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Bihar Panchayat Chunav 2021 : पचास प्रतिशत महिला आरक्षण कुर्सी पाने तक ही सीमित, विकास में नहीं दिखा रहीं रुचि

Bihar Panchayat Chunav 2021 पंचायत स्तर पर आरक्षण के बल पर महिलाओं के सिर पर मुखिया सरपंच व समिति का ताज तो सज जाता है लेकिन पंचायत में उनकी भागीदारी शो-पीस से अधिक कुछ नहीं। ये लोग विकास कार्यों में भी रुचि नहीं दिखाती हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Fri, 09 Apr 2021 11:32 AM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 09:46 AM (IST)
Bihar Panchayat Chunav 2021 : पचास प्रतिशत महिला आरक्षण कुर्सी पाने तक ही सीमित, विकास में नहीं दिखा रहीं रुचि
Bihar Panchayat Chunav 2021 : महिला जनप्रतिनिधि विकास कार्यों में नहीं दिखा रही रुचि।

संसू सिकटी (अररिया)। महिला सशक्तिकरण की बात खूब बुलंद किए जाते है। सरकार ने महिला को सबल और सशक्त बनाने के लिए 50 फीसद आरक्षण भी दिया। लेकिन इस सदी में भी महिला घरेलू कामकाज में ही सिमट कर रह गई है। न तो आरक्षण का सही मायनों में फायदा दिख रहा है और न ही महिला सशक्तीकरण की बात। आरक्षण के बल पर महिलाओं के सिर पर मुखिया सरपंच व समिति का ताज तो सज जाता है, लेकिन पंचायत में उनकी भागीदारी शो-पीस से अधिक कुछ नहीं। ऐसी ही स्थिति ज्यादातर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में देखने को मिलती है।

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आज भी यदि सिर्फ सिकटी प्रखंड की बात करें तो 50 प्रतिशत आरक्षण के दम पर यहां की 14 पंचायतों में सात महिला मुखिया, सात महिला सरपंच तथा कुल 19 पंसस सीटों पर 10 महिला जनप्रतिनिधि काबिज रहीं। यहां महिला मुखिया, सरपंच व पंसस चुनकर तो पहुंची, लेकिन कभी भी घूंघट से बाहर नहीं आ सकी। इन पांच सालों में पंचायत की जगह किचन में ही काम करती नजर आई। कहने को तो महिलाएं चुनकर असली जनप्रतिनिधि होती हैं, लेकिन जनता उनके पति या परिवार के किसी पुरुष सदस्य को ही असली मुखिया , सरपंच व पंसस मानते हैं। वर्तमान समय में पंचायत चुनाव को लेकर तेज गति से मतदाताओं से हालचाल पूछने का सिलसिला चल रहा है। चौपाल लग रहे हैं। मतदाताओं से उनकी परेशानी पूछी जा रही है।

वहां महिला जनप्रतिनिधि आपको बातचीत करती नहीं मिलेगी। वहां उनके पति या अन्य रिश्तेदार फोटो खींचवाते या सेल्फी लेते मिलेंगे। कई पंचायत की महिला जनप्रतिनिधि ऐसी भी हैं, जो अपने दम पर सत्ता को चलाती आ रही है। लेकिन अधिकांश महिला जनप्रतिनिधि ऐसी नहीं है। पंचायत स्तरीय ग्रामसभा, स्थायी सशक्त समिति, वित्त अंकेक्षण एवं योजना समिति की बैठकों में अधिकतर महिला जनप्रतिनिधि के साथ उनके अलग से जनप्रतिनिधि साथ होते हैं। त्रिस्तरीय पंचायत में सरकार ने महिलाओं को भागीदारी का मौका दिया। आधी आबादी पंचायती राज व्यवस्था के तहत पंचायतों में चुनी भी जाती है। लेकिन हालत यह है कि जनता द्वारा चुने जाने के बाद महिला पंचायत प्रतिनिधि चूल्हे-चौका तक ही सिमट कर रह जाती है। उनकी कमान पति , ससुर , भाई या अन्य रिश्तेदार के पास होते हैं। बैठक हो , शिलान्यास हो या कोई अन्य कार्यक्रम महिला की जगह उनके प्रतिनिधि ही भाग लेते हैं। हालांकि हाल के दिनों में तस्वीर कुछ बदली है। अब महिला मुखिया, सरपंच तथा पंसस खुद कमान थामती नजर आ रहीं हैं। लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या गिनती में हैं।

हस्ताक्षर तक ही सिमटी होती है महिला जनप्रतिनिधि ग्राम पंचायत में जनप्रतिनिधि के रूप में चयनित महिलाओं का काम सिर्फ कागजों पर हस्ताक्षर तक ही सीमित होता है। इनके बदल में सारा कार्य पति, पुत्र या अन्य रिश्तेदार संभालते है। आवश्यक मीङ्क्षटग में सिर्फ इनकी उपस्थिति दर्ज होती है। पति,ससुर, पुत्र या अन्य रिश्तेदार बैखौफ होकर वे पंचायत कार्यालय में उनकी कुर्सी पर बैठते हैं और हस्ताक्षर भी कर देते हैं। जबकि पंचायतीराज विभाग इसे आपराधिक कृत्य मानता है। आज के दौर लोगों को समझने की जरूरत है कि हम महिला जनप्रतिनिधि को वोट दें रहे हैं या उनके रिश्तेदारों को।  


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