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Bihar Assembly Elections : असमंजस के बीच शुरू हो गई पटना-दिल्ली की भागदौड़, ऐसे समझिए भागलपुर की सातों विधानसभा का गणित

Bihar Assembly Elections भागलपुर जिले में विधानसभा की सात सीट हैं। इन सातों सीटों का क्‍या हाल है किसकी कहां से दावेदारी है। आइए... समझें इस राजनीतिक गणित को

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2020 01:14 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2020 05:33 PM (IST)
Bihar Assembly Elections :  असमंजस के बीच शुरू हो गई पटना-दिल्ली की भागदौड़, ऐसे समझिए भागलपुर की सातों विधानसभा का गणित
Bihar Assembly Elections : असमंजस के बीच शुरू हो गई पटना-दिल्ली की भागदौड़, ऐसे समझिए भागलपुर की सातों विधानसभा का गणित

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। Bihar Assembly Elections :  विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक सभी दलों के 'चुनावी वीरों ने भी अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। हालांकि, अभी दोनों गठबंधनों के बीच सीट बंटवारे का सीन धुंधला है। सभी अपने-अपने हिसाब से गणित लगा चुके हैं कि कौन सीट किसके हिस्से जाएगी। लिहाजा, कोरोना विस्फोट और वर्चुअल रैलियों से पनपे असमंजस के बीच अधिकतर दिल्ली-पटना करने लगे हैं। ये खुद के लिए संभावनाओं की तलाश में दूसरे दलों में भी हाथ-पैर मार रहे हैं।

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यह चुनावी वीरों के सामने प्रारंभिक अवरोध है। इस अवरोध को लांघने वाले भी सामने आ रहे हैं। भागलपुर जिले की सात सीटों की बात करें। भागलपुर व कहलगांव सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। सुल्तानगंज, नाथनगर व गोपालपुर पर जदयू का, जबकि बिहपुर और पीरपैंती में राजद का। 2015 के चुनाव में तब जदयू महागठबंधन के साथ था और जिले से भाजपा की अगुआई वाले एनडीए का सूपड़ा साफ हो गया था। अबकी जदयू फिर से एनडीए में है। चर्चा होते ही राजनीतिक गलियारे में 2010 के फॉर्मूले पर सीट बंटवारे की प्राथमिक समझ बता दी जाती है। हालांकि, ऐसा है नहीं। लोजपा भी एनडीए में है। 2010 में वह राजद के साथ था। ऐसे में सीन अलग होना तय है। दूसरी ओर राजद, कांग्रेस और रालोसपा के स्थानीय नेता मानकर चल रहे हैं कि उनकी पार्टियां मिलकर महागठबंधन के स्वरूप में ही चुनाव लड़ेंगी, पर सीट बंटवारे पर वे चुप्पी साध लेते हैं।

एनडीए का चुनावी गणित

एनडीए के चुनावी वीरों और पार्टी के स्थानीय अधिकारियों की समझ है कि शीर्ष स्तर पहला फॉर्मूला यह होगा कि जिस सीट पर जो जीता हुआ है वह उसका। भागलपुर जिले की सुल्तानगंज, नाथनगर और गोपालपुर सीट पर जदयू का कब्जा तीन टर्म से है। इसपर जदयू किसी कीमत पर अपना दावा नहीं छोड़ेगा। बाकी बची जिले की चार सीटों में 2010 के हिसाब से बंटवारा होगा। इसमें भागलपुर, बिहपुर और पीरपैंती सीट पर भाजपा लड़ेगी। उस वक्त भाजपा इन तीनों सीटों पर जीती थी। 2010 में कहलगांव सीट जदयू के हिस्से में आया था। यहां तब एनडीए कांग्रेस के वरीय नेता सदानंद सिंह से पटखनी खा गया था। इस बार सीट बंटवारे में अगर जिले की एक सीट भी लोजपा को देनी पड़ी तो एनडीए में वैकेंसी इसी सीट पर दिख रही है। 2015 में जदयू की अनुपस्थिति में लोजपा को भागलपुर जिले की दो सीटों में नाथनगर के अलावे कहलगांव की ही सीट मिली थी। हालांकि, इस चुनाव में भी एनडीए कांग्रेसी उम्मीदवार सदानंद से पटखनी खा गया। 2010 में राजद के साथ गठबंधन के दौर में लोजपा के हिस्से में भागलपुर सीट आई थी। तब यहां से लोजपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी। वैसे एनडीए में सीट को लेकर दबाव की राजनीति चल रही है। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान दबाव बनाए हैं। यहां जदयू के पूर्व जिलाध्यक्ष कहते हैं कि जिले की सातों सीटों पर हमारी पार्टी का दावा है, बाकी निर्णय मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को करना है। हम उनके हर निर्णय में हमेशा की तरह मजबूती से साथ खड़े रहेंगे। दबाव बनाने में भाजपा भी पीछे नहीं है। खासकर, सुल्तानगंज सीट के लिए पार्टी प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य पवन मिश्रा कई वर्षों से जमीनी स्तर पर दिन-रात एक किए हुए हैं। उनका कहना है कि उन्हें चुनाव लडऩा ही है, अब पार्टी जैसे जो सीट मैनेज करे। जिला परिषद अध्यक्ष टुनटुन साह भी इस सीट पर दावा ठोक रहे हैं।

महागठबंधन का गणित

महागठबंधन के गुणा-गणित में थोड़ा झोल है। जितनी पार्टियां, दावे में उतनी हिस्सेदारी। हालांकि, राजद और कांग्रेस के नेता यह मानकर चल रहे हैं कि भागलपुर और कहलगांव की सीट बिना किंतु-परंतु के कांग्रेस को मिलेगी। बाकी पांच सीटें राजद के हिस्से में ही आएंगी। वैसे रालोसपा भी यहां एक सीट खासकर सुल्तानगंज या नाथनगर पर अड़ सकती है। बाकी, हम जैसी पार्टियों का यहां कोई खास जनाधार है नहीं।


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