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महानगरों की जरूरत... मजदूरों की मजबूरी, मजदूरों को वापस लाने पहुंच रहीं बसें

लॉकडाउन के दौरान बड़े शहरों में दाने-दाने को मोहताज मजदूर वहां से किसी तरह लौटकर चले आए। अब जब जरूरत पड़ी तो मजदूरों को मुंहमांगी मजदूरी की पेशकश की जा रही है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 08 Jun 2020 01:41 PM (IST)Updated: Mon, 08 Jun 2020 01:41 PM (IST)
महानगरों की जरूरत... मजदूरों की मजबूरी, मजदूरों को वापस लाने पहुंच रहीं बसें
महानगरों की जरूरत... मजदूरों की मजबूरी, मजदूरों को वापस लाने पहुंच रहीं बसें

सुपौल [भरत कुमार झा]। बिहारी मजदूरों के पसीने की खुशबू ही पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में समृद्धि की खुशबू लाती है। लॉकडाउन के दौरान बड़े शहरों में दाने-दाने को मोहताज मजदूर वहां से किसी तरह लौटकर चले आए। अब जब जरूरत पड़ी, तो मजदूरों को मुंहमांगी मजदूरी की पेशकश की जा रही है। भूखे पेट पैदल लौटने वाले मजदूरों के लिए बसें भेजी जा रही हैं। महानगरों को मजदूरों की जरूरत है। मजदूरों की भी मजबूरी है, इन्हें काम चाहिए।

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पिपरा प्रखंड के हटवरिया गांव से करीब 35 मजदूरों का जत्था बस से पंजाब के लिए रवाना हुआ। वहां के फगवारा जिला स्थित कपूरथला के किसान ने इन्हें बुलवाया है। इन्होंने बताया कि सरकार उन्हें राशन दे रही है, लेकिन बाकी काम के लिए पैसे भी चाहिए। घर पर बेरोजगार बैठे रहने से काम नहीं चलता है। हटवरिया गांव के रामानंद पासवान कोरोना के भय से पंजाब से लौट आए थे। अब यहां बेरोजगारी के अलावा खाने-पीने की भी समस्या उत्पन्न हो गई है। इस कारण वह पंजाब लौट रहे हैं। पहले एक किला (एक तरह की जमीन की माप) पर रोपाई के लिए 2500 रुपये मिलते थे, अब 4500 रुपये पर बात हुई है। परिवार की जरूरतों के लिए अग्रिम पैसे भी दिए गए हैं।

यहीं के ब्रह्मदेव पासवान दिल्ली में बढ़ई का काम करते थे। लॉकडाउन में यहां लौटने के बाद कोई रोजगार नहीं मिला, इस कारण उन्हें कर्ज लेना पड़ा। इस कारण वह भी धान की रोपाई के लिए जा रहे हैं। पंचू कामत का कहना था कि पेट भर जाने से ही जिंदगी की समस्या का समाधान नहीं हो जाता है। वापस लौट रहे बेचन कामत तथा ललित कामत ने बताया कि पलायन के बाद ही इलाके के रहन-सहन में बदलाव आया है। परिवार के लिए उन्हें और बाकी मजदूरों को वापस लौटना ही होगा। सरकारी योजना में काम लेने के लिए मुखिया और सरकारी बाबू की चिरौरी करनी होती है। यदि कुछ दिनों का काम मिल भी गया, तो उससे पूरी जिंदगी नहीं गुजर सकती है।


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