सृजन घोटाला : जयश्री ठाकुर सहित दो पर आरोप पत्र दायर, जानिए... किस तरह करतीं थीं गोरखधंधा
जयश्री राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में अच्छे रसूख के कारण गिरफ्तारी से बच रही थी। जयश्री जब पद पर थी तो चहेतों को सस्ती दर पर बांका व भागलपुर इलाके में जमीन खरीदवाती थी।
भागलपुर/पटना [जेएनएन]। 1400 करोड़ रुपये के सृजन घोटाले में सीबीआइ ने बांका की तत्कालीन जिला भूअर्जन पदाधिकारी जयश्री ठाकुर और एक अन्य सरिता झा के खिलाफ सीबीआइ के विशेष न्यायिक दंडाधिकारी प्रवीण कुमार सिंह की अदालत में आरोप पत्र दायर कर दिया। जयश्री 90 दिनों से जेल में है। अगर 90 दिनों भीतर सीबीआइ आरोप पत्र दायर नहीं करती तो जयश्री को नियमित जमानत मिल जाती, इसीलिए एजेंसी ने आरोप पत्र दायर कर दिया।
बिहार प्रशासनिक सेवा की अधिकारी जयश्री भागलपुर जिले की प्रभारी जिला भू-अर्जन पदाधिकारी भी रह चुकी हैं। सीबीआइ के अनुसार जयश्री ही सृजन कांड की सबसे बड़ी घोटालेबाज है। सीबीआइ ने 2018 में जयश्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। प्राथमिकी दर्ज होने के बाद सीबीआइ उसकी गिरफ्तारी के लिए प्रयास करती रही, लेकिन कई दिनों बाद वह गिरफ्त में आ सकी थी।
सूत्रों के अनुसार जयश्री राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में अच्छे रसूख के कारण गिरफ्तारी से बच रही थी। जयश्री जब पद पर थी तो चहेतों को सस्ती दर पर बांका व भागलपुर इलाके में जमीन खरीदवाती थी। जिस इलाके में वह जमीन खरीदवाती थी, उसी इलाके के विकास के लिए विभिन्न योजनाओं का प्रस्ताव सरकार के पास भेजती थी। जब प्रस्ताव स्वीकार हो जाता था तो जयश्री पूर्व में खरीदी गई जमीन के अधिग्रहण को लेकर नया प्रस्ताव सरकार के पास भेजती थी। इस तरह उक्त जमीन का सरकार से अच्छा मुआवजा मिल जाता था। मुआवजे की राशि में उसका भी बड़ा हिस्सा होता था।
शातिराना अंदाज में करोड़ों का खेल
अधिग्रहीत भूखंड की मुआवजा राशि भी सृजन महिला विकास समिति के खाते से मिलती थी। विभिन्न योजनाओं से संबंधित जो सरकारी धन उसके बैंक खाते में आता था, वह बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से सृजन के खाते में भेज दिया जाता था। जब मुआवजे की राशि लेने के लिए जमीन मालिक सरकारी चेक अपने बैंक में जमा करते थे तो इसकी जानकारी बैंक अधिकारी सृजन नामक एनजीओ की कर्ताधर्ता मनोरमा देवी को दे देते थे। इसके बाद मनोरमा चेक की राशि सृजन के खाते से सरकारी खाते में भिजवा देती थी। इस तरह घोटाला दबा रह जाता था। मनोरमा की मृत्यु के बाद अफरा-तफरी मच गई, क्योंकि सरकारी राशि सृजन के खाते में थी।
जमीन मालिक जब अधिग्रहण के एवज में मुआवजा राशि लेने के लिए सरकारी चेक अपने बैंक खाते में जमा करने लगे, तब वह चेक बाउंस होने लगा। राशि सरकारी खाते में न होकर सृजन के खाते में होती थी, इसीलिए चेक बाउंस हो जाता था। इस तरह घोटाले की बात राजनीतिक व प्रशासनिक गलियारे में तैरने लगी। नतीजतन, प्राथमिकी दर्ज होने लगीं। बताते हैं कि यह घोटाला करीब डेढ़ दशक से जारी था। इसी बीच आर्थिक अपराध इकाई (ईओडब्ल्यू) के तत्कालीन डीजीपी अभयानंद को जब जयश्री ठाकुर की आय की जानकारी मिली, तो उन्होंने उसकी संपत्तियों की जांच कराई। पता चला कि जयश्री के पास आय से करीब 200 प्रतिशत अधिक की आमदनी थी। इसी जांच के दौरान पता चला कि जयश्री के माध्यम से करोड़ो रुपये सरकारी खाते से सृजन के खाते में भेजे गए हैं। करीब 400 करोड़ रुपये का घोटाला तो जमीन अधिग्रहण को लेकर ही हुआ है। इसके बाद बिहार सरकार ने जांच शुरू कराई। आखिरकार जयश्री ठाकुर पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मुकदमा दर्ज हुआ। जयश्री पर पहले निलंबन की कार्रवाई हुई। अंत में उसे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा।