बहिना बटिया निहारे एहि बाटे औता भैया मोर..
बहनें शुक्रवार की सुबह से अपने भाई का रास्ता निहार रही थी।
सुपौल (जेएनएन)। अंगना नीपल बीच अरिपन काढ़ल, आय भरद्वितीया के भोर, डेढ़ी पर ठाढ़ बहिना बटिया निहारे एहि बाटे औता भैया मोर। गाने के इस बोल की तरह आंगन की निपाई कर बीच आंगन में अरिपन बनाकर बहनें शुक्रवार की सुबह से अपने भाई का रास्ता निहार रही थी। मिथिलांचल में बहनों को इस दिन का इंतजार हर साल रहता है क्योंकि कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को भाई-बहन के प्यार का पर्व भ्रातृद्वितीया मनाया जाता है। आंगन में चौका पर बहनें अपने भाई को चुमाकर उनकी भाल पर तिलक लगाकर लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस मौके पर भाई बहनों को उपहार देते हैं। पर्व को लेकर भाईयों के उन बहनों के घर जाने का दिन भर सिलसिला लगा रहा जो शादीशुदा थीं और अपने ससुराल में रहती हैं। वैसी बहनें जो अपने पिता के ही घर थीं उन्होंने वहीं भाई के साथ पर्व मनाया।
पर्व को लेकर बहनों का उत्साह देखते ही बनता था। अल सुबह जगकर वे इसकी तैयारी में जुट गई। पूजा की तैयारी के साथ भाई के लिए तरह-तरह का व्यंजन की तैयारी भी साथ चल रही थी। दूसरी ओर भाईयों के घर भी उनके बहन के घर जाने की तैयारी चल रही थी। बहन के घर के लिए पकवान तैयार किए गए, उनके लिए कपड़े आदि लेकर भाई बहनों के घर पहुंचे। इस पर्व में खासकर उन बहनों के ननदों को चुहलबाजी का मौका उस वक्त मिल जाता है जब उसका भाई नहीं आता है। इस पर्व के गाने पर गौर करें तो जिन बहनों के भाई नहीं आते वे बहनें अपनी भाभी को यह कहकर कोसती हैं कि पहिने त आबै भैया सब भरद्वितीया एहि बेर रोकलक भौजिक सुरतिया। शरारत के नजरिये से ही सही लेकिन ननदों के तरह-तरह के तानों को झेलना पड़ता है। जिनके भाई आए उन्होंने ये लाया तो वो क्यों नहीं लाया इसे भी सुनना पड़ता है। यानी पर्व के बहाने हास-परिहास का समा भी बंधता है। पर्वों की धार्मिक महत्त तो होती ही है सार्थकता भी यही है कि लोगों से मिलना-जुलना, थोड़ा हास्य-विनोद जो तमाम बातें इस पर्व में साकार होती है।