में आसानी होती है। धूम्रपान छोड़ दें, क्योंकि सिगरेट में निकोटीन और अन्य घटकों को रक्त की धारा से गुजरना पड़ता है और यह सब गर्भाशय-ग्रीवा में जमा होता है, जहा वे ग्रीवा कोशिकाओं के विकास में बाधक बनते हैं। धूम्रपान प्रतिरक्षा तंत्र को भी दबा सकता है। फल, सब्जियों और पूर्ण अनाज से समृद्ध स्वस्थ आहार खाएं, मगर मोटापे से बचें।

केस स्टडी - 01

भीखनपुर मिश्र टोला की एक महिला को पिछले वर्ष पेट में तेज दर्द हुआ। उसे सर्जन के पास ले जाया गया। डॉक्टर ने बच्चेदानी निकलवाने की सलाह दी। लेकिन महिला ने बच्चेदानी नहीं निकलवाई। इस साल पता चला कि उसके बच्चेदानी में कैंसर हो गया है। पिछले दिनों खून की उल्टी के साथ महिला की मौत हो गई।

केस स्टडी - 02

तिलकामांझी की एक महिला को महावारी रुकने के बाद खून आना शुरू हो गया। इलाज के लिए डॉक्टर के पास गई। डॉक्टर ने कुछ दवाएं दी। दवा खाने के बाद उसे राहत तो हुई, लेकिन जांच नहीं कराने के कारण कैंसर फैल गया। थोड़े दिनों बाद उसकी मौत हो गई।


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