Bihar Assembly Elections 2020 : जनता वोट से करें चुनाव में धनबल और बाहुबल पर चोट
Bihar Assembly Elections 2020 दैनिक जागरण ने बांका में पैनल डिस्कसन आयोजित किया। कहा कि चुनाव के वक्त मतदाताओं को जागरूक करना बुद्धजीवियों का कर्तव्य है। अगर कोई बुद्धिजीवी इससे हिम्मत हार घर में बैठ गया है तो वर्तमान व्यवस्था के लिए वह भी कम दोषी नहीं हैं।
बांका, जेएनएन। Bihar Assembly Elections 2020 : बिहार ही नहीं देश के चुनावों को बाहुबल और धनबल लंबे समय से प्रभावित करता रहा है। अब बाहुबल कुछ कम जरूर हुआ मगर धनबल का प्रयोग कई गुणा है। सभी दल परोक्ष और अपरोक्ष तौर पर बाहुबली को मैदान में उतारते हैं और धनबल से चुनाव प्रभावित करने से नहीं चुकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि जनता ऐसे लोगों और दलों को सबक सिखाए। लोकतंत्र की ताकत जनता हैं, प्रतिनिधि चुनना उनका काम है। अगर जनता संकल्पित हो जाएगी तो धनबल और बाहुबल का प्रयोग करने वाले इसकी हिम्मत नहीं करेंगे।
दैनिक जागरण की रविवार को होटल मधुबन बिहार आयोजित पैनल डिस्कसन में वक्ताओं ने यह बात कही। कहा कि चुनाव के वक्त मतदाताओं को जागरूक करना बुद्धजीवियों का कर्तव्य है। अगर कोई बुद्धिजीवी इससे हिम्मत हार घर में बैठ गया है तो वर्तमान व्यवस्था के लिए वह भी कम दोषी नहीं हैं। बुद्धिजीवियों का काम ऐसे वक्त में जनता को जागरूक करने का है ना कि घर में चुप बैठ लोकतंत्र का बन रहे मजाक का तमाशा देखने का।
बिहार के चुनावों में विनोद महोबिया के बाहुबल का प्रयोग पहली बार माना जाता था। तब कड़ाम...कड़ाम नहीं तो धमाड़...धमाड़ वाला उनका डॉयलॉक अब सुनने को कम मिलता है। लेकिन इसकी जगह धनबल पूरी तरह हावी हो गया है। अभी मुखिया बनने में पांच सौ से दो हजार रूपये में वोट बिकता है। जिला के कई पंचायतों में मुखिया जीतने में प्रत्याशी 20 से 50 लाख रूपया तक खर्च कर रहे हैं। इतनी राशि खर्च कर मुखिया बनने वाले विकास में कितना लूट मचाएंगे, आप इसका केवल अनुमान ही लगा सकते हैं। ऐसा नहीं सरकारें और चुनाव आयोग भी चुप है। कई बाहुबली को इन्हीं सरकारों ने बंद किया है। रोज पैसे भी पकड़े जा रहे हैं। अंतिम फैसला हम जनता को लेना होता है। हमें जात, धर्म, बाहुबल और धनबल से ऊपर उठ कर लोकतंत्र बचाने को आगे आना होगा। हम वोट से इस पर चोट करें। - प्रो.सुबास चंद्र सिंह, पूर्व प्राचार्य पीबीएस कॉलेज सह अध्यक्ष विवि शिक्षक संघ भूटा
बाहुबल और धनबल के प्रयोग ने देश की राजनीति को गंदा कर दिया है। पब्लिक ही इसे साफ कर सकती है। आज कोई पढ़ा-लिखा और ईमानदार कार्यकर्ता चुनाव लडऩे की हिम्मत नहीं कर सकता है। पैसे के बल पर व्यापारी की जीत कर विधानसभा और लोकसभा तक पहुंच रहे हैं। वे जितनी पूंजी लगाकर चुनाव जीतेंगे, ब्याज सहित मुनाफा के लिए विकास में लूट करेंगे। यह बात हम जनता को समझनी होगी। पैसे और जात-पात पर वोट देकर हम विकास की सोच नहीं रख सकते हैं। - लीलाधर लाल, अध्यक्ष, जिला विधिज्ञ संघ
