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Bihar Assembly Elections 2020 : कल के राजनीतिक योद्धा आज दर्शक की भूमिका में, जानिए

Bihar Assembly Elections 2020 कल के राजनीतिक योद्धा राजनीति से मुंह मोड़कर आज व्यवसाय और परिवार के बीच समय दे रहे हैं। कुछ जनप्रतिनिधि खेतीबारी तो कुछ ईंट भट्ठा चला रहे हैं। कई नेताओं ने मिठाई की दुकानें खोल ली है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 09:02 AM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 09:02 AM (IST)
Bihar Assembly Elections 2020 : कल के राजनीतिक योद्धा आज दर्शक की भूमिका में, जानिए
ऐसे पुराने जनप्र‍िनिधियों की लोकप्रियता आज भी क्षेत्र में गरीबों के बीच बनी है।

भागलपुर [संजय सिंह]। Bihar Assembly Elections 2020 :  कल तक जो योद्धा चुनावी रणभूमि में अपने पक्ष में बाजी पलटने का दम रखते थे, आज दर्शक बनकर चुनावी उठापटक का तमाशा देखना ज्यादा पंसद कर रहे हैं। राजनीति से मुंह मोड़कर ऐसे योद्धा अब अपना ज्यादा समय अपने व्यवसाय और परिवार के बीच दे रहे हैं। कुछ किसानी तो कुछ ईंट-भट्ठा तो कई नेताओं ने तो मिठाई की दुकानें खोल ली हैं। हालांकि सामाजिक कार्यों में इनकी दिलचस्पी आज भी पहले जैसी है।

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पूर्व बिहार के तारापुर विधानसभा क्षेत्र में सबसे सशक्त राजनीतिक परिवार पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी का रहा है। इसबार यह परिवार चुनावी राजनीति से बिल्कुल दूर है। चौधरी के भीतर आज भी इतनी क्षमता जरूर है कि किसी के पक्ष में वोट को इधर-उधर करवा सकते हैं। जमुई के विधायक रहे अर्जुन मंडल वन एवं पर्यावरण मंत्री के पद पर भी रहे। वर्तमान में राजनीति से कोसो दूर रहकर अपने परिवार के बीच समय व्यतीत कर रहे हैं। खगडिय़ा के योगेंद्र सिंह माकपा के विधायक रहे। उनकी लोकप्रियता आज भी क्षेत्र में गरीबों के बीच बनी है। इस समय वे पुत्रों के साथ रहकर राजनीतिक दावपेंच से दूर हो गए हैं। हवेली खडग़पुर में राजनीतिक रूप से मजबूत परिवार पूर्व मंत्री शमशेर जंग बहादुर सिंह का रहा है। इनके पिता स्व. नरेंद्र सिंह स्वयं खडग़पुर से विधायक थे। स्वयं राज्य सरकार में मंत्री में रहे। अब इस परिवार का कोई भी सदस्य चुनावी रण में नहीं है। लखीसराय के सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे रामजी महतो अब राजनीति के बजाय अपना ज्यादा समय किसानी में व्यतीत कर रहे हैं। कार्यानंद शर्मा की पुत्रवधू सुनैना शर्मा भी विधानसभा क्षेत्र में इस इलाके का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। अब उन्हें राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है।

अधिकांश समय घरेलू कार्यों में बीतता है। लखीसराय से अश्विनी शर्मा विधायक चुने गए थे। अब उनका अधिकांश समय पटना में बीतता है। बांका के अमरपुर से सुरेंद्र कुशवाहा मंत्री बने। इलाके में उनकी अच्छी पहचान थी। लेकिन, राजनीतिक समीकरण ऐसा बना बिगड़ा कि अब कोई भी दल इनपर दांव लगाना नहीं चाहता। इन्होंने भी सक्रिय राजनीति से अपना मुंह मोड़ लिया। कटोरिया के पूर्व विधायक भोला यादव का भी दलीय राजनीति से मोहभंग हो चुका है। हालांकि, सामाजिक कार्यों में उनकी दिलचस्पी आज भी बरकरार है। बांका के सबसे पुराने नेता जर्नादन यादव हैं। वे संयुक्त बिहार में गोड्डा के सांसद भी रहे। इस समय राजनीतिक के बदले अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। मधेपुरा के परमेश्वरी प्रसाद निराला को हर कोई जानता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव जब भी मधेपुरा चुनाव लडऩे आए, उनके सलाहकारों में परमेश्वरी बाबू सबसे आगे रहते थे। वे विधायक भी बने। पर, अब सक्रिय राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। राजेंद्र यादव भी इस क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। अब सक्रिय राजनीति से कोसो दूर हैं। इनके परिवार के सदस्य ईंट भट्ठे का कारोबार करते हैं। सामाजिक कार्यों को छोड़कर राजनीति से इन्होंने अपना नाता पूरी तरह तोड़ लिया है।

कटिहार के महेंद्र नारायण यादव प्राणपुर से विधायक चुने गए थे। आज भी इनकी लोकप्रियता क्षेत्र में बरकरार है। ये मंत्री भी रहे। लोग आज भी इन्हें प्यार से मंत्री जी ही कहते हैं। इस इलाके से किसी भी दल से कोई चुनाव लड़े उन्हें आशीर्वाद लेने उनके पास आना ही पड़ता है। सुपौल में कांग्रेस के टिकट पर प्रमोद सिंह चुनाव लड़े थे। चुनाव में वे विजयी भी हुए। वे इलाके के बड़े किसान हैं। अब इनकी बहुत ज्यादा दिलचस्पी चुनावी राजनीति में नहीं है। बड़े किसान होने के कारण अब इनका पूरा ध्यान खेती पर केंद्रीत है। सहरसा के पूर्व विधायक आलोक रंजन भी भाजपा से चुनाव जीते थे। वे इलाके के बड़े व्यावसायियों में से एक हैं। सक्रिय राजनीति के बदले अब ज्यादा समय व्यवसाय में देते हैं।


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