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Bihar Assembly Elections 2020 : चुनावी जमीन पर लहलहाने लगी नारों की फसल

Bihar Assembly Elections 2020 चुनाव में नारों की भूमिका अहम होती है। यहां तक कि बेहतर नारों के बल पर कई बार चुनाव जीतते हुए भी देखा गया है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 01:23 PM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 01:23 PM (IST)
Bihar Assembly Elections 2020 : चुनावी जमीन पर लहलहाने लगी नारों की फसल
Bihar Assembly Elections 2020 : चुनावी जमीन पर लहलहाने लगी नारों की फसल

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। Bihar Assembly Elections 2020 : बिहार की चुनावी जमीन पर 'नारों की फसल' लहलहाने लगी है। नारों की पौध हर पार्टी ने लगाई है, पर जदयू और राजद की ओर से ताबड़तोड़ अलग-अलग किस्म के नारे बोये-उगाए जा रहे हैं। दोनों की प्रतिस्पर्धा जवाबी कव्वाली की भांति! इसकी शुरुआत एक साल पहले हुई। जदयू के नारे ने कहा- क्यों करें विचार, ठीके तो हैं नीतीश कुमार। इसपर तत्काल राजद ने सवाल किया- क्यों न करें विचार, बिहार जो है बीमार। इसके बाद जदयू का नारा आया- क्यों करें विचार, जब हैं ही नीतीश कुमार।

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कोरोना के कारण इस बार नारे बैनर-पोस्टर से अधिक सोशल साइट्स फेसबुक-ट्वीटर-इंस्टाग्राम पर घूम रहे हैं। राजद अभी नारा गढऩे में सभी पार्टियों को पीछे छोड़ता नजर आ रहा है। अगर युवा बेरोजगार है, यह सरकार की हार है... तरक्की और रोजगार के लिए, तेजस्वी जरूरी है बिहार के लिए... उठो नौजवानों भरो हुंकार, फिर से तेजस्वी होगा अपना बिहार जैसे ढेरों नारों के बाद पार्टी का लेटेस्ट नारा है- नई सोच नया नया बिहार, युवा सरकार अबकी बार! जवाब में जदयू के चार नारे मुकाबला करते प्रतीत होते हैं- बिहार के विकास में थोड़ा सा भागीदार हूं, हां मैं नीतीश कुमार हूं... सच्चा है अच्छा है, चलो नीतीश के साथ चलें... बिहार के नाम, नीतीश के काम... विकसित बिहार, नीतीश कुमार... नीतीश में विश्वास, बिहार में विकास!

चुनावों में हर बार नारों की अच्छी फसल होती है। 2015 के चुनाव में भाजपा और जदयू के बीच 'नारेबाजीÓ हो रही थी थी। यह व्यक्ति विशेष (नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार) पर केंद्रीत हो गए थे। इस दफे भाजपा का इकलौता नारा घूम रहा है- भाजपा है तैयार, आत्मनिर्भर बिहार। इस नारे को बिहार के दौरे पर आए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शनिवार को संशोधित किया- जन-जन की पुकार, आत्मनिर्भर बिहार। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनावी चेहरे के रूप में सामने कर 'बिहारी' शब्द पर थीम सांग भी लांच किया। इसके पूर्व भाजपा नेता स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने नारा दिया था- फर्क बहुत साफ है, पर यह ट्रेंड नहीं कर सका। इसी प्रकार कांग्रेस का नारा- दलित-गरीबों की हुंकार- इस बार जायेंगे नीतीश कुमार भी लोगों की जुबान नहीं चढ़ पाया।

कुल मिलाकर, इस दफे 'बिहार और बिहारी'  नारों में फोकस हो रहे हैं। इसका थोड़ा-बहुत श्रेय लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान को जाता है। उन्होंने 'बिहार फस्र्ट, बिहारी फस्र्ट' का इकलौता नारा दिया और अभी तक इसी पर कायम हैं। वैसे हाल में ही जदयू के साथ गठबंधन में आए हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी का 'बिहार फस्र्ट, नीतीश कुमार' नारा दिया है। नारेबाजी के हिसाब से यह उनकी एनडीए में लोजपा से आधी दावेदारी मानी ही जा रही है- बिहार फस्‍ट...!