धनबल और बाहुबल के सियासत को हम दो हिस्से में बांट कर देख सकते हैं। 2000 तक बाहुबल हावी रहा, इसके बाद धनबल हावी हो गया। दोनों लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। आजादी के बाद से ही देश की राजनीति में इसका प्रभाव देखा जा रहा है। दोनों एक मजबूत लोकतंत्र के लिए दाग है। बुद्धिजीवी कभी हारे हुए लोग नहीं होते हैं, उन्हें अंतिम दम इसकी लड़ाई लडऩी होगी। - प्रकाश चंद्र यादव, सचिव, जिला प्राथमिक शिक्षक संघ
जनता पहले से जागरूक हुई है। उनकी जागरूकता से बाहुबल कम हो रहा है। उम्मीद है कि जनता कुछ दिनों में इसे पूरी तरह नाकार देगी। हां, धनबल के प्रयोग पर नियंत्रण के लिए किया गया अब तक प्रयास कारगर नहीं हो पाया है। कई दल पैसे लेकर टिकट बांटते हैं। फिर प्रत्याशी पैसे देकर वोट बटोर लेते हैं। जरूरी है कि जनता ऐसे लोगों की पहचान कर उस पर वोट के हथियार से हमला बोले। - डा.एसके सुमन, चिकित्सक
चुनाव में जनता ने जिस तरह बाहुबल को किनारा लगा दिया है, उसी तरह धनबल के प्रयोग पर भी वोट से चोट की जरूरत है। धनबल के चलते ही जनप्रतिनिधि विकास और इसकी गुणवत्ता पर केंद्रीत नहीं हो पाते हैं। इसके लिए आम मतदाता के साथ समाज के प्रबुद्ध लोगों की जिम्मेदारी अहम होती है। उन्हें लोगों को इसके लिए जागरूक करना होगा। वोट की ताकत समझा कर हम सही प्रतिनिधि का चुनाव कर सकें, ताकि हमारा पिछड़ापन दूर हो सके। - संजय कुमार तिवारी, जिलाध्यक्ष, जिला खाद्यान्न व्यापारी संघ
बाहुबल को लेकर जनता अब खूब सचेत है। कोई आंख दिखाकर और डरा कर किसी का वोट नहीं ले सकती है। ऐसा करने पर सोशल मीडिया उसका पोस्टमार्टम करने के लिए काफी होता है। धनबल पर प्रयोग रोकने के लिए पिछले दो चुनावों से आयोग की सख्ती दिख रही है। सभा से भीड़ तक की निगरानी का प्रयास हो रहा है। उसके हिसाब का आकलन करता है। इसके बावजूद कुछ लोग चोरी-छुपे इसका प्रयोग वोट खरीदने का प्रयास करते हैं। जनता ऐसे लोगों का बहिष्कार शुरु करे तो लोगों का सच्चा विकास जमीन पर दिखेगा। - शैलेंद्र, सचिव, आईएमए
लोकतंत्र के लिए धनबल और बाहुबल दोनों खतरनाक है। दैनिक जागरण ने इसके लिए परिचर्चा आयोजित कर समाज को बढ़ाया संदेश देने का प्रयास किया है। निश्चित रूप से ऐसी ही जागरूकता से बाहुबल चुनाव में लगातार कम हुआ है। जरूरत है कि हम हर मतदाता तक धनबल से लोकतंत्र को हो रहे नुकसान की बात समझाने में सफल हों। जनता जाग जाएगी तो लोकतंत्र की सारी बीमारी भाग जाएगी। - अनुपम गर्ग, व्यापारी