नारों की भीड़ में खोते नारे

नारों का असर क्या होता है यह आने वाले समय में पता चलेगा। फिलहाल नारे इतने आ गए हैं कि राजनीतिक दलों के नेता-कार्यकर्ताओं को ही अपनी पार्टी के नारे नहीं याद नहीं। 10 में से आठ कार्यकर्ता अपनी पार्टी का नारा नहीं बता सके। राजनीति में रूचि रखने वाले कई बुजुर्ग कहते हैं कि अब पहले वाली बात नहीं है। पहले चुनाव आते ही हर मोहल्ले में नारे गूंजने लगते थे। ये नारे पार्टी की रीति, नीति और लक्ष्य और मुद्दों को थोड़े से शब्दों में समेटे होते थे, पर अब एक-दो नारों को छोड़ दें तो शेष में व्यक्ति विशेष की चाटुकारिता या भय पैदा करने वाली बात होती है।

इंदिरा गांधी के जमाने में भी व्यक्ति विशेष पर केंद्रीत थे चुनावी नारे

चुनावी नारों के इतिहास पर नजर डालें तो स्पष्ट है कि इंदिरा गांधी के जमाने में इस तरह से व्यक्ति विशेष पर नारे केंद्रीत थे। यह लोकसभा चुनावों के सदर्भ में गढ़े गए थे। मसलन, मधु लिमये बोल रहा है, इंदिरा शासन डोल रहा है! जगजीवन राम की आई आंधी, उड़ जाएगी इंदिरा गांधी! आकाश से कहें नेहरू पुकार, मत कर बेटी अत्याचार! यह आपातकाल के दौर के नारे थे। तब जनसंघ की ओर से 'अटल बोला इंदिरा का शासन डोला' नारा भी चर्चित हुआ था। आपातकाल के बाद जनता पार्टी का शासन आया। पर, ढाई साल बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने अपने पक्ष में माहौल तैयार करने के लिए नारा दिया- 'आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा जी को लाएंगे।' साहित्यकार श्रीकांत वर्मा का लिखा नारा- जात पर न पात पर, इंदिराजी की बात पर, मुहर लगाना हाथ पर... काफी चॢचत रहा। 1971 में कांग्रेस नेता देव चंद बरूआ द्वारा गढ़ा गया नारा- कांग्रेस इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया को चाटुकारिता का बेहतरीन नमूना माना गया।

* मैं भी चौकीदार (लोकसभा चुनाव 2019)

* अबकी बार मोदी सरकार (लोकसभा चुनाव 2014)

* पांच साल केजरीवाल (दिल्ली चुनाव)

* बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है (2015)

* झांसे में न आएंगे, नीतीश को जिताएंगे (2015)

* पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा/ हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है (2007, बसपा, उत्तर प्रदेश)

* कहो फिर से अटल दिल से (1999)

* राजतिलक की करो तैयारी, अबकी बारी अटल बिहारी (1998)

* जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिराजी तेरा नाम रहेगा (1984 में इंदिरा गांधी के हत्या के बाद इस नारे ने कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर पैदा कर दी थी)

* इंदिरा हटाओ, देश बचाओ (1977, लोकनायक जयप्रकाश नारायण)

फ्लाप नारा

* इंडिया शाइंनिंग (2004)

* बिहार के युवाओं की यही पुकार, अबकी बार भाजपा सरकार (2015)

चिर्चित नारे

* देश की जनता भूखी है यह आजादी झूठी है (कम्युनिष्ट)

* लाल किले पर लाल निशान मांग रहा है हिन्दुस्तान (कम्युनिष्ट)

* जय जवान, जय किसान (लाल बहादुर शास्त्री)

* संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ (राम मनोहर लोहिया)

* गाय हमारी माता है, देश धर्म का नाता है (जनसंघ)

* गरीबी हटाओ (इंदिरा गांधी, 1971)

* जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मर्द गया नसबंदी में (इमरजेंसी के दौरान)

* जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू

* भूरा बाल साफ करो

जेपी आंदोलन के दौरान रामधारी सिंह दिनकर की ये कविताएं नारा बन गई थीं

* सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास तुम्हारा है, ये नखत अमा के बुझते हैं, सारा आकाश तुम्हारा है।

* दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो/सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

चर्चित जवाबी नारा

जली झोंपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल। यह जनसंघ का नारा था 1960 के दशक में जनसंघ का चुनाव चिह्न दीपक होता था और कांग्रेस का चुनाव चिह्न था दो बैलों की जोड़ी। इसके जवाब में कांग्रेस ने नारा दिया इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं।


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